तिरुपति बालाजी मंदिर - Tirupati Bala ji Temple
वेंकटाद्रि समस्थानं ब्रह्माण्डे नास्ति किञ्चन। वेंकटेश
समोदेवो न भूतो न भविष्यति।
( वेंकटाद्री के
समान पवित्र स्थान इस ब्रह्माण्ड में और कहीं नहीं है। श्री वेंकटेश्वर जी
(बालाजी) के समान देवता इससे पहले न कभी कोई था और न ही होगा।)
पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि श्री मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग के दर्शन के बाद
हम बस से करनूल पहुँच गए, जहाँ से रात को 9:50 की ट्रेन से तिरुपति के लिए रवाना हो गए । सारे
दिन की भाग दौड़ से हम काफी थके हुए थे इसलिए अपनी बर्थ पर लेटते ही गहरी नींद आ
गयी। अगले दिन सुबह ट्रेन अपने तय समय 6:40 से काफी पहले ही तिरुपति स्टेशन पर पहुँच गयी । तिरुपति स्तिथ अपनी कंपनी के
गेस्ट हाउस में हमारी आज के लिए पहले से ही बुकिंग थी। वहाँ फोन कर वहाँ की लोकेशन
ले ली और रेलवे स्टेशन से बाहर आकर एक ऑटो रिक्शा से गेस्ट हाउस चले गए । गेस्ट
हाउस ज्यादा दूर नहीं था , वहाँ पहुँचने में
10 मिनट भी नहीं लगे। वहाँ
पहुँचकर बिना समय गवाएँ ,नहा-धोकर जल्दी
से तैयार हो गए और नाश्ता करने के बाद, एक छोटे बैग को छोड़कर सारा सामान वहीँ रख दिया और फिर ऑटो रिक्शा से सेंट्रल
बस स्टैंड चले गए ।
तिरुपति से तिरुमला के लिए बसें दो जगह से मिलती है एक तो सेंट्रल बस स्टेशन
है जो रेलवे स्टेशन से करीब एक किलोमीटर दूर है और दूसरा बस स्टेशन छोटा है और
रेलवे स्टेशन के सामने विष्णु निवासम के पास है।
तिरुपति से तिरुमला जाने के लिए हर समय बस मिल जाती है। तिरुमला के लिए प्राइवेट जीपें
भी बहुतायत में मिल जाती हैं । यहाँ पर बस में एक बार में ही आने और जाने का टिकट
लेने की सुविधा भी है, जिसकी वैधता 72 घंटे की होती है और इस पर कुछ डिस्काउंट भी है ।
आप 3 दिन के अंदर तिरुमला बस
सर्विस की किसी भी बस से कभी भी वापस आ सकते हैं। मैंने भी आने और जाने के 192 रूपये
के दो टिकेट ले लिए। एक साइड का टिकेट प्रति व्यक्ति 53 रूपये का है यानि आने जाने
का टिकेट एक साथ लेने से प्रति व्यक्ति 10 रूपये की छूट । थोड़ी देर बाद ही बस तिरुमला
के लिए चल पड़ी। शहर से बाहर निकलते ही एक चेकपोस्ट है जहाँ पर सभी यात्रियों और
उसके सामान की चेकिंग होती है। इससे थोड़ा आगे चलने के बाद तिरुमला की पहाड़ियां
आरंभ हो जाती है । दुर्घटना से बचने के
लिए तिरुमला की ओर ऊपर जाने वाली और तिरुमला से तिरुपति नीचे आने वाली सड़क अलग अलग
बनी हुई है । तिरुपति से तिरुमला की दुरी मात्र 22 किलोमीटर है और लगभग 35-40 मिनट की यात्रा के बाद सुबह दस बजे हम तिरुमला
पहुँच गए ।
पहाड़ी की छोटी पर बसा तिरुमला एक छोटा सा नगर है । यदि आप पहली बार यहाँ आ रहे
हैं तो आपके लिए यह किसी भूल भूलैया से कम नहीं है । हिंदी भाषी लोगों के लिए तो
और भी ज्यादा समस्या है । आपकी भाषा वहाँ के स्थानीय लोग आसानी से नहीं समझते और
उनकी भाषा आपको समझ नहीं आएगी । यहाँ दिशा भ्रम होना भी एक समान्य सी बात है ।किधर
से आये थे ,वापिसी का कौन सा रास्ता
है आप भूल जाओगे । हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ सुबह जाते हुए जिस जूता काउंटर पर जूते
जमा करवाए थे वापसी में वो जगह भूल गए । मुझे तो वैसे भी भूलने की बीमारी है ।शुक्र
है मेरी धर्मपत्नी को याद रहा और आख़िरकार जुते मिल गए। आपके साथ ऐसी स्थिति न आये
इसलिए जाते हुए लैंडमार्क याद रखते हुए जाएँ। अपनी समझ के अनुसार थोड़ा सा मैं
समझाने की कोशिश करता हूँ ।
