उत्तराखण्ड यात्रा: कार्तिक
स्वामी, कल्पेश्वर, रुद्रनाथ और कालीमठ
पह्ला भाग :
पिछले वर्ष कल्पेश्वर -रुद्रनाथ जाने की बहुत इच्छा थी । दो
अवसर भी आये लेकिन किसी न किसी कारण से दोनों बार नहीं जा सका । इसकी भरपाई पिछले साल
नवम्बर में मद्महेश्वर जाकर हुई लेकिन दो अवसर गवाने के बाद इस साल रुद्रनाथ जाने की इच्छा और भी
दृढ़ हो गयी थी । ऐसे तो उत्तराखण्ड में आप साल के किसी भी महीने
घुमक्कडी पर जा सकते हैं लेकिन मुझे ट्रेक के लिए सितम्बर –अक्टूबर का समय बेहद
पसंद है । एक तो इस समय चार धाम के यात्रियों की संख्या काफी कम हो जाती है और भीड़
नहीं रहती , दूसरा मानसून लगभग ख़त्म हो जाने से भूस्खलन का खतरा भी काफी कम हो
जाता है जिससे यात्रा में बाधा नहीं पड़ती । तीसरा कारण इन दिनों पहाड़ों पर हरियाली
भी खूब होती है और खूबसूरत नज़ारे देखने को मिलते हैं ,नवम्बर शूरु होते ही ये घास
पीली पड़ने लगती है।
किसी भी यात्रा के लिए सबसे पहले जाने का दिन तय करना पड़ता
है और फ़िर यात्रा के साथी जो उन दिनों में जाने के इच्छुक हों। इस साल (2017) 30
सितंबर को दशहरे की छुट्टी थी ,1 अक्टूबर को रविवार और 2 को गाँधी जयन्ती यानि तीन
छुट्टी एक साथ। तीन दिन की और छुट्टी लेकर 6 दिन का बढ़िया प्रोग्राम बना लिया ।
मेरे सहकर्मी सुखविंदर तो इस यात्रा के लिए शुरू से ही तैयार थे लेकिन कोई और साथी
नहीं मिल रहा था । कुछ मित्र पहले तो तैयार हुए लेकिन बाद में उनका ह्रदय परिवर्तन
हो गया । गाज़ियाबाद से एक दुसरे
मित्र गौरव चौधरी भी तैयार हो गए। दो महीने पहले मेरे ही एक अन्य मित्र बीनू
कुकरेती के गाँव बरसुड़ी में हुए मेडिकल और एजुकेशनल कैंप के दौरान गौरव चौधरी से
मुलाकात हुई थी । गौरव ने अपनी बाइक पर आना था और हमें ऋषिकेश में मिलना था । अब
ये फाइनल करना था की हम अम्बाला से बाइक से जाएँ या कार से ? चूँकि हम दो ही लोग
थे तो कार में पेट्रोल का खर्चा ज्यादा होने वाला था लेकिन इसमें आराम भी था ।दूसरी
तरफ बाइक से काफी सस्ता पड़ता लेकिन लम्बे सफ़र में थकावट और बारिश का डर भी था । इस
असमंजस से सुखविंदर ने ही बाहर निकाला और फैसला सुना दिया कि कार से ही चलेंगे
चाहे कितना भी खर्च हो जाये । और हाँ अपनी कार भी बड़े वाली है , Let’s go आल्टो ;)
प्रोग्राम कुछ इस तरह से था ।
पहला दिन : सुबह अम्बाला से जल्दी निकल कर ,शाम तक कार्तिक स्वामी के लिए कनकचौरी गाँव
पहुँचना । रात्रि विश्राम कार्तिक-स्वामी मंदिर के पुजारी जी की कुटीया पर। ( सड़क
मार्ग -360 किमी , ट्रैक 3 किमी )
दूसरा दिन : सुबह कार्तिक स्वामी मंदिर दर्शन के बाद कल्पेश्वर के लिए रवाना ।
