Thursday, 12 April 2018

SRISAILAM – Abode of Lord Mallikarjun Swami and Bhramaramba Devi

 मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग ( Mallikarjun Jyotirling Temple )

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हैदराबाद से निकलते- निकलते दोपहर के तीन बज चुके थे। हैदराबाद से 210  किमी दूर पर करनूल जिले में श्री शैल पर्वत पर स्थित श्री मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग और सिद्धशक्तिपीठ भ्रमरम्बा देवी का दिव्य धाम हमारी यात्रा का अगला पड़ाव था । सारे रास्ते सड़क ठीक ठाक बनी है ,काफी जगह फॉर लेन भी है फिर भी यहाँ तक पहुँचने में बस ने 6 घंटे लगा दिए। बस 2X2 डीलक्स थी, सीटें आरामदायक थी ,ज्यादा जगह रुकी भी नहीं ; सिर्फ एक जगह खाने पीने के लिए ही विश्राम लिया लेकिन धीमे चलने के कारण  मात्र 35 किमी / घंटे की ही औसत निकाल पाई। यदि इतना सफ़र हरियाणा रोडवेज में होता तो चार घंटे से भी कम समय लगता।

  
करनूल जिले के नल्ला-मल्ला नामक घने जंगलों के मध्य श्रीशैलम पर्वत है, जिसे दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं। नल्ला का शाब्दिक अर्थ है सुन्दर और मल्ला का मतलब है ऊंचा। इसी चोटी पर भगवान शिव श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं। इसके मध्य उत्तर दिशा में कृष्णा नदी प्रवाहित हो रही है। ज्योतिर्लिंग तक पहुंचने के लिए इन्हीं घने जंगलों के बीच सड़क मार्ग के जरिए लगभग 40 किलोमीटर अंदर से होकर गुजरना पड़ता है। घने जंगल में सभी जीव जंतु की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रशासन के जरिए मार्ग पर बस या कार की अधिकतम रफ्तार तय की गई है। शाम 6 बजे के बाद इस वन क्षेत्र में प्रवेश वर्जित है ,सुबह 6 बजे के बाद ही इसके गेट दोबारा खुलते  हैं । इस जंगली रास्ते को पार करके कुछ ही किलोमीटर के बाद कृष्णा नदी पर बनी श्री शैल जल विद्युत परियोजना दिखाई देती है। दिन के समय शैल बांध से 290 मीटर की ऊंचाई से गिरते प्रबल जलावेग को देखने के लिए पर्यटकों का तांता लगा रहता है। जब हम यहाँ से गुजरे तो हल्का अँधेरा हो चूका था, फिर भी बांध के कुछ खुले हुए गेट से भारी गर्जना के गिरता हुआ पानी साफ दिख रहा था। यहीं से श्री शैल पर्वत की चढ़ाई आरंभ हो जाती है।

हम रात को लगभग 9 बजे श्रीशैलम पहुँचे । यहाँ रुकने के लिए हमारी पहले से ही मंदिर ट्रस्ट के एक  गेस्ट हाउस ‘बलिजा सतराम’ में बुकिंग थी । बस से उतरने के बाद उस गेस्ट हाउस का पता किया । बस स्टॉप के नजदीक ही था । काउंटर पर पहुंचकर अपना पहचान पत्र और बुकिंग की रसीद दिखाई । कमरे का किराया तो पहले से ही दिया हुआ था फिर भी उन्होंने एक दिन का और किराया एडवांस में जमा करवा लिया। बाद में जब मैंने रसीद से शर्तें/नियम पढ़े तो मालूम हुआ की यदि सुबह आठ बजे तक कमरा खाली नहीं किया तो एडवांस में से अगले दिन का किराया काट लिया जायेगा । खैर छोडो आगे बढते हैं , गेस्ट हाउस में ही भोजनालय था , वहाँ जाकर दक्षिण भारतीय भोजन किया और अपने कमरे पर आकर सो गए ।

