उत्तराखण्ड यात्रा: कार्तिक
स्वामी, कल्पेश्वर, रुद्रनाथ और कालीमठ
भाग -2 :कार्तिक स्वामी ( Kartik swami Temple)
ब्यासी से आगे गाड़ी की ब्रेक से कुछ आवाज आने लगी । ब्रेक
काम तो कर रहे थे लेकिन जैसे ही ब्रेक लगाते तो रगड़ की आवाज आती । पहाड़ी सफ़र में
तो ब्रेक बिलकुल ठीक रहनी चाहिए इसलिए हम किसी कार मैकेनिक की दुकान देखते हुए चल
रहे थे । देव प्रयाग में कोई दुकान नहीं मिली । आज दशहरा था तो कई दुकाने बंद भी
थी । सावधानी से गाड़ी चलाते हुए हुए हम श्रीनगर पहुँच गए वहाँ एक कार मैकेनिक की
दुकान मिल गयी । मैकेनिक ने जाँच करने के बाद बताया कि कार के ब्रेक शू घिस गए हैं
,बदलने होंगे । पास में ही एक स्पेयर पार्ट्स की दुकान थी ,उससे ब्रेक शू लेकर
मैकेनिक ने जल्दी से बदल डाले । इस सारी प्रक्रिया में आधा घंटा लग गया । अब तक
शाम के 6 बज चुके थे और हल्का अँधेरा शुरू हो चूका था। गौरव से बात हुई वो
रुद्रप्रयाग पहुँचने वाला था । रुद्रप्रयाग से ही कनकचौरी के लिए सड़क अलग कट जाती
है । कार्तिक स्वामी वाले इस मार्ग पर हम पहले कभी भी नहीं गए थे। गौरव को भी ये रास्ता
नहीं मालूम था और वो रुद्रप्रयाग रूककर आगे का सफ़र हमारे साथ ही करना चाहता था ।
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कार्तिक स्वामी का यह चित्र -मेरे मित्र रविंदर भट्ट (रांसी वाले) के सौजन्य से
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मेरे अनुमान के अनुसार हमें रुद्रप्रयाग पहुँचने में कम से
कम सात बज जाने थे । कनकचौरी उससे 40 किलोमीटर आगे एक लिंक रोड पर है । यदि हम
लगातार भी चलते तो 9 बजे से पहले वहां पहुँचना संभव नहीं था । वहाँ जाकर रुकने का
ठिकाना भी तय नहीं था इसलिए अनजान पहाड़ी मार्ग पर रात को ड्राइव करके देर रात वहाँ
पहुँचने से, रात को रुद्रप्रयाग ही रुककर सुबह जल्दी निकलना मुझे ज्यादा बेहतर लगा
। साथियों से विचार किया तो उन्होंने भी इसका समर्थन किया और फिर इस बात की सूचना
गौरव को दे दी गयी । उसे बोल दिया कि सबके लिए रुद्रप्रयाग में कोई ठीक सा बज़ट
होटल बुक कर लो और वहां आराम करो और हमें होटल की लोकेशन भेज दो । थोड़ी देर में हम
वहां पहुँच रहे हैं । गौरव ने ऐसा ही किया । रुद्रप्रयाग के शुरू में ही मेन सड़क
पर स्तिथ तुलसी होटल में एक 5 बेड वाला कमरा बुक कर लिया और हमें उसकी लोकेशन भेज दी
। हमने गाड़ी रुद्रप्रयाग की ओर भगा दी . श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच सड़क बेहतर बनी
है। रात को ट्रैफिक कम होने से गाड़ी चलने का मजा आ गया । रात होने से किसी मोड़ पर
हॉर्न बजाने की भी जरूरत नहीं पड़ी ।
लगभग एक घंटे में हम रुद्रप्रयाग पहुंच गए, GPS की मदद से
सीधा होटल पहुंच गए और रिसेप्शन से अपना कमरा पूछ कर सीधा कमरे में चले गए । मिलने-जुलने
की औपचारिकता के बाद होटल के कमरे के पीछे बनी बालकोनी में बैठकर गपशप मारने लगे।
काफी देर तक यह महफिल जमी रही । होटल में ही भोजनालय भी था, 8:00 बजे के बाद वहां
भोजन भी शुरू हो गया। सागर को भूख लगी थी तो वो पहले जाकर खाना खा आया और आकर सो
गया । हम भी लगभग 9:00 बजे खाना खाने चले गए और खाना खाकर बाहर टहलने निकल गए । थोड़ी
देर घुमने के बाद कमरे पर आ कर सो गए।
अगले दिन सुबह सभी 5:00 बजे से पहले ही उठ गए थे । कमरे में