कल्पेश्वर दर्शन ,वापसी ,रात्रि विश्राम – सग्गर गाँव ,गोपेश्वर । (सड़क मार्ग -190 किमी , ट्रैक 9 किमी )
तीसरा दिन : सुबह 7 बजे ट्रैक शुरू ,शाम 5 बजे तक पञ्च गंगा ( ट्रैक 18 किमी )
चौथा दिन : रुद्रनाथ दर्शन
के बाद और अत्री गुफा होते हुए अनसूया मंदिर या मंडल तक ( ट्रैक 18/23 किमी )
पांचवा दिन : मंडल से चोपता होते हुए उखीमठ और कालीमठ मंदिर दर्शन , रात्रि
विश्राम श्रीनगर ।
छटा दिन : श्रीनगर से अम्बाला वापसी ।
प्रोग्राम ठीक-ठाक था । ज्यादा भाग दौड़ नहीं थी । फिर भी
अगर कहीं लेट हो गए तो आखिरी के दो दिन में एडजस्ट करने का सोच लिया था । पहले दिन
कार्तिक स्वामी पर रुकने के लिए मंदिर के
पुजारी जी से पहले ही बात कर ली थी । पुजारी जी का मोबाइल नंबर दिल्ली वाले शाब जी
अनिल दीक्षित से मिल गया था । अब बस 30 सितंबर का इंतजार था । आखिरी समय पर मेरा एक
अन्य मित्र सुशील मल्होत्रा , जिसका जाने का मन तो था लेकिन कुछ कारणों से
डांवाडोल हो रहा था , वो भी तैयार हो गया और हम दो से तीन साथी हो गए।
तय दिन 30 सितंबर को सुबह सुशील अपना और यात्रा के लिए हम
सब के खाने पीने का सभी सामान लेकर मेरे घर पहुँच गया । मैं पहले से ही तैयार होकर
उसका इंतजार कर रहा था ,उसके आते ही हमने कार की पिछली सीट पर सारा सामान रखा और
घर से चल दिए । आगे यमुनानगर वाली सड़क पर हमें सुखविंदर भी मिल गया । वहां गाड़ी में सारा सामान सेट कर हम यमुनानगर के लिए निकल
पड़े । अब तक सुबह के
साढ़े सात बज चुके थे और हम तय समय से 30 -40 मिनट लेट थे । जगाधरी (यमुनानगर) तक
कोई दिक्कत नहीं हुई और हम एक घंटे से भी कम समय में वहां पहुँच गए । यहाँ से
ऋषिकेश जाने के दो मार्ग हैं । एक पौंटा साहिब से देहरादून होते हुए ,दूसरा
सहारनपुर से हरिद्वार होते हुए। दुरी दोनों तरफ से लगभग बराबर ही है । पौंटा साहिब
से देहरादून जाने वाली सड़क ( शिमला बाईपास ) पर स्पीड ब्रेकर बहुत हैं ,वो भी
कई-कई एक साथ। सहारनपुर वाली सड़क पर ब्रेकर काफी कम हैं और अभी दो महीने पहले ही
हम इस सड़क से हरिद्वार गए थे। तब सड़क भी ठीक ठाक थी इसलिए हमारा वाया सहारनपुर
जाने का प्रोग्राम था।
जगाधरी के अग्रसेन चौक से पौंटा साहिब और सहारनपुर जाने
वाला मार्ग अलग हो जाता है । कुछ कारण से सहारनपुर जाने वाला मार्ग पुलिस ने बंद
किया हुआ था । वहाँ काफी पुलिस जमा थी , अवश्य ही कुछ घटना हुई होगी । पुलिस वाले
ने बताया या तो 15-20 मिनट इंतजार करो या किसी दुसरे रास्ते से निकल जाओ । हमने
यहाँ रुककर इंतजार करने के बजाए गाड़ी पौंटा साहिब वाली सड़क पर मोड़ ली और इधर से ही
