दक्षिण भारत यात्रा
: हैदराबाद
अगले दिन सुबह जल्दी
से उठ कर तैयार हो गए । नाश्ते के लिए घर से खाने के दुसरे सामान के साथ देसी घी
की पिन्नियां भी बना कर ले गए थे ताकि नयी जगह पर हमें सुबह-सुबह नाश्ते के लिए
परेशान न होना पड़े । तैयार होने के बाद चाय कमरे पर ही मंगवा ली और नाश्ता कर लिया
। आज हमें हैदराबाद घूमना था जिसके लिए हमारे पास आज सिर्फ आधा दिन था। दोपहर
अढाई बजे हमारी श्रीसैलम के लिए बस में बुकिंग थी । हैदराबाद से श्रीसैलम के लिए
बस में एडवांस में रिजर्वेशन करवाने की ऑनलाइन सुविधा उपलब्ध है । इसके लिये आप
तेलंगाना स्टेट रोडवेज की वेबसाइट http://www.tsrtconline.in/oprs-web/ से अपनी मनचाही सीट बुक कर सकते हैं।
प्रोग्राम के शुरू
में मेरा हैदराबाद घूमने का कोई प्रोग्राम नहीं था ,न ही ये कभी मेरी विश लिस्ट
में रहा । श्रीसैलम में मलिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए सबसे सुलभ रास्ता
हैदराबाद से ही होने के कारण यहाँ आना पड़ा । हैदराबाद से यदि हम सुबह जल्दी भी
निकलते तो श्रीसैलम में ज्योतिर्लिंग दर्शन के बाद तक रात तक कर्नूल (जहाँ से हमें
आगे की यात्रा के लिए ट्रेन लेनी थी ) पहुंचना सम्भव नहीं था । लगभग 400 किमी का
सड़क का सफ़र था और दर्शन करने में भी काफी समय लग सकता था । इन्ही सब बातों को ध्यान
में रखते हुए ही एक रात श्रीसैलम में रुकने का प्रोग्राम था । अब जब रात श्रीसैलम
में रुकना ही था तो सोचा क्यूँ न आधा दिन हैदराबाद घूमने का प्रोग्राम बनाया जाये
और दोपहर को श्रीसैलम की बस पकड़ी जाये ताकि रात तक अपने ठिकाने पर पहुँच सकें ।
वैसे तो हैदराबाद बहुत बड़ा है और यहाँ आस पास देखने के लिए बहुत सी जगह हैं
जिन्हें ठीक से देखने के लिए कम से कम दो तीन दिन चाहियें । मेरे पास सिर्फ आधा
दिन था ,तो जितना हो सके उतना ही देखने का निश्चय किया।
सुबह नाश्ते के बाद
हम रेस्ट हाउस से बाहर आकर मुख्य मार्ग पर आ गये जहाँ से हमें सबसे पहले लुम्बिनी पार्क
की तरफ़ जाना था । वहाँ से हुसैन सागर,बुद्ध स्टेचू और एनटीआर गार्डन पास में ही हैं। गूगल मैप पर
चेक किया तो दुरी मात्र 4 किमी बता रहा था लेकिन जब मैंने ऑटो वाले से बात की तो
कोई 150 तो कोई 200 मांगने लगा । मुझे इस बात का अहसास हो गया की ये मुझे बाहर का
समझ कर ज्यादा पैसे मांग रहे हैं । मैंने बस स्टॉप पर खड़े एक लड़के से बातचीत की और
पूछा कि लुम्बिनी पार्क जाने का कितना पैसा लगता है तो उसने कहा की सिर्फ 60 या 70
रूपये लगेंगे । जब मैंने बताया की सब 150 /200 मांग रहे हैं तो वो बोला आपको
परदेसी समझ कर ठगने की कोशिश कर रहे हैं; आप रुको मैं आपको ऑटो करवाता हूँ । उसने
एक ऑटो वाले को रोका और तेलुगु में बातकर 60 रूपये में तय कर दिया। हम उस अनजान मित्र
का धन्यवाद कर लुम्बिनी पार्क चले गए।
ऑटो वाले में हमें लुम्बिनी पार्क के सामने नेकलेस
रोड पर उतार दिया . सड़क के दायीं तरफ लुम्बिनी पार्क और हुसैन सागर झील है और बायीं
तरफ तेलंगाना राज्य का सेक्रेटेरिएट और एनटीआर गार्डन है . काफी साफ सुधरा इलका है
. हम पहले लुम्बिनी पार्क में गए जो काफी खूबसूरत बना हुआ है और इसमें बच्चों के
लिए काफी झूले भी लगे हुए हैं । मेरा बेटा वहाँ काफी एन्जॉय करता रहा । लुम्बिनी पार्क हुसैन
सागर से जुड़ा हुआ है और वहाँ बोटिंग की सुविधा भी है जिससे आप हुसैन सागर झील और बुद्ध
स्टेचू घूम सकते हो . हमने भी बोटिंग की टिकेट ले ली और हुसैन सागर झील और बुद्ध