बाथरूम में एक ही था, जब आसपास मुआवना किया तो साथ वाला कमरा खुला मिला तो उस कमरे
के बाथरुम पर भी कब्जा कर लिया और सभी लोग नहा धोकर तैयार हो गए। सुबह 6:00 बजे से
पहले ही होटल से चेक आउट कर गाड़ी में पहुंच गए। अभी यहां चाय मौजूद मौजूद नहीं थी
तो यह फैसला किया कि चाय आगे रास्ते में ही कहीं पिएंगे ।
होटल से निकलने से बाद हमने गौरव के साथी सागर को गाड़ी में
बैठ जाने को कहा। बाहर मौसम में हल्की ठंडक भी थी और हमारी गाड़ी में सीट भी खाली
थी लेकिन उसने कहा मैं बाइक पर ही भैया के साथ जाऊंगा । हमने उनका सारा सामान लेकर
गाड़ी में रख दिया ताकि वो बाइक पर आराम से सफ़र कर सकें । सुबह ठीक 6 बजे हम कनकचौरी
गांव की ओर चल दिए। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ की तरफ जाने वाले मार्ग पर अलकनंदा का
पुल पार करते ही एक रास्ता दाएं तरफ जाता है। यही मार्ग रुद्रनाथ – पोखरी मार्ग है ।
इसी सड़क पर ,यहाँ से लगभग 40
किलोमीटर कनकचौरी गांव पड़ता है, जहाँ से कार्तिक स्वामी मंदिर जाने के लिए तीन
किलोमाटर का ट्रैक है । सड़क अच्छी बनी थी और ट्रैफिक भी नाम मात्र ही था हम जल्दी
से अपनी मंजिल कार्तिक स्वामी की ओर चल पड़े। शुरू में रुद्रप्रयाग से लगातार चढ़ाई
है, सड़क अलकनंदा के साथ साथ ही है .जैसे जैसे ऊंचाई बढ़ रही थी ,अलकनंदा घाटी गहरी
होती जा रही थी । रुद्रप्रयाग जहाँ लगभग 900 मीटर की ऊँचाई पर है वहीँ कनकचौरी
लगभग 2300 मीटर की ऊँचाई पर
है और कार्तिक स्वामी मंदिर 2600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
थोड़ा सा आगे चलने पर ही हमें एक चाय की दुकान खुली मिली,
रिटायर्ड फौजी की दुकान थी ,वहीँ गाड़ी
रोक कर चाय का आर्डर कर दिया गया। बैग में बिस्कुट और खाने-पीने का सामान पहले से
ही था चाय के साथ हल्का नाश्ता भी कर लिया। चाय ब्रेक के बाद आगे की यात्रा पर चल
दिए। रास्ते में कई गाँव हैं । थोड़ा और आगे जाने पर रास्ते में एक चोपता गांव है लेकिन
यह तुंगनाथ वाला चोपता नहीं है बल्कि एक काफी बड़ा गांव है। तुंगनाथ वाले चोपता
में कोई आबादी नहीं है मात्र 10-12 दुकानें ही है लेकिन यह गाँव काफी बड़ा और
समृद्ध दिख रहा था। दूर तक फैली हरियाली ,सीडीदार खेत, बलखाती सड़क, ठंडी ठंडी हवा
और सुंदर दृश्यावली । किसी की मुसाफिर को रुकने को मजबूर करने के लिए ये कारण
पर्याप्त हैं । हमने भी यहां गाड़ी रोक ली । कुछ देर फोटोग्राफी की गई और यहाँ की
सुन्दरता को आखों के रास्ते अपने ह्रदय पटल पर अंकित कर फिर से कार्तिक स्वामी
मंदिर की तरफ चल दिए ।
हम सुबह लगभग 8:30 बजे कनकचौरी गांव पहुंच गए, गांव ज्यादा
बड़ा नहीं है दो दुकानें खाने पीने के लिए थी उसमें से भी एक तो बंद पड़ी थी और जो
खुली थी उस पर काफी लोग खा-पी रहे थे, हमने भी 5 मैग्गी का ऑर्डर दे दिया। कुछ देर
में मैग्गी तैयार हो गयी ,तब तक हम इधर उधर नजारों का आनंद लेते रहे। खाने और चाय
पीने के बाद मंदिर की तरफ़ चल दिए। नीचे सड़क से ही मंदिर ऊपर दूर पहाड़ की चोटी पर
दिखाई देता है। यहां से मंदिर की दूरी 3 किलोमीटर है, मंदिर के प्रवेश द्वार के
पास ही दो प्रसाद बेचने वाले खड़े थे , उनके आग्रह करने पर हमने प्रसाद भी ले लिया
और लगभग सुबह 9 बजे कार्तिक स्वामी मंदिर की ओर चढ़ाई शुरू कर दी।
तीन किमी का यह रास्ता बेहद खूबसूरत है। बांज और बुरांश का