चलने का निश्चय किया। लेकिन जब समय ख़राब तो तो दिमाग में खुराफाती विचार आने लगते
हैं । शुशील ने अचानक कहा- यार आस पास के गाँवो से भी तो कोई लिंक रोड सहारनपुर
वाली सड़क पर जरूर जाती होगी ,पता कर लेते हैं । एक दुकानदार से पूछा ,रास्ता भी
मिल गया । चार- पाँच किलोमीटर गाँवो में घुमने के बाद गाड़ी फिर से सहारनपुर वाली
सड़क पर आ गयी । हम अपनी होशियारी पर खुश हो रहे थे ,पर हमारी ये ख़ुशी कलानौर तक ही
रही । वहां पहुँचते ही हमें जाम मिलने लगे । असल में यहाँ प्लाईवुड की बेशुमार
फैक्ट्रीज हैं और उनके लिए पोपुलर की लकड़ी ट्रेक्टर ट्रोली में भर- भर कर जा रही थी । जगाधरी से सहारनपुर की 40 किलोमीटर की
दुरी तय करने में हमें ढेड़ घंटा लग गया । सहारनपुर पहुँचकर पहले कार की पेट्रोल की
टंकी फुल करवाई और आगे की यात्रा के लिए वाया गागल हेड़ी –भगवानपुर –बहादराबाद होते
हुए हरिद्वार जाने का रास्ता चुना । इस रास्ते से रूडकी बाईपास हो जाता है और वहां
का ट्रैफिक जाम भी ।
हम पिछले तीन घंटे से लगातार चल रहे थे इसलिए भगवानपुर के
पास एक जगह चाय का ब्रेक लिया गया। इस अल्प विराम के बाद फिर से हरिद्वार की तरफ़
गाड़ी भगा दी । ज्वालापुर तक कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन इसके बाद हमें जाम मिलने
शुरू हो गये । जैसे -2 हम हरिद्वार के पास पहुँच रहे थे ट्रैफिक भी बढ़ रहा था ।
नजीबाबाद वाले चौराहे पर पहुँचते ही मैंने अपने साथियों से चीला रोड से चलने को
कहा । रास्ता बेशक लंबा है और कुछ ख़राब भी लेकिन उस पर ट्रैफिक नाममात्र ही है ।
जबाब मिला अरे ये ट्रैफिक बस हर की पौड़ी तक ही मिलेगा उसके बाद कोई जाम नहीं होगा
सीधा चलो ।
काश ऐसा होता !!!!
जैसे जैसे आगे बढ़ते गए ,ट्रैफिक जाम भी बढ़ता गया और हम
भयंकर जाम में फँस गए । दोपहर का समय, तेज़ धुप और प्रदूषण ने हालत खराब करके रख दी
और इस पर भी कुछ लोग हॉर्न बजा-बजा कर परेशां कर रहे थे । मेरे पीछे एक दिल्ली के
नंबर वाली एक कार वाला भी बार बार हॉर्न बजा रहा था जैसे मेरे साइड देने से फ्लाइट
मोड में आकर सबके ऊपर से निकल जायेगा। उसके हॉर्न से तंग आकर मैं उसके पास गया और
कहा, भाई मेरी गाड़ी में जाकर उसे जाम से
बाहर निकाल, तेरे को भी रास्ता मिल जायेगा तब तक मैं तेरी गाड़ी में बैठकर हॉर्न
बजाता हूँ । थोड़ा समझदार था ,इशारा समझ गया फिर उसने हॉर्न नहीं बजाया ।
धीरे –धीरे आगे बढ़ते रहे और जाम का कारण भी समझ में आ गया। एक
जगह रेलवे फाटक है ,वहां जगह कम है, बड़े -2 गड्डों में कहीं कहीं सड़क भी है ,अगर
फाटक खुला भी हो तो एक समय एक ही गाड़ी धीरे धीरे निकल सकती है ।अगर फाटक बंद हो तो