स्टेचू घूमने के लिए चले गए . लगभग 12 बजे तक इन सब स्थानों पर घूम कर हम वापिस
रेस्ट हाउस आ गये और वहाँ से अपना सारा सामान लेकर एक ऑटो रिक्शा से बस स्टैंड चले
गए ।
हैदराबाद से हमारी
बस के चलने का समय दोपहर 2:30 बजे था । बस स्टैंड पर श्रीसैलम वाले काउंटर पर जाकर
मालूम किया तो उन्होंने ने बताया की अढाई बजे बस आएगी । अभी पौने एक ही बजा था । मेरे
दिमाग में आया की यहाँ बैठकर ढेड़-दो घंटा बस का इंतजार करने से बेहतर है कहीं और
घूम आते हैं। मोबाइल पर GPS खोलकर चार मीनार की लोकेशन चेक की तो पता चला की यह बस
स्टैंड से मात्र तीन किलोमीटर दूर है। जल्दी से क्लॉक रूम में सारा सामान जमा
करवाया और ऑटो रिक्शा से चार मीनार चले गए । लगभग एक घंटा वहाँ रुके और फिर वापिस
बस स्टैंड आ गये । हमारी बस अभी भी नहीं आई थी । जब तक बस आती तब तक हमने बस स्टैंड पर मौजूद एक भोजनालय में खाना खा
लिया और लगभग तीन बजे बस से श्रीसैलम के लिए रवाना हो गए ।
अब थोड़ी सी जानकारी
,आज घूमे स्थानों के बारे में ....
हुसैन सागर झील : हैदराबाद का हुसैन सागर झील का आकार बिल्कुल दिल की तरह है। ये दिल नुमा झील दशकों से हैदराबाद की पहचान है। संयुक्त
राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन ने इस झील को सारी दुनिया में दिल के आकार की सबसे बड़ी
झील की मान्यता दी है। हुसैन सागर झील को जो बात सबसे अलग करती है वो ये कि ये
मानव निर्मित विश्व की सबसे बड़ी झीलों में से एक है। क़ुतुबशाही दौर के बादशाह इब्राहिम
क़ुतुबशाह के ज़माने में एक इंजीनियर हुसैनशाह वली इस झील का निर्माण कराया था। शहर के लिए
पर्याप्त पानी की आपूर्ति करने के लिए इस झील का निर्माण मूसी नदी की सहायक नदी से
कराया गया था। यह झील वर्ष 1559 से 1562 तक केवल
दो लाख 54 हज़ार रुपए के खर्च से बनाई गई थी। इस काम में लगभग
3500 मजदूर लगे थे। उस समय इस झील का आकार 1600 हेक्टेयर था। अब अवैध कब्जे और विस्तारीकरण के चलते इसका आकार काफी छोटा
हो गया है । हैदराबाद की ये झील चार मीनार से भी 30 वर्ष
पुरानी है। जब हैदराबाद नगर बसा तो लगभग चार शताब्दियों तक इस झील से हैदराबाद को
पीने का पानी मिलता रहा और आसपास के इलाकों में सिंचाई के लिए भी इसका उपयोग होता
था। आज भी यह झील, हैदराबाद और सिकंदराबाद के बीच में एक
कड़ी के रूप में कार्य करती है। आज यह झील हैदराबाद में सबसे अधिक देखे जाने वाले
शानदार पर्यटन स्थलों में से एक है। खूबसूरत राष्ट्रीय धरोहरों में से एक हुसैन
सागर लेक की खूबसूरती ऐसी है कि एक नजर देख कर ही आप मोहित हो जाएं। खासकर शाम के
समय इस लेक को देखना ऐसा अनुभव देता है कि आप इसकी तुलना किसी प्राकृतिक लेक से कर
बैठें। यही कारण है कि इंसानों द्वारा निर्मित इस लेक को सरकार ने देश की बेहद
खूबसूरत राष्ट्रीय धरोहरों में से एक घोषित किया हुआ है। झील के एक तरफ लुम्बिनी
पार्क है जिसमे लगा संगीतमय फव्वारा
लुम्बिनी पार्क की सुंदरता को और बढ़ा देता है। झील के दूसरी तरफ विशालकाय बिरला
मन्दिर है।
इस झील के किनारे से होकर खूबसूरत सड़क
गुजरती है। रात के समय
सड़क पर लगी रोशनी की शानदार पंक्ति झील के पानी में “हीरे से गढ़े हुए हार” की तरह दिखाई देती है। इसीलिए इस वलयाकार सड़क को
नेकलेस रोड कहते हैं जिसका सौंदर्य रात में निखर उठता है। ये नेकलेस रोड मुंबई के
मरीन ड्राइव की याद दिलाती है । इस सड़क के दोनों तरफ सुंदर उद्यान होने से शाम के
समय में अक्सर आगंतुकों की बहुत भीड़ देखी जाती है। ये सड़क हैदराबाद और
सिकंदराबाद शहर को जोड़ती भी है।
