भाग 3. कार्तिक स्वामी - कर्णप्रयाग - उर्गम घाटी :
यात्रा तिथि : 1 अक्टूबर 2017
कार्तिक स्वामी से दर्शन के बाद जब हम कनकचौरी गांव पहुंचे तो दोपहर के 12 बजने वाले थे । हमें आने –जाने ,रुकने और फोटोग्राफी सब मिलाकर तीन घंटे लगे । सुबह जब यहाँ से चढ़ाई शुरू की थी तो मौसम में काफी ठंडक थी लेकिन इस समय यहाँ काफी तेज़ धूप थी। गाड़ी में आकर सब ने अपने स्वेटर – जैकेट उतार कर दोबारा से सारा सामान सेट किया और आगे की यात्रा जारी कर दी। यही सड़क आगे मोहनखाल - पोखरी होते हुए कर्णप्रयाग की ओर निकल जाती है । यदि हम रुद्रप्रयाग वापस आकर कर्णप्रयाग जाते तो हमें लगभग 40 किलोमीटर अधिक चलना पड़ता। यहाँ से पोखरी लगभग 15 किलोमीटर दूर है । पोखरी एक बड़ा क़स्बा है ,यहीं से एक सड़क गोपेश्वर की ओर भी जाती है। वहाँ एक तिराहा है जहाँ से बाएं हाथ वाली सड़क गोपेश्वर की तरफ़ और दायें हाथ वाली सड़क कर्णप्रयाग चली जाती है । इस तिराहे से हम कर्णप्रयाग की ओर चल दिए । सारा रास्ता बेहद खूबसूरत और हरियाली से भरा हुआ है ।
कार्तिक स्वामी से दर्शन के बाद जब हम कनकचौरी गांव पहुंचे तो दोपहर के 12 बजने वाले थे । हमें आने –जाने ,रुकने और फोटोग्राफी सब मिलाकर तीन घंटे लगे । सुबह जब यहाँ से चढ़ाई शुरू की थी तो मौसम में काफी ठंडक थी लेकिन इस समय यहाँ काफी तेज़ धूप थी। गाड़ी में आकर सब ने अपने स्वेटर – जैकेट उतार कर दोबारा से सारा सामान सेट किया और आगे की यात्रा जारी कर दी। यही सड़क आगे मोहनखाल - पोखरी होते हुए कर्णप्रयाग की ओर निकल जाती है । यदि हम रुद्रप्रयाग वापस आकर कर्णप्रयाग जाते तो हमें लगभग 40 किलोमीटर अधिक चलना पड़ता। यहाँ से पोखरी लगभग 15 किलोमीटर दूर है । पोखरी एक बड़ा क़स्बा है ,यहीं से एक सड़क गोपेश्वर की ओर भी जाती है। वहाँ एक तिराहा है जहाँ से बाएं हाथ वाली सड़क गोपेश्वर की तरफ़ और दायें हाथ वाली सड़क कर्णप्रयाग चली जाती है । इस तिराहे से हम कर्णप्रयाग की ओर चल दिए । सारा रास्ता बेहद खूबसूरत और हरियाली से भरा हुआ है ।
कर्ण प्रयाग में अलकनंदा (बाएं) और पिंडर (दायें )का संगम |
लगभग 1 घंटे में हम कर्ण प्रयाग पहुंच गए और अलकनंदा
का पुल पार कर हम बद्रीनाथ वाले मुख्य मार्ग पर आ गए। अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों
के संगम पर कर्णप्रयाग स्थित है। पिण्डर का एक नाम कर्ण गंगा भी है, जिसके कारण ही इस तीर्थ संगम का नाम कर्ण
प्रयाग पडा। कर्ण प्रयाग पहुँचकर ,संगम देखने के लिए हमने एक जगह गाड़ी पार्क की और
प्रयाग देखने चल पड़े । यहाँ एक मंदिर भी बना हुआ है जहाँ से प्रयाग का सुंदर
नजारा देखने को मिलता है। प्रयाग के दर्शन के बाद हमने एक फल वाले की दुकान से
केले और सेब लिए और थोड़ी पेट पूजा की। अब तक दोपहर के 1:30 बज चुके थे और दोपहर के खाने का समय भी
हो रहा था लेकिन फलाहार के बाद फ़िलहाल पेट में शांति थी । खाना आगे कहीं और खाने का
प्लान कर आगे हेलंग के सफर के लिए चल पड़े।
कर्णप्रयाग से आगे बीच-बीच मे रास्ता काफी खराब है, सड़क काफी टूटी हुई है , गड्ढों
से बच कर धीरे -2 चलना पड़ रहा था। 20-22 किलोमीटर आगे नंदप्रयाग आया लेकिन यहाँ हम