लम्बा जाम तय है । इससे आगे एक रेलवे क्रासिंग और भी है जहाँ रेल ऊपर से और सड़क
नीचे है ।यहाँ पर भी पुलिया बहुत तंग है और सड़क भी बेहद टूटी हुई । गाड़ियाँ धीरे –धीरे
निकल रही थी ।
हरिद्वार से ऋषिकेश की 20-22 किलोमीटर की दुरी मात्र तीन
घंटे में पूरी होने के बाद जब जाम से निकले तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे ओलम्पिक
में मैडल जीत लायें हों । इसी ख़ुशी में यहाँ से ब्यासी तक गाड़ी खूब भगाई । फिर
अचानक याद आया अरे... दोपहर का भोजन भी करना है ,शाम के चार पहले ही बज चुके थे । मैंने
सुबह घर से तीनों के लिए मटर पुलाव बनवा कर हॉट-केस में डलवा लिया था। गाड़ी
एक चाय की दुकान पर रोक ली, जब तक चाय बन
कर आती, मटर पुलाव पेट की गहराइयों में जा चुकी थी । चाय सेवन के बाद आगे के सफ़र
के लिए फिर से रवाना हो गए ।
बीच -2 में हमारी गौरव से भी बात चल रही थी। गौरव के साथ
उसका मौसेरा भाई सागर भी था । वे दोनो एक ही बाइक पर थे और हमसे काफी आगे
थे । जब हम सहारनपुर के पास थे तब वे हरिद्वार पहुँच चुके थे । जब हम ब्यासी
पहुँचे तब वे देवप्रयाग पहुँच गए थे । चूँकि आज हमारा ट्रैफिक जाम के कारण तीन
घन्टे से ज्यादा समय ख़राब हो चूका था इसलिए आज हमारा कार्तिक स्वामी पहुँचना तो
बेहद मुश्किल लग रहा था । समय अभाव को देखते हुए आज का लक्ष्य कनकचौरी गाँव तक
पहुँचना ही तय किया गया।
लेकिन नियति को शायद ये भी मंजूर नहीं था ।
बाकि अगले भाग में .तब तक आप यहाँ तक की और आगे की
यात्रा की कुछ तस्वीरें देखो .
| ||
tea ब्रेक
|
हरिद्वार |
हरिद्वार |
ऋषिकेश |
ऋषिकेश से आगे |
चोपता गाँव |
चोपता गाँव के पास |
पनार से दिख रही चोटियाँ |
पनार से दिख रही चौखम्बा |
नंदा देवी |
पनार बुग्याल |
कार्तिक स्वामी ट्रेक |
कार्तिक स्वामी ट्रेक |
तीन छुट्टियां पड़ते ही हरिद्वार मे बहुत भीड़ हो जाती है...इसलिए मैं देर रात ही निकलता हूं।
ReplyDeleteनाम अच्छा दिया है...दिल्ली वाले शाब जी😂😂😂
जय भोलेनाथ
दुनिया बड़ी जालिम है अनिल भाई . आगे से हम भी हरिद्वार रात को ही क्रॉस करेंगे ..............
Deleteजय भोले नाथ .
choti ankho wale saab ji ke baad dehli wale saab ji😂😂
ReplyDeleteapeksha ke anurup shandar varnan bde bhai
धनयवाद अजय भाई .
DeleteNice Post of the new journey . Keep it up .
ReplyDeleteधन्यवाद अजय जी
Deleteबढ़िया शुरुआत...
ReplyDeleteधन्यवाद गौरव .
Deleteबेहतरीन शुरुआत
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी
Deleteबढिया व रोमांचक शुरूआत
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन जी .