महात्मा बुद्ध प्रतिमा :
हुसैन
सागर झील के बीच में स्थित 'रॉक ऑफ गिब्राल्टर'
पर स्थापित महात्मा बुद्ध की 17 मीटर ऊंची प्रतिमा पर्यटकों के लिए
आकर्षण का ख़ास कारण है। यह एक ही पत्थर को तराश कर बनाई गई विश्व की सबसे बड़ी
मूर्तियों में से एक है। इस प्रतिमा को हैदराबाद से 60 किलोमीटर दूर रायगीर की
पहाड़ियों के पास निर्मित किया गया था। इसे 200 शिल्पियों ने गणपति सतपथी की
अगुवाई में तकरीबन दो साल के समय में तैयार किया था। प्रतिमा की ऊंचाई 17 मीटर है
और इसका वजन 320 टन है। इसे रायगीर से यहां तक लाने के लिए बड़ी जुगत लगाई गई थी।
कुल 192 पहियों वाले विशेष वाहन से इसे रायगीर से यहां तक लाया गया था। 320 टन की
इस प्रतिमा को यहाँ स्थापित करना कठिन काम था। 1990 में जब यह प्रतिमा नाव से यहाँ
लाई जा रही थी तो वह नाव पलट गई थी और प्रतिमा झील में जा गिरी और दो साल तक झील
में ही पड़ी रही। बाद में दो साल बाद सन् 1992 में विशेषज्ञों की सहायता से इसे
निकाल कर इस मूर्ति को पुन: झील के मध्य में यहाँ स्थापित किया गया। रात में इस
बुद्ध प्रतिमा को देखने का अपना अलग आनंद है। रोशनी में नहाई बुद्ध प्रतिमा और भी
सुंदर लगती है। बुद्ध प्रतिमा के पास
बुद्ध वंदना और त्रिशरण मंत्र लिखे गए हैं।
कैसे पहुंचे - हुसैन सागर झील में
स्थित गौतम बुद्ध की इस प्रतिमा तक जाने
के लिए लुंबिनी पार्क से मोटर बोट, स्टीमर लाउंज चलते हैं। इसमें आप आने और
जाने का एक साथ टिकट लेकर बुद्ध मूर्ति तक जा सकते हैं। आने जाने के लिए लगातार
फेरी सेवा चलती रहती है।
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from wiki commons |
चार मीनार हैदराबाद का
सबसे प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण स्मारक है। चार मीनार को यहाँ के शासक मुहम्मद कुली
क़ुतुबशाह ने बनवाया था। हैदराबाद शहर प्राचीन और आधुनिक समय का अनोखा मिश्रण है
जो देखने वालों को 400 वर्ष पुराने भवनों की भव्यता के साथ आपस में सटी आधुनिक
इमारतों का दर्शन भी कराता है। चारमीनार 1591 में शहर के अंदर प्लेग की समाप्ति
की खुशी में मोहम्मद कुली क़ुतुब शाह द्वारा बनवाई गई बृहत वास्तुकला का एक
नमूना है। शहर की पहचान मानी जाने वाली चारमीनार चार मीनारों से मिलकर बनी एक
चौकोर प्रभावशाली इमारत है। इसके मेहराब में हर शाम रोशनी की जाती है जो एक अविस्मरणीय
दृश्य बन जाता है। यह स्मारक ग्रेनाइट के मनमोहक चौकोर खम्भों से बना है, जो उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम दिशाओं में स्थित चार विशाल
आर्च पर निर्मित किया गया है। यह आर्च कमरों के दो तलों और आर्चवे की गेलरी को
सहारा देते हैं। चौकोर संरचना के प्रत्येक कोने पर एक छोटी मीनार है जो 24 मीटर
ऊंचाई की है, इस प्रकार यह भवन लगभग 54 मीटर ऊंचा बन जाता
है। ये चार मीनारें हैं, जिनके कारण भवन को यह नाम दिया गया
है। प्रत्येक मीनार कमल की पत्तियों के आधार की संरचना पर खड़ी है, जो क़ुतुब शाही भवनों में उपयोग किया जाने वाला तत्कालीन विशेष मोटिफ है।
पहले
तल को क़ुतुब शाही अवधि के दौरान मदरसे के रूप में उपयोग किया जाता था। दूसरे तल
पर पश्चिमी दिशा में एक मस्जिद है, जिसका गुम्बद सड़क से ही दिखाई
देता है, यदि कुछ दूरी पर खड़े होकर देखा जाए। चार मीनार की
छत पर जाकर शहर का एक विहंगम दृश्य दिखाई देता है, जबकि
मीनारों के अंदर अत्यधिक भीड़ के कारण कुछ विशेष अतिथियों को ही भारतीय पुरातत्व
सर्वेक्षण, हैदराबाद वृत की अनुमति से यहाँ जाने दिया जाता