तिरुमला पहुंच कर आपको सड़क के बायीं
तरफ चलना है । पहले सनिधि पार्क है उसे पार कर बायीं तरफ ही चलना है ; मुख्य मंदिर
इसी तरफ है । आगे चलने पर आपको मंदिर दिखायी दे जायेगा। यहाँ तिराहे पर खड़े होने
से सामने नीचे की तरफ़ बाला जी मंदिर , दायीं तरफ अन्जनेया स्वामी मंदिर और उसके आगे एक बड़ा सा हवन कुंड दिखायी देगा
जिसमे लोग नारियल चढ़ाते हैं । भगवान राम का मंदिर भी इधर ही है । तिराहे के बायीं
तरफ़ सामान और फ़ोन जमा करवाने का काउंटर और उसके सामने कल्याण कट्टा की तीन चार
मंजिली इमारत हैं । यहीं पर यात्री सहायता केंद्र भी है । दर्शन के लिए आपको दायीं
तरफ ही जाना है चाहे सर्वदर्शन करने हों या स्पेशल दर्शन । सर्वदर्शन (फ्री दर्शन)
के लिए आपको लगभग दो किलोमीटर दूर जाना पड़ेगा जहाँ से लाइन शुरू होती है। स्पेशल
दर्शन के लिए आपको ATC पार्किंग के पास
से एंट्री मिल जाती है । 300 रूपये वाले दर्शन
में पुरुषों के लिए धोती अनिवार्य है तो महिलाओं के लिए साड़ी या सलवार-कुरता
अनिवार्य है।
सर्वदर्शनम के लिए यात्री लम्बी-2 लाइन में लगने के बाद हाल में पहुँचते हैं ।
यहाँ दर्शन के लिए आये यात्रियों के लिए बड़े-बड़े कई हॉल बनाये हुए है जहाँ बैठ कर
लोग दर्शन के लिए अपना नंबर आने का इंतजार करते हैं। हर हॉल में लगभग 500 लोग बैठ सकते हैं और
यहाँ सबके लिए खाने-पीने की पूरी व्यवस्था है । हॉल में बैठे लोगों को क्रमानुसार
ही दर्शन के लिए भेजा जाता है सामान्यत सर्वदर्शन में 10-11 घंटे के इंतज़ार के बाद ही दर्शन हो पाते हैं लेकिन कई बार
ज्यादा भीड़ होने या किसी उत्सव के कारण 24 घंटे से अधिक समय भी लग सकता है । स्पेशल
दर्शन वालों को काफी कम समय लगता हैं और सामान्यत वे 2-3 घंटे में दर्शन कर लेते
हैं ।
हम लोग लगभग तीन बजे तक मंदिर दर्शन कर चुके थे ।उसके बाद हम लड्डू प्रसाद
लेने चले गए । वहाँ से आकर राम मंदिर और कुछ अन्य मंदिर में दर्शन किये और फिर हम अन्न
प्रसाद ग्रहण करने के लिए एक बड़े से हाल में पहुँच गए जहाँ एक साथ हजारों लोग प्रसाद
ग्रहण कर सकते हैं । प्रसाद में हमें चरणामृत, मीठी पोंगल, दही-चावल और एक दो अन्य व्यंजन भी खाने को मिले
जिन्हें आज पहली बार ही खाया था और उनका नाम मालूम नहीं है लेकिन वे काफी
स्वादिष्ट थे । भोजन उपरांत हम लोग कुछ शॉपिंग में व्यस्त हो गए । वर्ष 2017 का
आखिरी सप्ताह होने के कारण यहाँ तिरुमला देवस्थान द्वारा प्रकाशित नव वर्ष 2018 के
कैलेंडर और डायरी भी मिल रहे थे। मैंने एक डायरी पसंद कर ली क्यूंकि इसमें यहाँ की
विस्तृत जानकारी के साथ सभी मंदिरों में स्थापित प्रतिमाओं की रंगीन तस्वीर भी थी ।
इस ब्लॉग में जितनी भी प्रतिमाओं की तस्वीर मैंने लगायी हैं सभी इसी डायरी से ली
हैं । इसलिए कॉपीराइट का कोई झंझट नहीं । वापसी के लिए जब जूता घर से जूते लेने गए
तो हमें जूता घर ही नहीं मिला । 10 मिनट तक मैं इधर उधर भटकने के बाद ही जूता घर मिला
। अब तक शाम के पांच बज चुके थे हम तिरुपति जाने वाली एक बस में बैठ गए और वापिस तिरुपति
चल दिए ।
अगली पोस्ट में आपको देवी पद्मावती के मंदिर ले चलेंगे और तिरुपति स्तिथ कुछ
अन्य मंदिरों की जानकारी देंगे । अब कुछ जानकारी तिरुमला स्थित बाला जी के मंदिर
के बारे में और फ़िर ढेर सारी तस्वीरें।
तिरुमला में स्थित तिरुपति वेन्कटेशवर मन्दिर एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है। आंध्र
प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित यह भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक
है। इस मंदिर से जुड़ी आस्था, प्यार और रहस्य
की वजह से लाखों की संख्या में दर्शनार्थी यहां हर महीने आते हैं। समुद्र तल से
3200 फीट ऊंचाई पर स्थित तिरुमला की पहाड़ियों पर बना श्री वैंकटेश्वर मंदिर यहां
का सबसे बड़ा आकर्षण है। पांचवी शताब्दी से भी पहले का यह मंदिर दक्षिण भारतीय
वास्तुकला और शिल्प कला का अदभूत उदाहरण हैं। तमिल के शुरुआती साहित्य में से एक
संगम साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम कहा गया है। तिरुपति के इतिहास को लेकर
इतिहासकारों में मतभेद हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख
धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था। कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से
इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था।
मंदिर के विषय में पौराणिक जानकारी :
इस मंदिर के विषय में एक अनुश्रुति इस प्रकार से है। प्रभु वेंकटेश्वर या
बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु
ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब
तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिरी' कहलाती हैं। श्री
वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है। कहानी इस
प्रकार है।
कलयुग की शुरुआत में जब भगवान वरहा वैकुंठ चले गए थे। लेकिन ब्रह्मा धरती पर
विष्णु भगवान को चाहते थे। जिसके लिए नारद मुनी को कोई युक्ति सोचने के लिए कहा
गया। नारद मुनी ने गंगा के तट पर यज्ञ की तैयारी में जुटे जब बेहतर ब्रह्मांड की
खातिर ऋषि मुनियों ने एक यज्ञ शुरु किया था। लेकिन सवाल ये था कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में उस यज्ञ का पुरोहित किसे
बनाया जाए। सभी ऋषि मुनियों ने ये जिम्मेदारी भृगु ऋषि को सौंपी क्योंकि वही
देवताओं की परीक्षा देने का साहस कर सकते थे।
भृगु ऋषि भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचे। लेकिन भगवान ब्रह्मा वीणा की धुन में
लीन थे। उन्होंने भृगु ऋषि की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। भृगु ऋषि की अगली मंजिल थी
महादेव का दरबार, लेकिन उस वक्त भगवान शंकर
भी मां पार्वती से बातचीत में खोए हुए थे और उनकी नजर भी भृगु ऋषि पर नहीं पड़ी।
ऋषि भृगु फिर नाराज होकर वहां से भी चले गए। अब बारी थी भगवान विष्णु की, जो उस वक्त आराम कर रहे थे। भृगु ऋषि ने वैकुंठ
धाम में भगवान विष्णु को कई आवाजें दीं। लेकिन भगवान ने कोई जवाब नहीं दिया।
गुस्से में आकर भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु के सीने पर लात मार दी। इसके बाद भगवान
विष्णु ने भृगु ऋषि को गुस्से में आग बबुला देखा तो उनका पैर पकड़ लिया और मालिश
करते हुए पूछा कि कही आपको चोट तो नहीं लगी। यह देखकर भृगु ऋषि को अपना उत्तर मिल
गया और उन्होंने यज्ञ का पुरोहित भगवान विष्णु को बना दिया।
भृगु ऋषि के भगवान विष्णु के सीने पर लात मारने पर माता लक्ष्मी नाराज हो गई
थीं। माता चाहती थीं कि भगवान विष्णु भृगु ऋषि को दंड दें लेकिन विष्णु भगवान ने
ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया। जिसकी वजह से माता लक्ष्मी ने वैकुंठ छोड़ दिया और
तपस्या करने के लिए धरती पर करवीपुर (जिसे अब महाराष्ट्र के कोलहापुर के नाम से
जाना जाता है) आ गईं। माता लक्ष्मी के वैकुंठ से चले जाने के बाद भगवान विष्णु भी
उन्हें ढूंढने के लिए वैंकुठ छोड़कर धरती पर आ गए। उन्होंने माता को जंगलों और
