केदारनाथ यात्रा- 2011
जून-2011 में केदारनाथ ,बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब की यात्रा के
लिये एक तवेरा गाड़ी 1 +8 सिटर बुक कर ली । हमने जून का महीना इसलिए
चुना था क्योकि इन दिनों पहाडॊं में बारिश की संभावना बहुत कम होती है और भूस्खलन
का खतरा भी ।
मेरे साथ मेरे दो बाल सखा स्वर्ण और सुशील तथा चार ऑफिस के साथी थे । पहले दिन
शुरुआत पौंटा साहिब गुरुद्वारे से की , वहाँ से कैम्पटी फॉल और मसूरी घूमते हुए
देहरादून की तरफ निकल लिए और वहां पहुंचते-२ शाम हो गयी और अँधेरा होने लगा
। देहरादून से सीधा ऋषिकेश की सड़क पकड़ी और गाड़ी भगा दी । रात्रि विश्राम ऋषिकेश
से थोड़ा आगे ब्रह्मपुरी में गंगा के तट पर बने एक आश्रम में किया गया ।
सुबह जल्दी उठ्कर नित्य-कर्म से निपट कर फिर गंगा जी में स्नान करने के लिये
नीचे गये । नहाने के बाद जल्दी से तैयार होकर हम वहाँ से बिना कुछ खाए ही लगभग
सुबह 6 बजे निकल लिये। इन दिनो
हेमकुन्ठ साहिब की यात्रा भी चल रही थी तो रास्ते में कुछ जगह सरदार भाईयों ने
यात्रीयों के लिये भन्डारे लगाये हुए थे्। ऐसा ही एक भन्डारा हमें आश्रम से थोड़ा
आगे चलने के बाद मिला, जहां चाय ,पकोडे और शक्कर-पारे मिल रहे थे। भन्डारे के
सेवक गाड़ियाँ रुकवा-2 कर वहाँ आने के
लिये कह रहे थे। हमने भी अपनी गाड़ी से उतर कर सड़क के किनारे लगे इस भन्डारे में
चाय ,पकोडे और शक्कर-पारे
खाये। पेट पूजा करने के बाद हमने आगे की यात्रा जारी की।
थोडी ही देर बाद मौसम ख्रराब होने लगा और हलकी बारिश होने लगी। रास्ता पूरी
तरह पहाडी था और इसलिये गाड़ी भी धीरे चल रही थी। धीरे-2 बादल काले होने लगे और अन्धेरा छा गया तथा मुसलाधार बारिश
होने लगी। अन्धेरा इतना गहरा हो गया था कि हमें सुबह 7:30 बजे भी गाड़ी की लाईट जलानी पडी। बहुत सी गाड़ियाँ
सुरक्षित स्थानो पर रुक गयी, लेकिन हमारी
गाड़ी धीरे-2 चलती रही। लगभग
एक घंटे के बाद बारिश बन्द हुई तथा मौसम साफ़ हो गया। ठीक 9 बजे हम देवप्रयाग पहुँच गये । वहाँ पहुँच कर गाड़ी रोकी और
हम थोड़ी देर घुमने के लिये गाड़ी से बाहर निकले।
देव प्रयाग में अलकनन्दा और भागीरथी
नदी का संगम होता है और यहीं से गंगा नदी की शुरुआत भी होती है। मुख्य मार्ग से
देखें तो बायीं तरफ़ से भागीरथी जी आती हैं और दायी तरफ़ से अलकनन्दा जी। संगम
स्थल पर अलक्नन्दा में जल-प्रवाह भागीरथी की तुलना में काफ़ी ज्यादा है लेकिन पानी
भागीरथी जी का ज्यादा साफ़ दिख रहा था । भागीरथी जी सीधे गंगोत्री से आ रही हैं और
अलकनन्दा जी बद्रीनाथ से। थोड़ी देर वहाँ रुकने के बाद श्रीनगर की तरफ़ चल दिये।
देवप्रयाग से श्रीनगर की दूरी लगभग 34 किलोमीटर है।
पूरे रास्ते में सड़क के साथ-2 अलकनंदा नदी
बहती है। श्रीनगर शहर भी अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है । शहर से बाहर निकलते ही
अलकनन्दा नदी पर जल विधुत परियोजना का कार्य चल रहा था, वहीं जाकर रुके। 2-4 फोटोग्राफ खिंचने के बाद हम रुद्रप्रयाग की और चल दिये। श्रीनगर से
रुद्रप्रयाग की दूरी लगभग 33 किलोमीटर है और
