Monday, 29 January 2018

Rudranath Yatra : Pung Bugyal to Panar Bugyal

रुद्रनाथ यात्रा : पुंग बुग्याल से पनार


पुंग बुग्याल (2285 मीटर ) में हम उम्मीद से पहले पहुँच गए । यहाँ आने में हमें दो घंटे से भी कम समय लगा । 9 बजे सगर(1700 मीटर) से चले थे ,15-20 मिनट चांद्कोट भी रुके और अब ठीक ग्यारह बजे हम पुंग बुग्याल में थे । पिछले दो घंटे में हम लगभग 600 मीटर ऊपर आ गए थे । पुंग बुग्याल में झोपडी नुमा एक दुकान है जहाँ खाने-पीने और रात रुकने की सुविधा भी है। स्थानीय भाषा में इसे छानी बोलते हैं । छानी का मालिक बाहर ही खड़ा था हमें देखकर बड़ा खुश हुआ और आव-भगत में लग गया। लम्बा चौड़ा मखमली घास का मैदान देखकर हम भी बाहर धुप में ही लेट गए । तब तक दुकान वाला पानी ले आया । सब ने पहले पानी पिया और फिर वह हमसे खाने के बारे में पूछने लगा । हमारी खाने की इच्छा नहीं थी फिर भी उसके आग्रह करने पर गौरव और आकाश ने अपने लिए मेगी बनवा ली। सुशील भी बोल उठा कि भाई जी,  हरी मिर्च है तो मेरी मैगी भी बना दो नहीं तो रहने दो ! लेकिन अफसोस हरी मिर्ची यहाँ भी नहीं मिलेगी। दोनों उदास ,सुशील हरी मिर्च न मिलने से ,दुकानदार एक मैग्गी का आर्डर कैंसिल होने से । थोड़ी ही देर में मैग्गी और चाय बन कर आ गई। गौरव और आकाश ने मैग्गी निपटाई फिर हम सब ने चाय। थोड़ी देर सुस्ताए और फिर आगे की लंबी यात्रा के लिए चलने को तैयार हो गए।

पनार बुग्याल ,देवता और छानी

Thursday, 25 January 2018

Rudranath Yatra : Chamoli to Pung Bugyal


रुद्रनाथ यात्रा : चमोली से पुंग बुग्याल

पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि कल्पेशवर मंदिर के दर्शन के बाद हम चमोली की ओंर चल दिए और रास्ते में गरुड़ चट्टी में एक होटल में रात्रि विश्राम के लिए रुक गए। अब उससे आगे ...

अगले दिन सुबह 5 से पहले ही सब उठ गए । हमारे कमरे में एक ही  टॉयलेट था और तैयार सबको होना था तो कल सुबह की तरह यहाँ भी आसपास मुआयना किया तो पाया कि होटल के कई कमरे खुले थे और खाली भी थे ,बस फिर क्या था वहाँ भी कब्ज़ा कर लिया और जल्दी से सभी तैयार हो कर नीचे गाड़ी पर पहुँच गए । नीचे ढाबा अभी बंद था और हमे रात के खाने की पेमेंट करनी थी । मालिक की खोजबीन शुरू की लेकिन उसका मालूम ही नहीं था वो कहाँ सोया हुआ है , बिना पेमेंट दिए हम जाना नहीं चाहते थे , ढाबे के सामने ही एक चाय की दुकान थी जो इस दौरान खुल चुकी थी । वहां हमने चाय का आर्डर दिया ,जब तक चाय बनकर आती, ढाबे वाले का पता चल गया था ,उसे कमरे पर जाकर उठाया और रात के खाने के पैसे दिये । रात को ज्यादा पी लेने से वो उठ ही नही रहा था। चाय के साथ गुड डे बिस्कुट का सेवन कर हम चमोली की तरफ़ चल दिए ।

 

Monday, 22 January 2018

Uttrakhand Yatra : Kalpeshwar ,the fifth Kedar

पंचम केदार -कल्पेश्वर
यात्रा तिथि : 1 अक्टूबर 2017

पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कैसे ख़राब रास्ते से होते हुए हम शाम को 6 बजे उर्गम घाटी पहुँचे और हलके अँधेरे में ही कल्पेश्वर मंदिर की ओंर चल दिए और जब मंदिर के काफी पास पहुँच गए तो अचानक रास्ता झाड़ियों में लुप्त हो गया । अब उससे आगे ...