पहाड़ियों पर ढूंढा लेकिन माता लक्ष्मी कही नहीं मिलीं। बाद में भागवान विष्णु एक
पहाड़ी पर रहने लगे जिसे आज वेंकटाद्री के नाम से जाना जाता है।
वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, 11वीं शताब्दी
में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ाई की थी। प्रभु श्रीनिवास
(वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा
माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक
जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई।
मुख्य मंदिर:
मंदिर के गर्भगृह में भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा स्थापित है। यह मुख्य मंदिर
के प्रांगण में है। मंदिर परिसर में खूबसूरती से बनाए गए अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मंदिर हैं। मंदिर परिसर में
मुख्श् दर्शनीय स्थल हैं:पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम, कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम तिरुमला राय मंडपम, आईना महल, ध्वजस्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कविली, विमान प्रदक्षिणम, श्री वरदराजस्वामी श्राइन आदि। इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से
हुई है। यह संप्रदाय समानता और प्रेम के सिद्धांत को मानता है। इस मंदिर की महिमा
का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि भगवान वैंकटेश्वर
का दर्शन करने वाले हरेक व्यक्ति को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस मंदिर के
द्वार सभी धर्मानुयायियों के लिए खुले हुए हैं।
कैसे पहुँचे : तिरुपति और रेनीगुंटा भारत के मुख्य स्थानों से रेल संपर्क से जुड़े हुए हैं ।अभी
हाल ही में तिरुपति में हवाई अड्डा भी शुरू हो गया है । तिरुपति से तिरुमला के लिए
बसें दो जगह से मिलती है एक तो सेंट्रल बस स्टेशन है जो रेलवे स्टेशन से करीब एक
किलोमीटर दूर है और दूसरा बस स्टेशन छोटा है और रेलवे स्टेशन के सामने विष्णु
निवासम के पास है। तिरुपति से तिरुमला
जाने के लिए हर समय बस मिल जाती है।इसके अलावा दो -अलिपिरी या श्रीवारु मठ ट्रैकिंग
पथ भी हैं। अलिपिरी रास्ते से 7।8 किमी की आसान चढ़ाई है और श्रीवारु मठ ट्रेकिंग
पथ से यह मात्र 2।1 किमी ही है।
देवस्थान दर्शन :
तिरुमला तिरुपति देवस्थान की तरफ से यात्रियों के लिये भगवान
वेंकटेश्वर के तीन प्रकार से दर्शन उपलब्ध हैं ।
सर्वदर्शनम से अभिप्राय है 'सभी के लिए दर्शन'। सर्वदर्शनम के लिए प्रवेश द्वार वैकुंठम काम्प्लेक्स है।
वर्तमान में टिकट लेने के लिए यहाँ कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था है। यहाँ पर निःशुल्क व
सशुल्क दर्शन की भी व्यवस्था है। साथ ही विकलांग लोगों के लिए 'महाद्वारम' नामक मुख्य द्वार
से प्रवेश की व्यवस्था है, जहाँ पर उनकी
सहायता के लिए सहायक भी होते हैं।
दिव्य दर्शन : अगर आप तिरुपति से अलिपिरी या श्रीवारु मठ ट्रेकिंग पथ से पैदल तिरुमला आते
हैं तो आपको इस श्रेणी में डाला जाता है।।इन दोनों रास्तों पर यात्रियों के लिए
अनेक सुविधाएँ उपलब्ध हैं । इन रूट पर भी दर्शन के लिए टोकन के माध्यम से टाइम
स्लॉट दिया जाता है । अलिपिरी और श्रीवारु के लिए प्रतिदिन क्रमश 14000 और 6000 टोकन
का कोटा तय है ।तिरुमला पहुँचने पर इन यात्रियों को भी स्पेशल एंट्री वालों के साथ
मिला दिया जाता है और प्रसाद के रूप में 1 लड्डू फ्री मिलता है ।
स्पेशल एंट्री दर्शन : इस श्रेणी में दर्शन करने के लिए आपको https://ttdsevaonline।com पर बुकिंग करनी पड़ती है ।इसमें आप तीन महीने