दोपहर एक बजे के करीब हम रुद्रप्रयाग पहुँच गये। वहाँ हम सबने खाना खाया, चाय पी और आगे की यात्रा जारी की। यहीं से एक मार्ग बायीं
तरफ़ मुड़ कर केदारनाथ के लिए जाता है और दुसरा दायीं तरफ़ से मुख्य यात्रा मार्ग
सीधा बद्रीनाथ के लिये।
रुद्रप्रयाग से अगस्तमुनी ,कुंड ,गुप्तकाशी ,सोनप्रयाग होते हुए शाम 6 बजे तक गौरीकुंड पहुँच गए । गौरीकुंड पहुँच कर सारा सामान
गाड़ी से बाहर निकाल कर एक जगह इकट्ठा किया और ठ्हरने के लिये कमरो की तलाश शुरु
कर दी। मैं और हरिश गुप्ता बाकी सभी लोगों को सामान के पास खडा करके कमरे ढूढ़ने
लगे । यात्रा सीजन शबाब पर होने के कारण कमरा मिलने में काफ़ी मुश्किल हो रही थी
इसलिये हमारे दो अन्य साथी भी कमरा ढूढ़ने लगे और 15-20 मिनट के बाद दो कमरे 500 रुपये प्रति कमरा के हिसाब से मिल गये या यूँ कहो कि धक्के
से ले लिये। वहाँ सामान रख कर थोड़ी देर आराम किया और फिर हम सब बारी-बारी से
तप्तकुंड में नहाने गये। तप्तकुंड हमारे कमरोँ के पास ही था। कुन्ड छोटा सा ही है
सिर्फ़ एक कमरे के आकार का, इसमें धरती से
काफ़ी गर्म पानी निकलता है जिसमे ठंडे पानी को मिलाकर ही नहाया जा सकता है। महिलाओं व पुरुषों के लिए यहां पर अलग-अलग स्नानकुन्ड बनाए गए है। आराम से नहा धो
कर वापिस कमरे पर आये और तैयार होकर बाहर टहलने निकले। वापिस आकर सुबह जाने के
लिये सभी ने अपने-अपने पिठ्ठू बैग तैयार कर
लिये ।
दूसरे दिन सुबह अंधेरे में ही उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर और तप्त कुंड
में स्नान कर एक दुकान में चाय-नाश्ता किया। पिट्ठू लाद कर सूर्योदय से काफी पहले
ही गौरी कुंड से केदारनाथ को चल पडे। हमें दिन के दिन ही वापिस आना था यानी कि कुल
28 किलोमीटर चलना था। उजाला होने तक करीब 2 किमी चढ़ाई चढ़ ली थी। रास्ते में अन्य यात्री
भी मिल रहे थे। शुरु में तो सभी एक साथ ही
चल रहे थे लेकिन धीरे – धीरे सभी आगे
पीछे हो गये। हम सब ने रामबाड़ा मिलने का निश्चित किया था कि जो भी पहले वहाँ
पहुँचेगा, रुक कर बाकी साथियों का
इन्तज़ार करेगा।
“ पैदल रास्ते के साथ-साथ मंदाकिनी नदी शोर मचाती हुई हर पल आकर्षित करती है,
जिसका स्वच्छ, धवल रूप और चंचल गति यात्रियों को थकान महसूस नहीं होने
देते। इसके साथ ही घना प्राकृतिक जंगल है, जो पेड़-पोधों की विविध प्रजातियों से युक्त है। रास्ते में पड़ने वाले झरने
रुकने व एकटक निहारने को मजबूर कर देते हैं। गौरीकुंड से 3 किमी। पर जंगल-चट्टी है, जिसके आगे रामबाड़ा व गरुड़चट्टी पड़ते हैं। ये चट्टियाँ
यात्रियों के लिये विश्राम स्थल हैं। यहाँ थोड़ा रुकिये, सुस्ताइये, चाय-पानी पीजिये,
खाना खाइये और फिर नई स्फूर्ति के साथ पुनः चल
पड़िये। खाने-पीने की चीजें महंगे दाम पर मिलती हैं, क्योंकि ढुलाई के कारण लागत बढ़ जाती है। स्थानीय खाद्य
पदार्थों की उपलब्धता नहीं के बराबर है, जबकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बनाये खाद्य व पेय पदार्थ खूब दिखते हैं "
यात्रा के दौरान असली समस्या जो यात्रियों को थकाती है वो होता है उनका सामान,
यदि आपको दिन के दिन वापिस आना हो तो किसी भी
सूरत में सामान को नहीं ढोना चाहिए। गर्म कपड़े पहन ले और एक रेन कोट साथ रख लें .