अगले दिन सुबह जल्दी उठकर तैयार हो गए । गेस्ट हाउस से बाहर आकर मालूम किया तो पता चला मंदिर परिसर के बाहर क्लॉक रूम की सुविधा है जहाँ हम अपना सारा सामान जमा करवा सकते हैं । इसलिए लगभग सुबह 7 बजे हमने अपना कमरा खाली कर दिया और एक ऑटो रिक्शा से अपना सामान लेकर क्लॉक रूम पहुँच गए । श्रीसैलम में लोकल आवागमन के लिए हर जगह ऑटो रिक्शा आसानी से उपलब्ध है । मंदिर परिसर के बाहर क्लॉक रूम के साथ ही जूता घर है और उसके पास ही दर्शन के लिये पर्ची मिलने वाला काउंटर है । आप शीघ्र दर्शन के लिए 100 रूपये वाली पर्ची भी ले सकते हैं । हमने सारा सामान क्लॉक रूम में जमा करवा दिया और फ्री दर्शन वाली स्लिप लेकर दर्शन के लिए चले गए । आज यहाँ ज्यादा भीड़ नहीं थी और हमारे पास काफी समय था इसीलिए हमने फ्री दर्शन वाली स्लिप ही ली ।

सबसे पहले हमें एक हाल में बिठा दिया गया और इंतजार करने को कहा गया । यहाँ कहीं हाल बने हुए हैं जिनमे यात्रीयों को अपना नंबर आने तक बिठाया जाता है । थोड़ी ही देर बाद हाल से निक़ल कर हम बाहर आकर आगे लाइन में लग गए। लाइन धीरे धीरे खिसकती रही और लगभग एक घंटे के बाद हमने  गर्भ गृह में ज्योतिर्लिंग भगवान मल्लिकार्जुन के दर्शन किये। इसके बाद हमने मंदिर परिसर में ही स्थित माता भ्रमराम्बा देवी के मंदिर में माँ के दर्शन किये । इस मंदिर की गिनती शक्तिपीठों में की जाती है। कुछ देर मंदिर में ही रुकने के बाद हम मंदिर से बाहर गये और कुछ नाश्ता किया ।
श्रीसैलम में ही मुख्य मंदिर से दूर कुछ दर्शनीय स्थल हैं जिसमे साक्षी गणेश ,पंचधारा ,शिखरेश्वर महादेव ,हठकेशवरा महादेव ,पाताल गंगा आदि प्रमुख हैं जहाँ आप ऑटो रिक्शा से जा सकते हैं । 400/500 रूपये में ऑटो वाले आपको सभी जगह घूमा लायेंगे । शिखरेश्वर महादेव को छोड़कर बाकि सभी पॉइंट श्रीसैलम आने वाली मुख्य सड़क के आस पास ही हैं । शिखरेश्वर महादेव के लिए आपको मुख्य मार्ग से थोड़ा अलग जाना पड़ता है । यह मंदिर इस क्षेत्र की सबसे अधिक ऊँचाई पर बना हुआ है जहाँ से आप सारा श्रीसैलम देख सकते हैं ।

श्रीसैलम और आसपास घूमने के बाद हम लोगों ने खाना खाया ; वही चावल – सांभर और अन्य दक्षिण भारतीय व्यंजन । हमारी प्रिय रोटी तो हमें अब अगले आठ दस दिन बाद ही दिखनी थी । खाना खाने के बाद हमने क्लॉक रूम से अपना सामान लिया और एक ऑटो रिक्शा से बस स्टैंड चले गए और  करनूल जाने की बस ले ली । करनूल यहाँ से लगभग 180 किमी की दुरी पर है ,जहाँ से हमने रात को तिरुपति के लिए ट्रेन लेनी थी । बस की हालत ज्यादा अच्छी न होने से करनूल तक का सफ़र भी काफी थकाऊ और पकाऊ रहा । आधे से ज्यादा रास्ता तो जंगल से ही था ; बीच -2 में कुछ गाँव थे। लगभग 6 घंटे की लम्बी यात्रा के बाद हम रात 9 बजे के करीब करनूल स्टेशन पहुँच गए । यहाँ से रात 10 बजे वाली ट्रेन में हमारी तिरुपति बाला जी के लिए रिजर्वेशन थी ।