पहले तक मनचाही तिथि और समय चुन सकते हैं और तय दिन और निश्चित समय से 2 घण्टे
पहले आपको लाइन में लगना होता है और दर्शन करने में करीब 2 घंटे का वक़्त लगता है।
इस दर्शन की बुकिंग के लिए 300 रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से बुकिंग के समय
ऑनलाइन भुगतान करना पड़ता है जिसमे दर्शन के बाद प्रसाद के रूप में 2 लडडू प्रति
व्यक्ति मुफ्त मिलते हैं । यदि आप ऑनलाइन बुकिंग नहीं कर पाते तो तत्काल में तिरुमला
स्थित किसी भी बैंक में 1000 रूपए भुगतान करके 300 रूपए वाला कूपन पा सकते हैं ।
इसके अलावा वृद्ध और विकलांग लोगों के लिए और एक साल से छोटे बच्चे के साथ
उनके माता पिता को भी स्पेशल दर्शन की सुविधा है। इसके लिए भी कुछ नियम और शर्तें
भी हैं ।
केशदान: इसके अंतर्गत श्रद्धालु प्रभु को अपने केश
समर्पित करते हैं जिससे अभिप्राय है कि वे केशों के साथ अपना दंभ व घमंड ईश्वर को
समर्पित करते हैं। पुराने समय में यह संस्कार घरों में ही नाई के द्वारा संपन्न
किया जाता था, पर समय के साथ-साथ इस
संस्कार का भी केंद्रीकरण हो गया और मंदिर के पास स्थित 'कल्याण कट्टा' नामक स्थान पर यह
सामूहिक रूप से संपन्न किया जाने लगा। अब सभी नाई इस स्थान पर ही बैठते हैं।
केशदान के पश्चात यहीं पर स्नान करते हैं और फिर पुष्करिणी में स्नान के पश्चात
मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं।
अन्न प्रसादम एवं लड्डू प्रसाद :
यहाँ पर प्रसाद के रूप में अन्न प्रसाद की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत चरणामृत, मीठी पोंगल, दही-चावल ,रस्म जैसे
प्रसाद तीर्थयात्रियों को दर्शन के पश्चात दिया जाता है।इसके अलावा दर्शन के
पश्चात सबको लड्डू प्रसाद भी मिलता है । श्रद्धालु दर्शन के उपरांत लड्डू मंदिर परिसर के बाहर से खरीद सकते
हैं।
ब्रह्मोत्सव :
तिरुपति का सबसे प्रमुख पर्व 'ब्रह्मोत्सवम' है जिसे मूलतः प्रसन्नता का पर्व माना जाता है।
नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व साल में एक बार तब मनाया जाता है, जब कन्या राशि में सूर्य का आगमन होता है
(सितंबर, अक्टूबर)। इसके साथ ही यहाँ पर मनाए जाने वाले
अन्य पर्व हैं - वसंतोत्सव, तपोत्सव, पवित्रोत्सव, अधिकामासम आदि।
रहने की व्यवस्था:
तिरुमाला में मंदिर के आसपास रहने की काफी अच्छी व्यवस्था है।यहाँ लगभग 7000
कमरे हैं जिनमे धर्मशाला की फ्री सेवा से लेकर मंहगे होटल भी उपलब्ध हैं।ऑनलाइन
बुकिंग की सुविधा भी है जिससे आप तिरुमला-तिरुपति देवसंस्थानम की वेबसाइट https://ttdsevaonline।com पर हो जाती है और बुकिंग 2-3 माह पहले करवानी पड़ती है। रेस्ट हाउस के कुछ जरूरी
नंबर नीचे दिए हैं।
सृनिवासम
काम्प्लेक्स :0877-2264541/2264540 @ Tirupati near RTC
Bus Stand,
माधवम : 0877-2264435 @ Tirupati
विष्णुनिवासम
: 0877-2264462/2264469
Opp। Railway Station @ Tirupati
वेंकटेशवरा रेस्ट
हाउस : 0877-2264507,
Opp। Railway Station @ Tirupati
पद्मावती
रेस्ट हाउस : 0877-2264502 @ Tirupati
अकेले व्यक्ति की रूम बुकिंग
नहीं की जाती ।
अगली पोस्ट में आपको देवी पद्मावती के मंदिर ले चलेंगे तब तक आप यहाँ की कुछ तस्वीरें
देखिये ।
इस यात्रा के पिछले भाग पढ़ने के लिए नीचे लिंक उपलब्ध हैं ।
कल्याण कट्टा |
विश्राम स्थल |
बाला जी की प्रतिमा का प्रतिरूप |
गर्भ गृह |
शानदार भैया उपयोगी जानकारी
ReplyDeleteजय बाबा की🙏
धन्यवाद डाक्टर साहेब . यूँ ही हौंसला बढ़ाते रहो .