यदि आप एक रात ऊपर केदारनाथ में रुकते है तो भी केवल जरूरी सामान ही ले जाना
चाहिए।
धीरे-धीरे रुकते चलते हम रामबाडा जा
पहुँचे। रामबाडा केदारनाथ यात्रा का मध्य विश्राम स्थल है यहाँ तक आना यानि 14 किमी में से 7 किमी की यात्रा समाप्त हो गयी है। रामबाडा में थोड़ा रुकने
और खाने-पीने के बाद हम आगे की यात्रा पर चल दिये। (२०१३ में आयी केदारनाथ विपदा
में पूरा रामबाड़ा बह गया था. अब रास्ता घटी के दूसरी तरफ़ से बनाया गया है ) कई मोड
चढने के बाद हम गरुडचट्टी नाम की जगह जा पहुँचे। यहाँ से केदारनाथ का सफ़र थोड़ा
आसान शुरु हो जाता है।
गरुडचट्टी यात्रियों को कई किमी दूर से दिखाई देती रहती है। थोड़ा आगे जाने पर
एक बार फ़िर साँस फुलाने वाली चढाई आ जाती है। इस चढाई के बाद केदारनाथ की आबादी
शुरु होती है। सुबह के 11 बजे जब मैं और
शुशील वहाँ पहुँचे, हमारे दो साथी
पहले ही एक चाय की दुकान पर बैठे हमारा इन्तज़ार कर रहे थे, वो हमसे 15-20 मिनट पहले ही वहाँ पहुँच गये थे। अब हम चारों,
बाक़ी लोगो का इंतजार करने लगे और थोडी देर बाद
बाद सभी लोग पहुँच गए । सबके एकठ्ठा होने के बाद हमने चाय पी और मन्दिर की तरफ़ चल
दिये। जिसका हम काफ़ी देर से इन्तजार कर रहे थे वो बाबा केदारनाथ का मन्दिर हमारी
आँखों के सामने था।
समुद्र तल से 3,583 मीटर की ऊँचाई
पर स्थित केदारनाथ प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है । केदारनाथ पहुँचकर सबसे पहले
मंदिर के समीप हमने अपने-अपने जूते एक दुकान पर रख दिये वहाँ से पूजा के लिये
प्रसाद लिया। हाथ-मुँह धोकर सीधे मंदिर की ओर चल पडे। पूजा सामग्री से सजी हुई
दुकानों की लंबी कतारों के बीच संकरी, सीधी गली से मंदिर की तरफ कदम बढ़ाये। मंदाकिनी के तट पर स्थित 10वीं से 12वीं शताब्दी ई० के बीच निर्मित यह मंदिर बहुत भव्य लगता है।
सुंदरता से तराशे हुए पत्थरों के कारण और इससे भी बढ़कर हिमाच्छादित पर्वत शिखरों
की पृष्ठभूमि के कारण। मई-जून में यहाँ दर्शनार्थियों की लंबी कतारें होना आम बात
है।
हम आधा घंटे लाइन में लगने के बाद लगभग 12 बजे मन्दिर के गर्भगृह में उपस्थित थे। मंदिर के गर्भ गृह
में एक प्राकृतिक शिला है। इसे ही शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। तीर्थ-पुरोहित
ने शिवलिंग में दिखने वाली माँ पार्वती और गणेशजी की आकृतियों की तरफ हमारा ध्यान
आकर्षित किया। पंडों की लोभ प्रवृति और आम तथा विशिष्ट दर्शनार्थियों के बीच
भेदभाव केदारनाथ में भी नजर आया। लेकिन भगवान के दर्शन करके मैंने महसूस किया कि
मैं अत्यन्त सौभाग्यशाली हूँ। हम सबने
तसल्ली से पूजा की। इस तरह हमारा यह सफ़र मंजिल पर पहुँचा।
केदारनाथ जी का दर्शन करने के बाद हमने वहाँ पर मौजूद कई भोजनालयों में से एक
पर खाना खाया और वापिस गौरी कुंड की ओर चल पडे । वापिस उतरते समय अभी हम केदार नाथ
से निकले ही थे कि मौसम खराब होना शुरू हो गया और बादलों के झूण्ड इधर उधर मँडराने
लगे । जिस जगह से हम उतर रहे थे वहाँ बादल काफ़ी कम थे लेकिन नीचे की ओर गरुडचट्टी
बादलों के कारण बिल्कुल दिखाई नहीं दे रही थी यानी की हम बादलों से भी ऊपर चल रहे
थे। मुझे हिन्दी फ़िल्म का वो गाना याद आ गया ‘आज मैं ऊपर , आसमान नीचे…’ । थोड़ी ही देर
बाद हम बादलों का सीना चीरते हुए गरुडचट्टी पहुँच गये और काफ़ी देर तक बादलों में
चलने के बाद तेजी से नीचे की ओर उतरते गये। थोड़ा और नीचे उतरने केबाद फिर से मौसम
साफ़ हो गया।
वैसे तो पहाड़ों में उतरना व चढ़ना दोनों कठिन होता है लेकिन उतरते हुए साँस
नहीं फूलता। उतरते हुए, तेजी के कारण
घुटनों पर ज्यादा जोर पड़ता है और नस खिंचने की सम्भावना भी बड़ जाती है। यदि एक
ही दिन चढ़ना व उतरना हो तो नस खिंचने की सम्भावना और ज्यादा हो जाती है इसलिये
मैं उतरते हुए ज्यादा सावधान रहता हुँ क्योंकि कई बार अमरनाथ यात्रा में उतरते हुए
मेरी टांगो की नस खींच चुकी है।
इस तरह आपस में बातचीत करते , आसपास के
प्राकृतिक सौंदर्य का नज़ारा लेते हुए, सुन्दर घाटियों को निहारते हुए हम बिना रुके तेजी से नीचे की ओर उतरते चले गये
और लगभग शाम 7 बजे गौरी कुंड
पहुँच गये। हमें 14 किलोमीटर की
चढ़ाई में जहाँ साढ़े छ: घंटे लगे थे ,उतरते हुए मात्र 5 घंटे लगे . अपने कमरे में पहुँच कर थोड़ी देर आराम किया
और फिर हम सब गौरी कुंड (तप्त कुंड) में नहाने गये। आराम से नहा धो कर वापिस कमरे