है और वे मीनारों के सबसे ऊपरी सिरे पर जाकर हैदराबाद का दृश्य देख सकते हैं।
वर्ष 1889 पर उपरोक्त चारों आर्चवे पर घडियां लगाई गई थीं। चारमीनार
के क्षेत्र में टहलते हुए आप इतिहास के अवशेषों को वर्तमान से मिलता हुआ देख सकते
हैं। चार मीनार के दक्षिण पूर्व की ओर निज़ामिया यूनानी अस्पताल की इमारत स्थित
है। पश्चिम में लगभग 50 मीटर की दूरी पर लाड बाज़ार है और इसकी
सड़क महबूब चौक पर समाप्त होती है जहां 19वीं शताब्दी के
दौरान बनाई गई कोमल सफ़ेद मस्जिद पर उसी अवधि के क्लॉक टावर स्थित हैं।
- चार मीनार हैदराबाद रेलवे स्टेशन
से लगभग 7 किलो मीटर की दूरी पर है।
- यह हैदराबाद बस स्टेशन से लगभग 4 किलो मीटर की दूरी पर है।
- दोनों शहरों के सभी हिस्सों से उत्कृष्ट
निजी परिवहन सुविधा उपलब्ध है।
- "आर्क डी ट्राइम्फ ऑफ द इस्ट"
नामक चार मीनार हैदराबाद की पहचान है।
- शहर जितनी पुरानी ये चार मीनारें इस
भवन के साथ पुराने शहर के मध्य में हैं और ये क़ुतुब शाही युग का हॉल मार्क
हैं।
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पार्क में लगी एक देव प्रतिमा |
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एनटीआर |
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एनटीआर गार्डन में |
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एनटीआर गार्डन |
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एनटीआर गार्डन |
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एनटीआर गार्डन |
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सेक्रेटेरिएट |
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लुम्बिनी पार्क |
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लुम्बिनी पार्क |
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लुम्बिनी पार्क |
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लुम्बिनी पार्क |
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लुम्बिनी पार्क से दिख रहा हुसैन सागर |
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लुम्बिनी पार्क |
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हुसैन सागर |
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हुसैन सागर |
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हुसैन सागर में बुद्ध स्टेचू |
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BSNL है तो अपनापन है |
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बुद्ध स्टेचू के बेस पर बनी मूर्तियाँ |
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बुद्ध स्टेचू के बेस पर बनी मूर्तियाँ |
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बुद्ध स्टेचू के बेस पर बनी मूर्तियाँ |
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चार मीनार |
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चार मीनार |
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चार मीनार का भीतरी दृश्य |
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चारों मीनार एक साथ दिख रही हैं |
हैदराबाद, बहुत कुछ है यहां घूमने के लिए!! वैसे यहां की बस सर्विस भी बहुत अच्छी है लोकल घूमने के लिये!! नेकलेस रोड बहुत सुंदर लगती है!! लुम्बिनी पार्क में बच्चों के लिए बहुत चीजें हैं!! चार मीनार की तारीफ में ज्यादा कुछ कहने को नही है!! भाभीजी ने मोती नही खरीदे क्या नवाबी शहर से?