घना जंगल है। विभिन्न किस्मों के छोटे -2 फूल पूरे रास्ते खिले हुए थे । अधिकतर
रास्ता कच्चा ही था इसलिए बारिश में यहाँ बेहद फिसलन होती होगी । कई जगह बड़े बड़े
पत्थरों से कुछ सीड़ियाँ भी बनी है । सारा रास्ता रिज के साथ –साथ ऊपर चढ़ता है । रास्ते में पानी की कोई सुविधा नहीं है इसलिए अपने साथ पानी ले जाना ही ठीक
है। एक दो जगह यात्री विश्राम के लिए शेड लगाने का काम भी चल रहा था। कनकचौरी गाँव
से थोड़ा ऊपर ,यात्रियों के रुकने के लिए कमरे भी बन रहे थे।
हम मस्ती करते हुए चलते रहे । रास्ते में खूब फोटोग्राफी भी
की । सुबह लगभग 10 बजे पुजारी जी की कमरे के पास पहुँच गए । यहाँ से मंदिर आधा
किलोमीटर और आगे है । पूरे रास्ते बड़ी –बड़ी पत्थर की सीड़ियाँ बनी है। रास्ते में
भैरव नाथ का मंदिर भी है । ठीक सवा दस बजे हम
कार्तिक स्वामी मंदिर में थे । मंदिर के
चारों तरफ घने बादल छाये हुए थे । एक भी चोटी नही दिख रही थी जिसके लिए यह मंदिर प्रसिद्ध है । लगभग आधा घंटा
यहाँ रुके और फिर वापसी शुरू कर दी । पुजारी जी से मिले ,उन्हें बताया की यहाँ
रुकने के लिए हमने ही आपको फोन किया था लेकिन किसी कारण वश रात को यहाँ पहुँच न
सके । पुजारी जी ने चाय के लिए रुकने को कहा लेकिन हम उनसे विदा ले तेजी से नीचे
उतर गए । उतरने में हमें एक घंटा ही लगा ।
कनकचौरी गांव पहुंच कर ,गाड़ी में बैठ अपनी अगली मंजिल कल्पेश्वर की और चल दिए ।
कार्तिक स्वामी
कार्तिक स्वामी, रुद्रप्रयाग जिले के पवित्र पर्यटक स्थलों में से एक है।
रुद्रप्रयाग शहर से लगभग 40 किमी की दूरी पर स्थित इस जगह पर भगवान शिव के पुत्र, भगवान कार्तिकेय, को समर्पित एक मंदिर है। इस मंदिर तक
पहुंचने के लिये कनकचौरी तक सड़क मार्ग है और उससे आगे तीन कि०मी० की पैदल यात्रा
करनी होती है। कनकचौरी गाँव रुद्रप्रयाग – पोखरी मार्ग पर स्थित है । यह मंदिर बारह
महीने श्रद्धालुओं के लिये खुला रहता है, समुद्र की सतह से 2600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित मंदिर के
प्रांगण से हिमालय की अनेक पर्वत श्रॄंखलाओं के सुगम दर्शन होते हैं। अगर आप
भाग्यशाली हो और मौसम साफ़ हो तो इस पवित्र स्थल से केदारनाथ, सुमेरू, चौखंबा, नीलकंठ, द्रोनागिरी, नंदा देवी आदि पर्वत शिखरों के भव्य व मनोहारी दर्शन होते हैं।
पुराण कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों से कहा कि वे पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगा कर आएं और घोषित किया कि जो भी पहले चक्कर लगा कर यहाँ आएगा वह माता-पिता की पूजा करने का प्रथम अवसर प्राप्त करेगा। भगवान श्री गणेश, जो कि शिव जी के दूसरे पुत्र थे, ने अपने माता-पिता के चक्कर लगाकर (श्री गणेश के लिए उनके माता-पिता ही ब्रह्माण्ड थे) यह प्रतियोगिता जीत ली, जिससे कार्तिकेय क्रोधित हो गए। तब उन्होंने अपने शरीर की हड्डियाँ अपने पिता को और मांस
अपनी माता को दे दिया। ये हड्डियाँ अभी भी मंदिर में मौजूद हैं जिन्हें
हज़ारों भक्त पूजते हैं।
इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये .
अगला भाग
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इसी होटल में रुके थे . |
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चोपता गाँव |
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मैं और सुशील मल्होत्रा (सर्फ़ के धुले ) |