पर आये। गरम पानी में नहाने के बाद थकान काफ़ी कम हो गयी थी। थोड़ी देर बाद अपने
कमरों के नीचे ही स्थित भोजनालयों में से एक पर खाना खाया और अपने-2 कमरों में सो गये।
जै भोलेनाथ की………
केदारनाथ मन्दिर भारत के
उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत
की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम
और पंच केदार में से भी एक है। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल
से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली से
बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडवों या उनके वंशज
जन्मेजय द्वारा करवाया गया था। साथ ही यह भी प्रचलित है कि मंदिर का जीर्णोद्धार जगद्गुरु
आदि शंकराचार्य ने करवाया था। मंदिर के पृष्ठभाग में शंकराचार्य जी की समाधि है।
महिमा व इतिहास
केदारनाथ की बड़ी महिमा है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ-ये दो प्रधान
तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा
ही माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन
किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा
निष्फल जाती है और केदारनापथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के
नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है।
इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण
तीर्थयात्रा रहा है।
पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर
पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का
आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन
लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें
खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में
जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए।
भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले।
पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर
फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी
बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब
भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने
तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की
पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है
कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतध्र्यान हुए, तो उनके धड से
ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का मंदिर है। शिव की
भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट
हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदारकहा जाता है। यहां शिवजी
के भव्य मंदिर बने हुए हैं।
दर्शन का समय
केदारनाथ जी का मन्दिर आम दर्शनार्थियों के लिए प्रात: 6:00 बजे खुलता
है।दोपहर तीन बजे विशेष पूजा ,सफ़ाई और उसके
बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।पुन: शाम 5 बजे जनता के दर्शन
हेतु मन्दिर खोला जाता है।पाँच मुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार
करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित आरती होती है।रात्रि 8:30 बजे केदारेश्वर
ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।
शीतकाल में केदारघाटी बर्फ़ से ढँक जाती है। यद्यपि केदारनाथ-मन्दिर के खोलने
और बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है, किन्तु यह
सामान्यत: नवम्बर माह की 15 तारीख से पूर्व (वृश्चिक संक्रान्ति से दो दिन पूर्व)
बन्द हो जाता है और वैशाखी (13-14 अप्रैल) के बाद कपाट खुलता है।ऐसी स्थिति में
केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ‘उखीमठ’ में लाया जाता हैं। इसी प्रतिमा की पूजा यहाँ
भी रावल जी करते हैं”।
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देवप्रयाग |
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मन्दाकिनी |
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मन्दाकिनी |
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गरुड़ चट्टी |
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केदार पर्वत और नीचे राम बाड़ा |
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केदार पर्वत |
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मन्दाकिनी |
बढ़िया पोस्ट .शानदार तस्वीरें .