नदी की बढती आवाज से इतना तय था कि हम इसके काफ़ी पास तक पहुंच चुके हैं और यहीं-कहीं से हमें नीचे नदी के तट पर उतरना था लेकिन अँधेरा होने के कारण रास्ता नहीं मिल रहा था । नदी के दूसरी तरफ काफी ऊपर एक छोटा सा बल्ब जग रहा था । हमने अनुमान लगाया कि जरूर ये मंदिर ही होगा लेकिन ऐसे बिना कन्फर्म किये वहाँ कैसे जाएँ ? आस पास कोई नहीं था जिससे कुछ पूछते । थोड़ा पीछे आये ,वहाँ एक जगह काफी सरिया ,बजरी और दूसरी निर्माण सामग्री गिरी हुई थी, उसके पास ही एक छोटा सा लेबर का कमरा भी था , हम वहीँ पहुँच गए । कमरे में कुछ बिहारी मजदुर खाना बना रहे थे । उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि जहाँ रास्ता समाप्त हो रहा है वहीँ से आपको नीचे नदी तक उतरना है ,फिर पुल से नदी को पार कर ऊपर जाना है और जहाँ बल्ब जल रहा है वही मंदिर है। जब उनसे पूछा कि तुम यहाँ किस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हो तो उन्होंने बताया की आगे नदी पर अब पक्का RCC पुल बन रहा है । पहले जो लोहे वाला पुल था वो बाढ़ में बह गया था ,अब लकड़ी का अस्थायी पुल बना है । चलने लगे तो वो बोले , ध्यान से गुजरना , पुल कमजोर है अगर गिर गए गए तो सीधा !!!!!!!!!!!!!!  
  
कल्पेश्वर महादेव 

Thursday, 18 January 2018

Uttrakhanad Yatra : Karn Paryag and Urgam Valley

भाग 3. कार्तिक स्वामी - कर्णप्रयाग - उर्गम घाटी :
यात्रा तिथि : 1 अक्टूबर 2017  
कार्तिक स्वामी से दर्शन के बाद जब हम कनकचौरी गांव पहुंचे तो दोपहर के 12 बजने वाले थे । हमें आने –जाने ,रुकने और फोटोग्राफी सब मिलाकर तीन घंटे लगे । सुबह जब यहाँ से चढ़ाई शुरू की थी तो मौसम में काफी ठंडक थी लेकिन इस समय यहाँ काफी तेज़ धूप थी। गाड़ी में आकर सब ने अपने स्वेटर – जैकेट उतार कर दोबारा से सारा सामान सेट किया और आगे की यात्रा जारी कर दी। यही सड़क आगे मोहनखाल - पोखरी होते हुए कर्णप्रयाग की ओर निकल जाती है । यदि हम रुद्रप्रयाग वापस आकर कर्णप्रयाग जाते तो हमें लगभग 40 किलोमीटर अधिक चलना पड़ता। यहाँ से पोखरी लगभग 15 किलोमीटर दूर है । पोखरी एक बड़ा क़स्बा है ,यहीं से एक सड़क गोपेश्वर की ओर भी जाती है। वहाँ एक तिराहा है जहाँ से बाएं हाथ वाली सड़क गोपेश्वर की तरफ़ और दायें हाथ वाली सड़क कर्णप्रयाग चली जाती है । इस तिराहे से हम कर्णप्रयाग की ओर  चल दिए । सारा रास्ता बेहद खूबसूरत और हरियाली से भरा हुआ है ।