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यात्रा के चारों साथी एक साथ |
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ये भाई साहेब सेल्फियों में ही व्यस्त हो गए .कहा भी कि हम जा रहे हैं ,गाड़ी में बैठ जाओ , लेकिन न . फिर क्या.... आधा किलोमीटर की दौड़ लगवा दी . |
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कार्तिक स्वामी मंदिर जाने का रास्ता |
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एक और सेल्फी पीड़ित |
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दिसम्बर में एक अन्य मित्र द्वारा लिया गया चित्र |
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हमारे समय बादलों से घिरा कार्तिक स्वामी मंदिर
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कार्तिक स्वामी |
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कार्तिक स्वामी |
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कार्तिक स्वामी का वाहन |
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कार्तिक स्वामी मंदिर |
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मंदिर से खाई का दृश्य |
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वापसी में |
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ऊंचाई बढ़ा चढ़ा कर लिखी हुई है |
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मंदिर द्वार |
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पुजारी जी का निवास |
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मंदिर की और जाती सीड़ियाँ |
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पुजारी जी |
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कार्तिक स्वामी मंदिर का gps रिकॉर्ड |
गजब यात्रा वृत्तांत। लग रहा था मैं भी आपके साथ साथ ही चल रहा हूँ कार्तिक स्वामी की रहो पर
ReplyDeleteधन्यवाद अक्षय . आते रहें .
Deleteजय हो शिवपुत्र कार्तिक स्वामी जी की
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी .जय कार्तिक स्वामी .
Deleteyaade taja kar di apne sehgal ji ...bahut hi sundar
ReplyDeleteधन्यवाद गौरव .
Deleteजय भोलेनाथ...🙏
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल .जय भोले की .
DeleteNice write-up with lot of beautiful pictures.
ReplyDeleteधन्यवाद अजय .
Deleteवाह सहगल साहब बहुत अच्छा लेख है और फ़ोटो तो नजर से नही हटते है बहुत बढ़िया पोस्ट है
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद .
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ReplyDeleteसुंदर लेख, सुंदर चित्र,और सर्फ़ में धुल के आप भी सुंदर लग रहे थे😉
ReplyDeleteधन्यवाद ओम भाई ।💐💐
DeleteExcellent.
ReplyDeleteThanks 💐💐
Deleteबढ़िया नरेश भाई
ReplyDeleteकमाल का इतेफाक है कि मैं भी होटल तुलसी में रुका था औऱ फौजी भाई के यंहा चाय पी थी
मस्त वर्णन शानदार फ़ोटो,👍🙏
धन्यवाद अजय भाई । फिर तो कनक चौरी में मैग्गी भी खायी होगी ।
Deletezabardast t-log... Kartik swami is in my wish list.. dekho kab jate hain
ReplyDeleteधन्यवाद तिवारी जी . यहाँ आसान ट्रैकिंग है .आप आराम से जा सकते हैं .