Deleteउत्तराखंड दिल्ली से नजदीक होने की वजह से आजकल छुट्टियों में हरिद्वार के आस पास बहुत जाम लगने लग गया है...आप सस्पेंस बनाकर चले गए कि आपको कंककचोरी तक भी नही पहुच पाए...बढ़िया वर्णन सहगल साहब...
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई .
Deleteबहुत शानदार .. हम मार्च में गये तब कार्तिक स्वामी के ट्रेक पे अच्छी खासी बर्फ मिली थी .. उसी समय तय किया था कि अगली बार जायेंगे तो कैम्पिंग मंदिर के पास ही करेंगे और सुबह का सनराइज देखकर वापसी करेंगे .. देखते हैं फिर कब जाना होता हैं ..
ReplyDeleteधन्यवाद नटवर भाई .सन राइज तो हम भी न देख पाए .
DeleteNice post with nice pictures. Cho-khambha picture is too good.
ReplyDeleteधन्यवाद जी .
Deleteशानदार व रोमांचक शुरूआत ..
ReplyDeleteधन्यवाद संजीव जी
Deleteबहुत बढ़िया शुरुआत नरेश भाई... अच्छी गति से लिखा आपने ।
ReplyDeleteफोटो अच्छे है पर लेख की गति से कुछ आगे के भी फोटो लग गए है
धन्यवाद रीतेश भाई .असल में पहले दिन सारा दिन यात्रा में निकल गया तो कुछ फोटो आगे के लगाने पड़े .इसलिए इसका जिक्र मैंने ब्लाग पर लिया भी था .
Deleteबढ़िया यात्रा की शुरुआत...😊
ReplyDeleteमित्रों की मंडली जुट गई है तो मजेदार होगी ही...👍
धन्यवाद डाक्टर साहिब .जब होटल में महफ़िल जमी हुई थी तो आपकी भी याद आई थी ,आपको फोन भी किया था लेकिन आप व्यस्त होने के कारण इसे ले नहीं पाए .
Deleteबढ़िया शुरुआत नरेश जी, वैसे पहली पोस्ट में ही आगे तक के चित्र देकर आपने दर्शा दिया है कि इस यात्रा पर सुन्दर दृश्यों की भरमार रहने वाली है ! ऐसी यात्राओं पर जाम में फँसना वाकई दुखदायी रहता है !
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप भाई . संपर्क बनाये रखिये .
Deleteडिअर नरेश भाई, मेरा भी मामला अजीब ही है! आज लिंक मिला तो तुंगनाथ वाली पोस्ट पढ़ी। फिर सोचा कि बेचारी बाकी पोस्ट का क्या कुसूर है, सो यहां से विधिवत शुरुआत कर दी है। उम्मीद है इसके बाद वाली पोस्ट भी इतनी ही मनोरंजक होंगी वरना तो मुझे भी यही न लगने लगे कि हरिद्वार - ऋषिकेश के जाम में फंस गया हूँ। :-) !
ReplyDeleteवैसे सहारनपुर के पेट्रोल पम्प से पेट्रोल लेते हो तो हमे भी बता दिया करो कि पहुंचने वाले हो। मिलना हो जायेगा।
धन्यवाद सुशांत जी .आप जैसे पाठक ब्लाग पर आते हैं तो सच में बड़ी ख़ुशी मिलती है .और हाँ सहारनपुर से निकलते समय आपको याद तो खूब किया था ..सोशो और यद् करो ,आपको छींके भी खूब आई होंगी .लेकिन सुबह का समय होने के कारण प्रेषण करना उचित नहीं समझा .
Deleteशानदार यात्रा का आगाज हम साथ साथ है नरेश ☺
ReplyDeleteशानदार यात्रा का आगाज हम साथ साथ है नरेश ☺
ReplyDeleteशानदार यात्रा का आगाज़ 👍 हम साथ साथ है
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ जी .आपका आशीर्वाद हमारे पास है .
Delete