श्रीमल्लिकार्जुन का पौराणिक महत्व :
दक्षिण भारत में कैलाश के नाम से मशहूर आंध्र प्रदेश का श्रीमल्लिकार्जुन मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् में इसे दूसरा स्थान प्राप्त है । यह ज्योतिर्लिग कृष्णा नदी के तट पर श्रीसैलम नाम के पर्वत पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन करने से सभी सात्विक मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
एक बार भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय स्वामी और गणेश अपने विवाह के लिए आपस में कलह करने लगे। कार्तिकेय का मानना था कि वे बड़े हैं, इसलिए उनका विवाह पहले होना चाहिए, किन्तु श्री गणेश अपना विवाह पहले कराने को लेकर जिद्द पर अड़े थे। जब दोनों के झगड़े की वजह पिता महादेव और माता पार्वती को पता लगी तो उन्होंने इस झगड़े को खत्म करने के लिए कार्तिकेय और गणेश के सामने एक प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि तुम दोनों में जो कोई भी पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले यहां आ जाएगा, उसी का विवाह पहले होगा। शर्त सुनते ही कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए दौड़ पड़े लेकिन गणेशजी के लिए तो यह कार्य बड़ा ही कठिन था।

गणेश जी शरीर से स्थूल किन्तु बुद्धि के सागर थे। उन्होंने एक उपाय सोचा और अपनी माता पार्वती तथा पिता देवाधिदेव महेश्वर से एक आसन पर बैठने का आग्रह किया। गणेश ने उनकी सात परिक्रमा की। इस तरह से वह पृथ्वी की परिक्रमा से प्राप्त होने वाले फल की प्राप्ति के अधिकारी बन गए। उनकी चतुर बुद्धि को देख कर शिव और पार्वती दोनों काफी खुश हुए और उन्होंने श्रीगणेश का विवाह कार्तिकेय से पहले करा दिया। जब तक स्वामी कार्तिकेय सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आए, उस समय तक श्रीगणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों सिद्धि और बुद्धि के साथ हो चुका था, जिनसे उन्हें 'क्षेम' तथा 'लाभ' नामक दो पुत्र भी प्राप्त हो चुके थे।

यह सब देखकर स्वामी कार्तिकेय नाराज हो गए और क्रौंच पर्वत की ओर चले गए। उन्हें मनाने के लिए देवर्षि नारद को भेजा गया लेकिन वह नहीं माने। कार्तिकेय के चले जाने पर माता पार्वती भी क्रौंच पर्वत पहुंचीं। उधर भगवान शिव भी ज्योतिर्लिग के रूप में वहां प्रकट हुए। तभी से वह मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग के नाम से विख्यात हुए। मल्लिका माता पार्वती का नाम है, जबकि अर्जुन भगवान शंकर को कहा जाता है। इस कथा के अलावा और भी कई कथाएं हैं जो 'मल्लिकार्जुन' ज्योतिर्लिग के बारे में कही जाती हैं। मान्यता है कि पुत्रस्नेह में माता पार्वती प्रत्येक पूर्णिमा और भगवान शिव प्रत्येक अमावस्या को यहां अवश्य आते हैं।

स्कंद पुराण में श्री शैल काण्ड नाम का अध्याय है। इसमें उपरोक्त मंदिर का वर्णन है। इससे इस मंदिर की प्राचीनता का पता चलता है। तमिल संतों ने भी प्राचीन काल से ही इसकी स्तुति गायी है। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने जब इस मंदिर की यात्रा की, तब उन्होंने शिवनंद लहरी की रचना की थी।

माँ भ्रमराम्बा (भ्रमराम्बिका):
भ्रमराम्बा (भ्रामरी) का अर्थ है, 'मधुमक्खियों की माता'। एक समय 'अरुणासुर' नामक एक राक्षस ने संपूर्ण विश्व पर अपना अधिपत्य कायम कर लिया था। गायत्री मंत्र का निरंतर जाप करते हुए उसने लंबे समय तक कठोर तपस्या की और अंततः ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। जब ब्रह्मा जी ने अरुणासुर से मनचाहा वर माँगने को कहा तो उसने यह इच्छा व्यक्त की कि कोई भी दो पैरों या चार पैरों वाला जीव उसका वध न कर सके। ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया, जिससे सभी देवता भयभीत हो गए और माँ आदि शक्ति की शरण में पहुँचे और उनसे सुरक्षा माँगी।