ReplyDeleteधन्यवाद अजय ।
Deleteॐ नमः शिवायः। केदारनाथ नाथ जी की सुंदरता से अवगत कराने ले लिए शुक्रिया सहगल साहब��
ReplyDeleteधन्यवाद। भाई घने दिनों में आया ।💐💐
Deleteबहुत सुंदर यात्रा वृतांत,sept लास्ट वीक में,में भी पहुच रहा हु भोलेनाथ के दर्शन करने केदारनाथ......
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी ।
Deleteबढ़िया नरेश जी
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक जी ।
Deleteकेदारनाथ जी का मन्दिर आम दर्शनार्थियों के लिए प्रात: 6:00 बजे खुलता है।दोपहर तीन बजे विशेष पूजा ,सफ़ाई और उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।पुन: शाम 5 बजे जनता के दर्शन हेतु मन्दिर खोला जाता है।पाँच मुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित आरती होती है।रात्रि 8:30 बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है। बहुत ही सार्थक जानकारी लिखी है आपने नरेश जी , मेरे जैसे भोले के भक्तों के लिए बहुत काम आएगी !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी ।
Deleteजय बद्री जय केदार
ReplyDeleteफोटो के साथ साथ शानदार यात्रा विवरण
धन्यवाद रावत जी ।
Deleteवाह ! सुंदर विवरण के साथ-साथ खूबसूरत फोटो। यह पढ़कर अब तो मेरा मन भी केदारनाथ जी के दर्शन को आतुर हो रहा है। हमारे साथ साझा करने के लिए आपका शुक्रिया सहगल जी .
ReplyDeleteधन्यवाद गौरव जी .
Deleteबहुत जोरदार वर्णन .नरेश वर्णन ऐसा हो कि लगे हम खुद चल रहे है।
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ .
Deleteबहोत बढ़िया सरजी .
ReplyDeleteकेदार नाथ में ऊपर रहने की व्यवस्था है?
धन्यवाद प्रफ्फुल .ऊपर रुकने की व्यवस्था है .
Deleteआपकी यात्रा पढ़ कर किनोर वाली यात्रा याद आ गयी।
ReplyDeleteएक दिन में 28 किमी यात्रा कोई आसान नही होती।
सलाम आपको
धन्यवाद अक्षय .
Deleteजय केदारनाथ जी की । मेरी भी जाने की इच्छा है केदारनाथ बाबा के दर्शनों की। कुछ अभिलाषा आपके इस लेख से पूरी हो गयी , फिर भी मेरे लिए अभी बाकी है ।
ReplyDeleteविस्तृत वर्णन .
सर जी भोले बाबा का बड़े वाला भक्त है । भोले साधारण मानव निवास से बड़ी दूर दुर्गम स्थानो पर ही आसन लगाये हैं। तो उन तक पहुँचने का मार्ग बड़ी रोमांचक होता हैं। आज आपसे भोले की यात्रा बडी़ ही रोचक लगा । �� जय भोले बाबा ..
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति सहगल साहब,फ़ोटो भी बहुत खूबसूरत लगाए हैं।अपनी भी केदारनाथ यात्रा पेंडिंग है। आज इस यात्रा का सुंदर वृतांत पढ़ कर शीघ्र ही यात्रा की इच्छा हो रही है।������
ReplyDeleteजय बाबा केदारनाथ जी ��
ReplyDeleteड्रीम डेस्टिनेशन कड़ी में आपके द्वारा की गई यात्रा का आँखों देखा हाल प्रस्तुत किया गया
मैं भी सपत्नीक इसी साल बाबा के दर्शन करके 9 दिन का प्रवास, बाबा के धाम में बाबा के दर्शन , अभिषेक , शृंगार , मङ्गला सब बाबा की विशेष कृपा से आनन्ददायक समय में पूर्ण की
सच में मन मयूर आज फिर नाचने लगा अभी कल ही की तो बात है जैसे
अब मैं अपना पुराण ले बैठा ��
आपने विस्तार से अच्छा लिखा ����������������
बस ��से बधाई ����
बहुत बढ़िया नरेश जी
ReplyDeleteधन्यवाद करुनाकर जी .
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