रुके नहीं ,आगे चलते रहे। यहाँ संगम सड़क से दूर है और काफी आगे जाने के बाद दिखायी
देता है। रास्ता ख़राब होने से जगह-जगह ट्रैफिक जाम भी मिल रहे थे। किसी तरह चमोली पहुँचे
लेकिन इसे भी बिना रुके पार कर लिया । गौरव को भी बोल दिया था की आगे भीड़ से दूर
,किसी खुली जगह पर खाना खायेंगे । चमोली से आगे सड़क अच्छी बनी थी ,हमने भी खूब
गाड़ी भगा ली । आगे बिरही गंगा पर बने पुल को पार करते ही एक अच्छा सा रेस्टोरेंट
देख कर हम ने गाड़ी रोक ली और खाने के लिए रुक गए। लेकिन अभी गौरव और सागर यहाँ नहीं
पहुंचे थे। हम चमोली से काफी आगे आ चुके थे लेकिन वह कहीं पीछे छूट गए थे। गौरव से
फोन पर बात हुई , मालूम हुआ अभी वे काफी पीछे है तो इसलिए उनके इंतजार में हम रेस्टोरेंट
के बाहर ही बैठ जाए ताकि वो हमें देख कर रुक जायें । उनको आने में लगभग आधा घंटा
लग गया उनके आने के बाद हमने एक साथ ही खाना खाया । खाना खाकर साथ ही चाय का आर्डर
भी दे दिया ।
चाय पीकर जब फिर से यात्रा शुरू की तो शाम के 4:30 बज चुके थे। आज का प्रोग्राम भी बिगड़ता दिख रहा था, मुझे
आशंका हो रही थी कि हम रात को सग्गर गांव नहीं पहुंच पाएंगे। चलो देखते हैं !!!
गाड़ी में बैठ कर शीघ्रता से हेलंग की तरफ़ चल दिए। ड्राइविंग सीट पर अब सुशील बैठ
गया ,सुबह से मैं ही गाड़ी चला रहा था इसलिए थोड़ा आराम करने के लिए मैं उसके साथ ही
बैठ गया। सुखविंदर को खाने के बाद नींद आ गई और वो पीछे गाड़ी में पसर कर सो गया।
हेलंग तक अलकनंदा हमारे साथ-साथ बाएं तरफ बह रही थी और हम उसके बहाव के विपरीत
दिशा में जा रहे थे। हेलंग से बाईं तरफ उर्गम घाटी के लिए रास्ता कटता है। हेलंग
आकर मैं फिर से ड्राइविंग सीट पर आ गया क्योंकि सुशील के बार बार फोन आ रहे थे ।
जैसे ही हेलंग से उर्गम घाटी जाने वाले रास्ते पर आए तो गाड़ी को बेहद धीरे चलाना पड़ा।
रास्ते की हालत बहुत खराब थी । हेलंग से लगभग एक किलोमीटर आगे तक सडक पर उतराई है,
फिर नीचे अलकनन्दा को पुल से पार कर दूसरी
तरफ लगातार ऊपर चढना होता है।
हम भी अलकनंदा को पुल से पार कर हम
उर्गम घाटी की तरफ चल दिए । जैसे-जैसे आगे बढ़ते गए रास्ता बद से बदतर होता चला
गया, सड़क नाम की कोई चीज नहीं थी ,कच्चे रास्ते पर पत्थर गिरे हुए थे और साथ ही
में चढ़ाई भी। खराब पथरीला रास्ता और चढ़ाई दोनों एक साथ होने से हमारी गाड़ी भी
जवाब देने लगी। कुछ जगह तो गाड़ी पहले गिअर
में ही चलानी पड़ी। अगर मैं कहूं कि यह रास्ता कारों के लिए उपयुक्त नहीं है तो
कुछ गलत नहीं होगा यहां अधिक ग्राउंड क्लीयरेंस वाली गाड़ी या SUV ही ठीक तरह चल
सकती है। बीच -2 में कई जगह सड़क के अवशेष मिलने से यह मालूम हो रहा था की किसी
ज़माने में यहाँ पक्की सड़क रही होगी लेकिन पुननिर्माण के इंतजार में यह जर्जर हो
चुकी थी । हो सकता है द्वापर युग में पांडवों ने मंदिर के साथ इस सड़क का भी
निर्माण किया हो लेकिन उसके बाद कलयुगी सरकारें इसे संभाल ना सकी. ;)
गाड़ी ल्यारी गाँव तक ही जाती है । हेलंग से यह गाँव 12 किमी की दुरी पर है । हेलंग
से हमें यहाँ पहुँचने में लगभग 1 घंटा लग गया । गाड़ी को साइड में पार्क कर हम