Deleteशानदार भैया उपयोगी जानकारी
ReplyDeleteजय बाबा की🙏
विस्तृत जानकारी के साथ बढ़िया फोटो। अच्छा लेख।
ReplyDeleteधन्यवाद रचना जी.
DeleteA great post with detailed information about the Place and all other related information. 10/10.
ReplyDeletethanks for sharing with us.
धन्यवाद संजीव कुमार जी. संवाद बनाये रखिये .
Deletebahut hi achchi jankari di aapne... ham bhi bhagwan ji ka darshan karane jane ki kai salo se ichcha rakhe hai.. par hukam hi nahi ho raha......... aap se jankari prapt kar ke hi santust huwe... jai venkteswar swami... shree hari.... hari...
ReplyDeleteधन्यवाद किशोर पुरोहित जी .
Deleteसंजीव जी से पूर्णता सहमत . आन जाने की , ठहरने की ,दर्शनों की व् मंदिर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दी है . मैं भी अभी बाला जी के दर्शन नहीं कर पाया . इच्छा है जाने की .आपकी ये पोस्ट बहुत काम आएगी .
ReplyDeleteधन्यवाद राज़ जी .
Deleteजय गोविंदा
ReplyDeleteबढिया यात्रा रही। जब मैं यहां गया था तब मुझे भी दो घंटे लगे थे दर्शन करने में। बहुत लम्बी लाईन व लम्बे लम्बे गलियारे से होकर गुजरना पडता है।
बढिया जानकारी से पूर्ण पोस्ट
JAI TIRUPATI BALA JI. Ati Sunder Saab ji.
ReplyDeleteधन्यवाद स्वर्ण गौरी साहब
Deleteबहुत खूब.जय गोविंदा.
ReplyDeleteधन्यवाद महेश पालीवाल जी .
DeleteGreat writing. Informative post. Nice photography.
ReplyDeleteThanks Dear..
Deleteबहुत ही विस्तृत तिरुपति की बढ़िया जानकारी....जूतों की खोज वाली बात पढ़कर अच्छा लगा ऐसा भी हो सकता है...
ReplyDeleteDहन्य्वाद प्रतीक भाई .जय गोबिन्दा
Deleteबहुत अच्छी जानकारी दी सहगल साहब आपने।
ReplyDeleteधन्यवाद नयन सिंह जी .
Deleteबहुत बढ़िया सहगल साब , आप जो कैसे पहुंचें , कहाँ रुकें जैसी जानकारी देते हैं , वो बड़े काम की होती हैं !! जय बाबा वेंकटेश। वो जो तिरुपति से ट्रेक करके आने का रास्ता बताया आपने , उसमें स्पेशल एंट्री के लिए 300 रूपये का टोकन नहीं लेना पड़ता ??
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .तिरुपति से ट्रेक करके आने वाले यात्रियों को 300 रूपये का टोकन नहीं लेना पड़ता. उन्हें इसके बिना ही स्पेशल दर्शन का फायदा मिलता है .
DeleteBaht badiya bhai ji baba jaldi bulao
ReplyDeleteThanks Suraj Sharma jee.
Deleteआपने तिरूपतिबाला जी का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है । वास्तव में अगर स्वर्ग से उपमा दिया जाए तो अतिसयोक्ती नहीं होगी । मैं तीन बार वहाँ जा चुकी हूँ ।
ReplyDeleteधन्यवाद राजकुमारी जी .
Deleteखूबसूरत, खूबसूरत और खूबसूरत.......जय हो तिरुपति बाला जी की, नरेश तुमारी भाषा शैली को नमन.
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी .
DeleteVery nice
ReplyDeleteJai ho Bhagwan venkateshwar
Hi,
ReplyDeleteNice photography in this post. Thanks
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