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ReplyDeleteNice informative Post with a lot-of beautiful pictures.
ReplyDeleteधन्यवाद संजीव जी .
Deleteकार्तिक स्वामी ट्रैक सच मे खूबसूरत है.....और हमें भोलेनाथ की कृपा से बर्फ में ट्रैक का सौभाग्य मिला और शानदार दृश्यावली भी....
ReplyDeleteसुखविंदर भाई को दौड़ा दिया....☺☺
धन्यवाद बड़े भाई जी.
Deleteबहुत सुंदर शब्दो में बंया किया है आपने यह वर्णन, फोटो भी सुंदर लगे। एक जगह आपने लिखा है की हम गाडी ठीक करा कर श्रीनगर की तरफ चल पडे शायद उस जगह रूद्रप्रयाग लिखा जाना चाहिए था। बाकी सब बहुत अच्छे से लिखा है।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन जी, गलती पकड़ने और बताने के लिए शुक्रिया .सुधार कर दिया है .
Deleteवाह बहुत शानदार सहगल साहब...मुझे कार्तिक स्वामी का मंदिर बेहद पसंद आया....आपकी इस यात्रा ने हमको होली वाले वक्त की याद दिला दी....कार्तिक स्वामी से हिमालय की बहुत सी चोटी के दर्शन होते है बहुत अच्छा लगता है जी
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिक जी. सही कहा,कार्तिक स्वामी का मंदिर बेहद खूबसूरत है .
DeleteGreat post . Great photography. As I read your post, It seems as I am also traveling with you.
ReplyDeleteThanks Dear.
Deleteआपके इस लेख के साथ बहुत बढ़िया यात्रा हुई कार्तिक स्वामी की । चोपता और कनकचौरी गाँव की जानकारी हुई । लेख के साथ चित्र भी बहुत अच्छे लगे
ReplyDeleteधन्यवाद रीतेश जी .संवाद बनाये रखें .
Deleteबहुत बढ़िया वृतांत नरेश जी, लेकिन सुनकर थोडा अजीब लगा कि रात होने से किसी मोड़ पर हॉर्न बजाने की ज़रूरत नहीं पड़ी, रात को तो किसी भी मार्ग पर (खासकर पहाड़ी मार्ग पर तो) गाडी चलाते हुए हॉर्न बजा ही लेना चाहिए ! एक बात पूछना चाहूँगा कि क्या ये मंदिर सर्दियों के दिनों में भी खुला रहता है या ये भी चार धाम की तरह बंद हो जाता है !
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप जी. रात को गाड़ी की हेड लाइट की रौशनी से ही दूर से पता चल जाता है की गाड़ी आ रही है .हॉर्न की जरूरत नहीं पड़ती .कार्तिक स्वामी 12 महीने खुला रहता है .
Deleteरुद्रनाथ से कार्तिक स्वामी जाने वाले सड़क मार्ग का क्या हाल है, मैंने पिछले वर्ष ही किसी ब्लॉग में ही पढ़ा था कि इस मंदिर की ओर जाने वाली सड़क की हालत बहुत बढ़िया नहीं है !
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप जी .ये रुद्रनाथ से नहीं रुद्रप्रयाग से है .रास्ता बिलकुल ठीक था अब कार्तिक स्वामी जाने के लिए .
Deleteचोपता गांव का दृश्य देखकर मैं भी हैरान थी इतनी बस्ती तो मैंने देखी नही थी फिर आगे बढ़ी तो पता चला कि ये तुंगनाथ वाला चोपता नही है☺ कार्तिक स्वामी मन्दिर को पहली बार अपने ग्रुप के मेम्बरों के जरिये देखा था लेकिन तब बर्फ बहुत थी आज बर्फ के बगैर देखना अच्छा लगा ।चलिए आगे कल्पेश्वर की यात्रा पर ----
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ जी .कार्तिक स्वामी मन्दिर काफी रमणीक जगह है .
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