माता आदि शक्ति देवताओं के समक्ष प्रकट हुईं और उन्हें बताया कि अरुणासुर उनका भक्त है, इसलिए जब तक वह उनकी पूजा करना बंद नहीं करता, वे उसका वध नहीं कर सकतीं। तब देवताओं ने एक युक्ति सोची, जिसके अनुसार देवगुरु बृहस्पति अरुणासुर से मिलने जा पहुँचे। देवगुरु को देख दैत्य अरुणासुर चकित हो गया और उसने उनके वहाँ आने का कारण पूछा। तब देवगुरु बृहस्पति ने अरुणासुर से कहा कि उनके वहाँ उससे मिलने आने में कोई विस्मय नहीं है क्योंकि वे दोनों एक ही देवी अर्थात 'माँ गायत्री' की पूजा करते हैं। यह सुनकर अरुणासुर लज्जित हो गया और सोचने लगा कि जिस देवी की पूजा देवता करते हैं, उसकी पूजा वह कैसे कर सकता है!

अरुणासुर ने उसी क्षण माता की पूजा करना छोड़ दिया। उसके ऐसा करने से माँ आदि शक्ति क्रोधित हो गईं और उन्होंने भ्रामरी (भ्रमराम्बिका) का रूप धारण कर लिया। उन्होंने छह पैरों वाली असंख्य मधुमक्खियों की उत्पत्ति की और उन सारी मधुमक्खियों ने कुछ ही क्षणों में अरुणासुर का वध करके उसकी पूरी सेना का भी विध्वंस कर दिया।

कैसे पहुंचे :
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग आंध्र प्रदेश के श्रीसैलम में मौजूद है। आप सड़क, रेल और हवाई यात्रा के जरिए इस ज्योतिर्लिग के दर्शन कर सकते हैं। सड़क के जरिए श्रीसैलम पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। विजयवाड़ा, तिरुपति, अनंतपुर, हैदराबाद और महबूबनगर से नियमित रूप से श्रीसैलम के लिए सरकारी और निजी बसें चलाई जाती हैं। श्रीसैलम से 230 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैदराबाद का राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। यहां से आप बस या फिर टैक्सी के जरिए मल्लिकार्जुन पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन मर्कापुर रोड है जो श्रीसैलम से 62 किलोमीटर की दूरी पर है।

कहाँ रुकें : यहाँ रुकने के लिए मंदिर ट्रस्ट (श्रीसैलम देवस्थानम) ने कई गेस्ट हाउस बनाये हुए हैं । जिनमे साधारण नॉन A/C से लक्ज़री कोटेज तक के आप्शन उपलब्ध हैं । जिनका एक दिन का किराया 400 रूपये से शुरू होकर 4000 रूपये तक है । श्रीसैलम देवस्थानम के पास कई गेस्ट हाउस में कुल मिलाकर सैंकड़ो कमरे हैं । आप इन कमरों को ऑनलाइन बुकिंग (http://www.srisailamonline.com/accommodation.html ) भी कर सकते हैं और काउंटर पर तत्काल बुकिंग भी उपलब्ध हैं। यदि आप ऑनलाइन बुकिंग करते हैं तो आपका चेकआउट समय सुबह आठ बजे का होता है यानि आपको सुबह आठ से पहले कमरा खाली करना है नहीं तो एडवांस में से अगले दिन के पैसे काट लिए जाते हैं । अगर आप काउंटर से बुकिंग करते हो तो आपको 24 घंटे के लिए कमरा दिया जाता है। इनके अलावा कई प्राइवेट गेस्ट हाउस और होटल भी मौजूद हैं । 
       
समय सारणी :
मंदिर सुबह 4:30 से लेकर दोपहर 3:30 तक फिर शाम 4:30 से रात्रि 10 बजे तक खुला रहता है।
आरती समय : सुबह 6 बजे और शाम को 5:30 बजे
दर्शन समय : सुबह 6:30 बजे से दोपहर 3:30 तक और शाम 6 बजे रात्रि 10 बजे तक