जल्दी से कल्पेश्वर
के लिए
पैदल चल दिए । शाम
के 6 बज चुके थे और दिन ढलना शुरू हो चूका था । एक तो रास्ता ख़राब होने से पहले से
ही कुछ मूड ख़राब था , दूसरा अँधेरा शुरू हो जाने के कारण मैंने अपना कैमरा गाड़ी
में ही रख दिया। ल्यारी
से कुछ
आगे चलते
ही पंचधारा
नामक जगह
पड़ती है। यहाँ पांच
अलग-अलग
सिंह रुपी
मुहँ से
शीतल जलधारा
बहती रहती
है। इससे आगे बड़गिन्डा
गाँव है।
उर्गम घाटी
का ये
गाँव काफी
खूबसूरत है। शाम का समय होने के कारण गाँव की औरतें पशुओं का चारा
सिर पर उठाये खेतों से अपने घरों को वापिस लौट रही थी। एक जगह रास्ता दो जगह बंट
रहा था । हमने उनसे पूछा की मंदिर का रास्ता कोन सा है तो उन्होंने इशारा करके
बताया की वो सामने मंदिर दिख रहा है । हम बड़े खुश हुए इतनी जल्दी मंदिर आ गया । बाद
में मालूम हुआ की यह सप्त बद्री में
से एक
ध्यान बद्री
का मन्दिर
है। यहीं पर
भगवान विष्णु
चतुर्भुज रूप
में यहाँ
विराजमान हैं। हम
मंदिर को बाहर से
ही प्रणाम कर हम आगे चल दिए । थोड़ा आगे चलने पर उर्गम
घाटी का
दूसरा गाँव
देवग्राम पड़ता
है। इस
घाटी में
खेती भरपूर
होती है, खूब
हरे भरे
खेतों के
बीच से
गुजरते हुये
रास्ता जाता
है। चारों तरफ
फैली हरियाली इस घाटी
की सुन्दरता
में चार
चाँद लगा
देती है।
लगभग सारा रास्ता कच्ची पगडण्डी से ही है ,कुछ समय पहले तक मंदिर तक 2-3 फीट
चौड़ी पक्की पगडण्डी थी जिसके कारण बाइक से मंदिर तक जा सकते थे लेकिन अब यह
पगडण्डी बहुत जगह से पूरी टूटी हुई थी और काफी जगह तो गायब ही थी । एक बाइक सवार
आते हुए मिला उससे पूछा की क्या बाइक आराम से पहुँच गयी मंदिर तक ? उसने बताया की बाइक
से जाकर बड़ी गलती कर दी । न जाने कितनी बार उतरना पड़ा और बाइक को घसीटना पड़ा !
इतना समय तो पैदल न लगता जितना बाइक पर लग गया !! । देवग्राम पहुँच कर फिर से कल्पेश्वर के बारे में एक बुजुर्ग से पूछा । उन्होंने बताया की एक बड़े
झरने के पास मंदिर है । जैसे जैसे आप आगे जाओगे इसकी आवाज की दिशा में चलते जाना ।
अँधेरा होने के कारण झरना दिख नहीं रहा था लेकिन उसकी तेज़ आवाज आ रही थी । मेरे
पास टोर्च थी बाकि सबने भी मोबाइल की टोर्च जला ली और आगे चलते रहे । उस समय उस
रास्ते पर केवल हम ही थे , आता जाता कोई भी नहीं मिल रहा था । देवग्राम में रास्ते
के साथ ही एक छोटा सा शिवालय भी था जिस पर केदार मंदिर लिखा हुआ था। यहाँ भी बाहर
से ही प्रणाम किया और आगे बढ़ गए। काफी देर कच्ची पगडण्डी पर चलते रहे । आगे जाकर अचानक पगडण्डी झाड़ियों में लुप्त हो गयी ।
अभी बस इतना ही .बाकि जल्दी ही अगले पार्ट में तब तक आप यहाँ तक की तस्वीरें
देखिये .
इस यात्रा के पिछले भाग पढ़ने के लिए नीचे लिंक उपलब्ध हैं .
पहला भाग : अम्बाला
से रुद्रप्रयाग
दूसरा भाग : कार्तिक
स्वामी
अलकनंदा |
कर्णप्रयाग |
मंदिर |
बन्दर हम पर पूरी नज़र रखे हुए थे |
कर्ण मंदिर |
पिंडर नदी |
पिंडर |
उर्गम घाटी |
उर्गम घाटी |
ध्यान बद्री की फोटो -बीनू कुकरेती के सौजन्य से |
केदार मंदिर |
रास्ता कुछ ज्यादा ही खराब निकला.... खैर पहुँच तो गए..👍
ReplyDeleteजी डाक्टर साहेब ,रास्ता कुछ ज्यादा ही खराब निकला.