कर्ण प्रयाग में अलकनंदा (बाएं) और पिंडर (दायें )का संगम 

Tuesday, 16 January 2018

Uttrakhanad Yatra - Kartik swami

उत्तराखण्ड यात्रा: कार्तिक स्वामी, कल्पेश्वर, रुद्रनाथ और कालीमठ
भाग -2 :कार्तिक स्वामी ( Kartik swami Temple)
पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ।
ब्यासी से आगे गाड़ी की ब्रेक से कुछ आवाज आने लगी । ब्रेक काम तो कर रहे थे लेकिन जैसे ही ब्रेक लगाते तो रगड़ की आवाज आती । पहाड़ी सफ़र में तो ब्रेक बिलकुल ठीक रहनी चाहिए इसलिए हम किसी कार मैकेनिक की दुकान देखते हुए चल रहे थे । देव प्रयाग में कोई दुकान नहीं मिली । आज दशहरा था तो कई दुकाने बंद भी थी । सावधानी से गाड़ी चलाते हुए हुए हम श्रीनगर पहुँच गए वहाँ एक कार मैकेनिक की दुकान मिल गयी । मैकेनिक ने जाँच करने के बाद बताया कि कार के ब्रेक शू घिस गए हैं ,बदलने होंगे । पास में ही एक स्पेयर पार्ट्स की दुकान थी ,उससे ब्रेक शू लेकर मैकेनिक ने जल्दी से बदल डाले । इस सारी प्रक्रिया में आधा घंटा लग गया । अब तक शाम के 6 बज चुके थे और हल्का अँधेरा शुरू हो चूका था। गौरव से बात हुई वो रुद्रप्रयाग पहुँचने वाला था । रुद्रप्रयाग से ही कनकचौरी के लिए सड़क अलग कट जाती है । कार्तिक स्वामी वाले इस मार्ग पर हम पहले कभी भी नहीं गए थे। गौरव को भी ये रास्ता नहीं मालूम था और वो रुद्रप्रयाग रूककर आगे का सफ़र हमारे साथ ही करना चाहता था 

                     कार्तिक स्वामी का यह चित्र -मेरे मित्र रविंदर भट्ट (रांसी वाले) के सौजन्य से 

Thursday, 11 January 2018

Uttrakhanad Yatra - Kartik swami, Kalpeshwar, Rudrnath and Kalimath

उत्तराखण्ड यात्रा: कार्तिक स्वामी, कल्पेश्वर, रुद्रनाथ और कालीमठ
पह्ला भाग :
पिछले वर्ष कल्पेश्वर -रुद्रनाथ जाने की बहुत इच्छा थी । दो अवसर भी आये लेकिन किसी न किसी कारण से दोनों बार नहीं जा सका । इसकी भरपाई पिछले साल नवम्बर में मद्महेश्वर जाकर हुई लेकिन दो अवसर गवाने के बाद इस साल रुद्रनाथ जाने की इच्छा और भी दृढ़ हो गयी थी । ऐसे तो उत्तराखण्ड  में आप साल के किसी भी महीने घुमक्कडी पर जा सकते हैं लेकिन मुझे ट्रेक के लिए सितम्बर –अक्टूबर का समय बेहद पसंद है । एक तो इस समय चार धाम के यात्रियों की संख्या काफी कम हो जाती है और भीड़ नहीं रहती , दूसरा मानसून लगभग ख़त्म हो जाने से भूस्खलन का खतरा भी काफी कम हो जाता है जिससे यात्रा में बाधा नहीं पड़ती । तीसरा कारण इन दिनों पहाड़ों पर हरियाली भी खूब होती है और खूबसूरत नज़ारे देखने को मिलते हैं ,नवम्बर शूरु होते ही ये घास पीली पड़ने लगती है।  
कार्तिक स्वामी