श्री पद्मावती मंदिर, तिरुचनूर ( Sri Padmavati Temple )
ॐ नमो भगवती पद्मावती सर्वजन मोहनी,
सर्व कार्य करनी, मम विकट संकट हरणी,
मम मनोरथ पूरणी, मम चिंता चूरणी नमों ।
ॐ ॐ पद्मावती नम स्वाहा: ।।
तिरुमला
में दर्शन के बाद हम लोग बस से तिरुपति लौट आये । बस स्टैंड से हमने देवी पद्मावती
मंदिर जाने के लिये ऑटो रिक्शा के बारे में पूछा लेकिन कोई भी 100 रूपये से कम में चलने को तैयार नहीं था । हम बस
स्टैंड से बाहर आ गये और यहाँ से 60 रूपये में पद्मावती मंदिर जाने के लिये ऑटो
रिक्शा मिल गया । मंदिर बस स्टैंड से लगभग पाँच किलोमीटर दूर है और लगभग 15 -20 मिनट
में हम मंदिर पहुँच गए । मंदिर जाने के लिए सड़क पर ही एक भव्य गेट बना हुआ है ।
देवी पद्मावती |
प्रवेश
द्वार से बाहर और अन्दर भी बहुत से फूल बेचने वाले बैठे हुए थे जो फूल माला और
पूजा सामग्री के साथ साथ देवी लक्ष्मी के प्रिय सफ़ेद और गुलाबी कमल के फूल भी बेच
रहे थे । गेट से अन्दर जाने पर दायीं तरफ़ लॉकर सुविधा है । यहाँ दो लॉकर बने हैं
एक में आप अपना सामान जमा करवा सकते हैं और दुसरे में मोबाइल फ़ोन और कैमरा । यह सुविधा
फ्री नहीं है ,इस के लिए आपको एक निश्चित
शुल्क भी अदा करना पड़ता है। थोड़ा आगे बायीं तरफ दर्शन के लिए टोकन काउंटर है। उससे थोड़ा आगे ही
जूता घर भी बना है लेकिन फिर भी सभी लोग बाहर ही जूता छोड़ कर जा रहे थे ।
हमने भी अपना पिट्ठू बैग , मोबाइल फ़ोन और कैमरा लॉकर में जमा करवा दिया । हमें
लॉकर वाले ने बताया कि मंदिर में आरती शुरू होने वाली है और अब दर्शन की लाइन बंद
कर दी जाएगी इसलिये आप जल्दी से जाओ । हमने
जल्दी से दर्शन के लिए टोकन लिया और देवी लक्ष्मी के लिए कमल के फूल ,फूल माला और माता
के श्रृंगार का सामान लेकर लाइन में लग गए । हमारे लाइन में लगने के कुछ देर बाद
ही दर्शन के लिए टोकन काउंटर बंद हो गया और लाइन का गेट बंद कर दिया गया । बताया
गया की अब आरती के बाद ही दर्शनों के लिए लाइन खुलेगी । मंदिर के गर्भ गृह तक
पहुंचने से पहले सभी श्रद्धालुओं की अच्छी तरह से तलाशी ली गई। मंदिर में ज्यादा भीड़
नहीं थी। लगभग आधे घंटे में हम देवी पद्मावती के दर्शन कर चुके थे । कुछ देर बाद
आरती की तैयारियां शुरू होने लग गयी और सफाई के लिए सभी श्रद्धालुओं से मुख्य
मंदिर को खाली करवाने लगे । यहाँ भी तिरुपति बाला जी की तरह देवी पद्मावती की
विशाल प्रतिमा है।
पद्मावती
देवी का मंदिर भी भगवान वेंकटेश्वर मंदिर और दक्षिण के अन्य मंदिरों की तरह द्रविड
शैली में बना हुआ है। मंदिर में देवी की चांदी की विशाल प्रतिमा है। देवी पद्मासन में बैठी हैं। उनके दोनों हाथों
में कमल का पुष्प सुसज्जित हैं। एक पुष्प अभय का प्रतीक है तो दूसरा पुष्प
वरदान का। मंदिर में देवी का श्रृंगार सोने से किया गया है। मान्यता
के अनुसार देवी पद्मावती के बारे में कहा जाता है कि 12 साल तक पाताल लोक में वास करने के बाद 13 वें साल में देवी मां कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी
तिथि को धरती पर अवतरित हुई। मंदिर प्रांगण में कई देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर निर्मित किए गए हैं।
देवी पद्मावती के अलावा यहाँ कृष्ण-बलराम, सुंदराराजा स्वामी और सूर्य नारायण मंदिर भी काफी महत्वपूर्ण हैं। लेकिन प्रभु
वेंकटेश की पत्नी होने के कारण देवी पद्मावती के मंदिर को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण
माना जाता है।
यह मंदिर तिरुपति रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से लगभग दूरी
5 किलोमीटर की दुरी पर है
जहाँ आप टैक्सी या ऑटो रिक्शा से आराम से जा सकते है । यह मंदिर तिरुमला तिरुपति
देवस्थान के कण्ट्रोल में ही है; यहाँ भी प्रसाद में आपको उचित कीमत पर लड्डू ही
मिलते हैं लेकिन प्रति व्यक्ति सिर्फ एक ।
मंदिर में दर्शन करके जब हम बाहर निकले तो काफी अँधेरा हो चूका था । बाहर खाने
पीने की काफी दुकाने हैं जहाँ दक्षिण भारतीय व्यंजन मिल रहे थे ; लेकिन हमने यहाँ
फलाहार करना ही उचित समझा और खाने पीने से निपट कर 100 रूपये में एक ऑटो रिक्शा
बुक किया जो हमें अपने गेस्ट हाउस तक छोड़ आया ।
पद्मावती मंदिर के अलावा भी तिरुपति में और इसके आसपास कुछ भव्य मंदिर हैं । समय
अभाव और पहले पता न होने के कारण तो मैं यहाँ नहीं जा पाया लेकिन यदि आप तिरुपति
जाते हैं तो इन जगहों पर अवश्य जाएँ । थोड़ी सी जानकारी पद्मावती मंदिर और दूसरे मंदिरों
के बारे में........
श्री पद्मावती समोवर मंदिर, तिरुचनूर
तिरुचनूर, तिरुपति से पांच किलोमीटर दूर है। यह
गाँव आकार में तो छोटा है लेकिन सुंदरता औऱ महत्ता में किसी से भी कम नहीं। इस
गाँव में देवी पद्मावती का सुंदर मंदिर है। देवी पद्मावती को बेहद दयालु माना जाता
है। लोगों की आस्था है कि देवी पद्मावती की शरण में जाने से उनके सभी पाप धुल जाते
हैं और वे उनकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी
पद्मावती का जन्म कमल के फूल से हुआ है जो मंदिर के तालाब में खिला था। मंदिर
प्रांगण में कई देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर निर्मित किए गए हैं। यह मंदिर
अलमेलमंगापुरम के नाम से भी जाना जाता है। लोक मान्यता है कि तिरुपति बालाजी के
मंदिर में माँगी मुराद तभी पूरी होती है जब श्रद्धालु बालाजी के साथ-साथ देवी
पद्मावती का आशीर्वाद भी ले लें। यह मंदिर भगवान वैंकटेश्वर की पत्नी श्री
पद्मावती को समर्पित है। माना जाता है कि भगवान वैंकटेश्वर विष्णु के अवतार थे और पद्मावती स्वयं लक्ष्मी की अवतार थी। यहां
दर्शन सुबह 6:30 बजे से शुरु हो जाता
हैं। शुक्रवार को दर्शन सुबह 8 बजे के बाद शुरु
होता हैं। तिरुपति से तिरुचनूर के
बीच दिन भर ऑटो रिक्शा और बसें चलती हैं।
श्री गोविंदराजस्वामी मंदिर
श्री गोविंदराजस्वामी भगवान बालाजी के बड़े भाई हैं। यह मंदिर तिरुपति का मुख्य