Deleteधन्यवाद .
अहा ! बढ़िया ! संभव है सहगल साब अब रास्ता पूरा कल्पेश्वर मंदिर तक भी पहुँच गया हो ! क्योंकि जब हम जून में वहां से लौट रहे थे तब रास्ता बनाने का काम जोरों पर था !! शानदार चित्र
ReplyDeleteहम आपसे चार महीने बाद गए थे .रास्ते पर कोई काम नहीं हो रहा था सिर्फ पुल बन रहा है .हो सकता है रास्ता बाद में बनाते हों .
Deleteपोस्ट पर आने के लिए धन्यवाद .
खराब रास्ता जान निकाल देता है चलो पहुँच ही रहे हो मंजिल तक
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद भाई .
Deleteजय भोलेनाथ...🙏
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल भाई . जय भोले की .
Deleteसहगल साहब आपके लिए चुनौतीपूर्वक रास्ता था ड्राइविंग सिखने का। अब हमें आप दुर्गम रास्तों पे आसानी से घूमाते रहोगे। बढ़िया वर्णन।
ReplyDeleteसहगल साहब आपके लिए चुनौतीपूर्वक रास्ता था ड्राइविंग सिखने का। अब हमें आप दुर्गम रास्तों पे आसानी से घूमाते रहोगे। बढ़िया वर्णन।
ReplyDeleteधन्यवाद साहेब जी .आप जैसे एक्सपर्ट ड्राईवर लोगों के साथ जाने का फायदा तो होना ही चाहिए .
Deleteआला दर्जे का लेख बड़े भाई
ReplyDeleteभी इस रास्ते को भुगत चुका हु और बाइक फंसा कर बिना दर्शन करे ही लौट कर आया हु
शानदार फ़ोटो,👍👌
धन्यवाद अजय भाई .ये जानकार अफ़सोस हुआ की आप बिना दर्शन किये ही लौट आये .
DeleteAs usual very well written post with beautiful pictures. 💐💐
ReplyDeleteधन्यवाद जी .
Deleteरास्ते ने थका दिया आपको आज....रुके कहा शायद अगली पोस्ट में पता चलेगा....
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक जी .थके तो नहीं लेकिन मूड जरूर ख़राब हो जाता है .
Deleteबढ़िया पोस्ट .लगता है रास्ता ज्यादा ही खराब था लेकिन फिर भी आप मंजिल पर पहुँच ही गए .
ReplyDeleteजी अजय भाई .रास्ता काफी ख़राब था ल्यारी तक .
Deleteकर्णप्रयाग और उर्गम घाटी की तस्वीरें देखकर आनंद आ गया . शायद आपकी थकावट भी घटी की सुन्दरता को देखकर चली गयी होगी .
ReplyDeleteधन्यवाद राज़ जी .सहमत घाटी बेहद खूबसूरत है .
Deleteल्यारी गांव से कल्पेश्वर मन्दिर तक कितने किलोमीटर का ट्रैक है ?
ReplyDeleteआपकी यात्रा अच्छी चल रही है, रास्ता खराब मिला तो क्या हुआ मंजिल तक तो पहुँच ही गए ।
अच्छे चित्र
धन्यवाद रीतेश जी . ल्यारी गांव से कल्पेश्वर मन्दिर तक तीन किलोमीटर का ट्रैक है.
Deleteनरेश जी, ये लेख भी पढ़ा, बढ़िया जानकारी दी है आपने ! एक सुझाव चाहिए, कार्तिक स्वामी से urgam जाने के लिए कन कचोरी ना जाकर वापिस रुद्रनाथ जाकर आगे बढ़ने ठीक रहेगा या जिस रास्ते से आप गए वोही ठीक है ! आपने लेख में बताया कि वो रास्ता बहुत खराब था
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप जी . कार्तिक स्वामी से कन कचोरी तो जाना ही पड़ेगा .वापिस रुद्रप्रयाग जाने की जरूत नहीं .रास्ता तो कर्ण प्रयाग से आगे का खराब है .
ReplyDeleteउफ्फ्फ ! रास्ता खराब हो तो जाना बेकार ही लगता हैं उस पर रात का सफर तो ऐसा लगता हैं जैसे कि--करेला वो भी नीम चढ़ा☺☺☺दिन में जो पहाड़ मनभावन लगते हैं रात को वही भयानक दिखते हैं खेर, जैसे तैसे पहुँच ही जाओगे आपके साथ हम भी 👍
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ जी .बड़े दिनों बाद दर्शन दिए आपने .
Delete