अगली पोस्ट में आपको तिरुपति बाला जी लेकर चलेंगे तब तक आप यहाँ की कुछ तस्वीरें देखिये ।
इस यात्रा के पिछले भाग पढ़ने के लिए नीचे लिंक उपलब्ध हैं ।।











मंदिर का दक्षिण द्वार 

स्थानीय लोग -अधिकतर  पुरुष काले कपड़े पहन कर और औरतें लाल साड़ी पहन कर तीर्थ यात्रा करते हैं 




भाई .क्या लिखा है ?,समझ में आये तो बताना कोई !
उत्तरी द्वार -मुख्य द्वार 
उत्तरी द्वार

पश्चिम द्वार की तरफ 

साक्षी गणेश 

साक्षी गणेश 

हठकेशवरा महादेव 


ललितादेवी पीठ 




पंचधारा

पंचधारा

शिखरेश्वर महादेव से दिख रहा श्रीसैलम  

शिखरेश्वर महादेव 

शिखरेश्वर महादेव 

शिखरेश्वर महादेव 








प्रसाद वाले डिब्बे से ली गयी ज्योतिर्लिंग की फोटो 
जिस भवन में रुके थे ,उसके पास चौक पर लगी मूर्ति 

ड्रेस कोड जरूरी है 






तन्मय सहगल 

पंचधारा

पंचधारा की ओर 









24 comments:

  1. सम्पूर्ण जानकारी के साथ एक बढ़िया पोस्ट.

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  2. धन्यवाद शास्त्री जी .

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  3. जानकारी से भरी एक बेहतर पोस्ट.जय भोले नाथ

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    1. धन्यवाद राज भाई साहब

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  4. हमारा रह गया है आपके बहाने देख लिया

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    1. धन्यवाद हर्षिता जी 💐💐। वैसे हैरानी की बात है कि हैदराबाद में रहने के बाद भी आप जैसे घुमक्कड़ से यह जगह छूट गयी ।

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  5. हमेशा की तरह सबकुछ उत्कृष्ट...👌

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    1. धन्यवाद डॉक्टर साहब ।💐💐

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  6. बढ़िया पोस्ट .जय भोले की .

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    1. धन्यवाद संजीव जी .

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  7. Shankar RajaramApril 16, 2018 9:54 am

    this is the only shivling you can touch in southindia

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  8. Beautifully described post & beautiful pictures.

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  9. Nice informative post with very beautiful pictures. I have once visited this place .this is so peaceful and calm place.
    jai bhole ki.
    S.K.S.

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  10. Shivkumar NaddaApril 17, 2018 1:35 pm

    सुन्दर। शिव की महानता हर जगह सारे भारत में लोगो ने अलग अलग अपने तरीके से मानी है और उनके हर जगह इसके प्रख्यात निशान है। जे हो।

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    1. धन्यवाद शिव कुमार नड्डा जी .

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  11. ​बहुत बढ़िया सहगल साब !! सरल शब्दों में आपने बेहतरीन विवरण लिखा है अपनी यात्रा का !! धार्मिक यात्रा का अपना अलग ही महत्व है लेकिन वहां के पुरुषों का काला कपडे पहनकर धार्मिक यात्रा करना , कुछ अजीब सा और विचित्र सा लगा !!

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    1. धन्यवाद योगी जी .मुझे भी वहां के पुरुषों का काला कपडे और औरतों का लाल साड़ी पहनकर धार्मिक यात्रा करना , कुछ अजीब सा और विचित्र सा लगा वो भी तब जब उनका स्वयं का रंग भी सांवला हो !!!

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  12. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग आंध्र प्रदेश के श्रीसैलम में मौजूद है। आप सड़क, रेल और हवाई यात्रा के जरिए इस ज्योतिर्लिग के दर्शन कर सकते हैं।
    धन्यवाद भाई आपकी इस पोस्ट से दर्शन भी हो गए और जानकारी भी मिल गई।

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    1. धन्यवाद सचिन त्यागी जी .

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  13. Very informative, thanks for posting such informative content. Expecting more from you.
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