आकर्षण है। इसका गोपुरम बहुत ही भव्य है जो दूर से ही दिखाई देता है। इस मंदिर का
निर्माण संत रामानुजाचार्य ने 1130 ईसवी में की थी।
गोविंदराजस्वामी मंदिर में होने वाले उत्सव और कार्यक्रम वैंकटेश्वर मंदिर के समान
ही होते हैं। वार्षिक बह्मोत्सव वैसाख मास में मनाया जाता है। इस मंदिर के
प्रांगण में संग्रहालय और छोटे-छोटे मंदिर हैं जिनमें भी पार्थसारथी, गोड़ादेवी आंदल और पुंडरिकावल्ली का मंदिर
शामिल है। मंदिर की मुख्य प्रतिमा शयनमूर्ति (भगवान की निंद्रालीन अवस्था) है।
दर्शन
का समय है- प्रात: 9:30 से दोपहर 12:30, दोपहर 1:00 बजे से शाम 6 बजे तक और शाम 7:00 से रात 8:45 बजे तक।
श्री कोदादंरमस्वामी मंदिर
यह मंदिर तिरुपति के मध्य में स्थित है। यहां सीता, राम और लक्ष्मण की पूजा होती है। इस मंदिर का निर्माण चोल राजा ने दसवीं
शताब्दी में कराया था। इस मंदिर के
ठीक सामने अंजनेयस्वामी का मंदिर है जो श्री कोदादंरमस्वामी मंदिर का ही उपमंदिर है। उगडी और श्री
रामनवमी का पर्व यहां बड़े धूमधाम से
मनाया जाता है ।
श्री कपिलेश्वरस्वामी मंदिर
यह तिरुपति का एकमात्र शिव
मंदिर है। यह तिरुपति से तीन किलोमीटरदूर उत्तर में तिरुमला की पहाड़ियों के नीचे स्थित है। यहां पर कपिला
तीर्थम नामक पवित्र झरना भी है। इसे
अलवर तीर्थम के नाम से भी जाना जाता है। यहां महाबह्मोत्सव, महा शिवरात्रि, स्खंड षष्टी और अन्नभिषेकम बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं। वर्षा ऋतु में झरने के आसपास
का वातावरण बहुत ही मनोरम होता है। कपिल
तीर्थम जाने के लिए बस और ऑटो रिक्शा यातायात का मुख्य साधन हैं।
श्रीकालहस्तीश्वर मंदिर
श्रीकालाहस्ती आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में
तिरुपति शहर के पास स्थित श्रीकालहस्ती नामक कस्बे में एक शिव मंदिर है। ये मंदिर
पेन्नार नदी की शाखा स्वर्णामुखी नदी के तट पर बसा है और कालहस्ती के नाम से भी
जाना जाता है। दक्षिण भारत में
स्थित भगवान शिव के तीर्थस्थानों में इस स्थान का विशेष महत्व है। ये तीर्थ नदी के तट से पर्वत की तलहटी तक फैला
हुआ है और लगभग २००० वर्षों से इसे दक्षिण काशी के नाम से भी जाना जाता है । दक्षिण के पंचतत्व लिंगों में यह वायु तत्त्वलिंग माना जाता है। यह
मंदिर विशाल है। लिंगमूर्ति वायुतत्त्व मानी जाती है, अतः पुजारी भी उसका स्पर्श नहीं कर सकता। मूर्ति के पास स्वर्णपट्ट
स्थापित है। उसी पर माला आदि चढ़ाई जाती है। इस मूर्ति में मकड़ी, सर्पफण तथा हाथी दांत के चिह्न स्पष्ट दिखते हैं। सर्वप्रथम इन्हीं
ने इस लिंग की आराधना की है। मंदिर के भीतर ही पार्वती का पृथक् मंदिर है। परिक्रमा में गणेश, कई शिवलिंग, कार्तिकेय, चित्रगुप्त, यमराज, धर्मराज, चण्डिकेश्वर, नटराज, सूयं बाल सुब्रह्मण्य, लक्ष्मी-गणपति, बाल गणपति, कालभैरवादि की मूर्तियाँ हैं। मंदिर में ही भगवान पशुपति तथा धनुर्धर
अर्जुन की मूर्तियाँ हैं।