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी .हमें भी ,जितना हैदराबाद घूम सके सब बेहद अच्छा लगा . मोती इसलिए नहीं ख़रीदे क्यूंकि असल नक़ल की ज्यादा पहचान नहीं है .
Deleteजबरजस्त...
ReplyDeleteदो बार हैदराबाद गया हूं...लेकिन यहां नहीं जा पाया...
जिंदगी थोड़े न खत्म हो रही....फिर जाएंगे...
धन्यवाद दादा .अगली बार जाओ ता सब घूमना .
Deleteबहुत बढ़िया जानकारी... अगले भाग का इंतज़ार रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल भाई .
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-04-2017) को "झटका और हलाल... " (चर्चा अंक-2933) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी .
DeleteBSNL हे ना ।अपना पण हे। हैदराबाडी की लोकल बस सर्विस बहुत अछि हे । हम दो दिन घुमे बस से पूरा हैदराबाद छान मारा । श्री शैलम दर्शन का इंतजार हे
ReplyDeleteधन्यवाद नरेंदर शेलोकर जी . अगली पोस्ट जल्दी ही .
Deleteबहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteधन्यवाद नरेंदर चौहान जी .
Deleteबहुत सुंदर लेख व फोटो, बढिया यात्रा कराए है आप
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन त्यागी जी .
Deleteसुंदर चित्र और विवरण
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी .
DeleteNice detailed information with beautiful captures...
ReplyDeleteधन्यवाद संजीव जी .
Deleteआधे दिन की हैदराबाद की बढ़िया घुमक्कड़ी...
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक जी .
Deleteआधा दिन का बहुत सही उपयोग कर लिया आपने सहगल साब !! जबरदस्त घुमक्कड़ी
ReplyDeleteधन्यवाद योगी सारस्वत जी .
Deleteशानदार भैया
ReplyDeleteहैदराबादी बिरयानी खाया की नई������
धन्यवाद अजय त्यागी जी .हैदराबादी बिरयानी से सामना ही नही हुआ , अन्यथा छोड़ते नही .
Deleteशानदार भैया
ReplyDeleteहैदराबादी बिरयानी खाया की नई������
हैदराबाद को समर्पित इस शानदार पोस्ट को पढ़ते हुए मुझे 1987 की अपनी यात्रा और सप्ताह भर का हैदराबाद प्रवास रह रह कर याद आता रहा। हम ट्रेनिंग के लिए Nuns के जिस होस्टल में ठहरे थे, उसके नियम बहुत कठोर थे। शाम को 1 घंटे के लिए ही घूमने जा पाते थे। फिर भी उस एक सप्ताह में आबिद रोड, चार मीनार और हुसैन सागर लेक देखी थी, इतना तो ध्यान है, और कुछ नहीं। इसलिए आपकी इस पोस्ट का मेरे लिए विशेष महत्व है।
ReplyDeleteधन्यवाद सुशांत जी .
DeleteVery well written post with nice pictures.
ReplyDeleteThanks Dear..
Deleteआपने आधे दिन का सही सदुपयोग....हैदराबाद में कुछ तो घूम ही लिया....हुसैन सागर, चारमिनार की जानकारी और चित्र अच्छे लगे
ReplyDeleteधन्यवाद रीतेश गुप्ता जी ।
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