अगली पोस्ट में आपको सप्त पुरियों में से एक कांचीपुरम लेकर चलेंगे तब तक आप
यहाँ की कुछ तस्वीरें देखिये ।
इस यात्रा के पिछले भाग पढ़ने के लिए नीचे लिंक उपलब्ध हैं ।
प्रवेश द्वार और पीछे दिख रहा मंदिर |
भक्तों की लाइन |
देवी पद्मावती और भगवान वैंकटेश्वर |
मंदिर के बाहर बाज़ार |
मंदिर के बाहर बाज़ार |
मंदिर के बाहर बाज़ार |
तिरुमला |
पैदल पथ का चित्र |
गेस्ट हाउस मे लगी फोटो |
तिरुमला और तिरुपति में बीच बना टोल गेट |
Lord Sri Govindaraja Swamy Varu with His Concerts in Tirupati |
lord Venkateswara Swamy with His Concorts in Mangapuram |
तिरुमला जाने वाला पैदल पथ |
तिरुमला जाने वाला पैदल पथ |
श्रीकालहस्तीश्वर मंदिर - wikipedia commons |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-04-2017) को "ग़म क्यों हमसाया है" (चर्चा अंक-2953) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी . स्नेह बनाये रखिये .
DeleteNice description naresh ji
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई .
DeleteNice Post. Jai Devi Padmavati.
ReplyDeleteधन्यवाद अजय जी .
Deleteबहुत बढ़िया पोस्ट नरेश जी
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिमा जी .
Deleteअगले भाग का इंतजार रहेगा ।
ReplyDeleteजल्दी ही इंतजार ख़त्म होगा .
Deleteबहुत बढ़िया bsnl वाले बाबा ।
ReplyDeleteधन्यवाद हरेंदर भाई .
DeleteTirupati ki badiya Ghumakkadi
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई .
DeleteAs usual, nice description.
ReplyDeleteJai Sri Padmavati. The memories of all my journey got refreshed because of you. I got a lot of pleasure there. Thanks Sehgal Sahib ❤
बेहतरीन पोस्ट .जय देवी पद्मावती .
ReplyDeleteधन्यवाद जी .जय देवी पद्मावती .
DeleteWell narrated post Naresh ji . I always admire your efforts to write detail about the particular place . You give all the necessary information in your post . keep it up ......
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी . स्थान विशेष के बारे में जानकारी देना ही ब्लॉग लिखने का प्राथमिक उदेश्य है .
Deletenice description
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी .
Deleteजय मा जगदम्बे, वैंकटेश्वर स्वामी की जय । दक्षिण भारतीय संस्कृति से परिचय कराता आपका यह लेख ज्ञानवर्धक और सराहनीय है ।
ReplyDeleteधन्यवाद महेशानंद कुकरेती जी .
Deleteबहुत अच्छी जानकारी है फिर से। भविष्य में कभी जाने का कार्यक्रम बना तो आपकी ब्लॉग काफी काम आने वाली है।
ReplyDeleteधन्यवाद अनित कुमार जी । ब्लॉग लिखने का मुख्य उदेशय ही यही है की किसी दूसरे के काम आए ,लिखना सफल हुआ ।
Deleteजय भगवान वैंकटेश्वर 🙏
ReplyDeleteजय माँ देवी पद्मावती 🙏
9312212534
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