माँ बृजेश्वरी देवी - नगरकोट वाली माता ( Mata Brijeshwari Devi Temple)
ज्वाला जी में माता के दर्शन के बाद हमने बिना समय गवाएं, जल्दी से पार्किंग से गाड़ी
निकाली और काँगड़ा की तरफ़ चल दिए जहाँ हमने बृजेश्वरी देवी यानि काँगडे वाली माता
के दर्शन करने थे । काँगड़ा यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है, मात्र 35 किलोमीटर ही है। काँगड़ा
तक सड़क भी अच्छी बनी है इसलिए हम लगभग एक घंटे से भी कम समय में वहां पहुँच गए।
मंदिर के आसपास कहीं पार्किंग नज़र नहीं आई तो एक सामने ही एक गली में गाड़ी साइड
में लगा दी, मतलब पचास रूपये बचा लिये। मंदिर जाने के लिये गलियों से गुज़र कर जाना
पड़ता है । मुख्य सड़क से मंदिर दिखायी भी नहीं देता सिर्फ़ एक छोटा सा गेट बना है और
सारा रास्ता तंग गलियों से होकर है । मंदिर तक पहुंचना एक भूल भुलैया जैसा ही है ।
मख्खन ,मेवों व फलों से सजाई हुई मां की पिंडी (चित्र नेट से )
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हम लोग भी पूछते -2 मंदिर के द्वार तक पहुँच ही गए । आशा के विपरीत मंदिर
अन्दर से काफ़ी विशाल है । इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में किया गया था, इसे
नगरकोट वाली माता के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि कांगड़ा का पुराना नाम नगरकोट ही
था। बृजेश्वरी मंदिर के गर्भ गृह में चांदी
के छत्र के नीचे माता एक पिण्डी के रुप में विराज मान है, इस पिंडी की ही देवी के रूप में पूजा की जाती है। वजेश्वरी
मंदिर में कई अन्य देवी व देवताओं की प्रतिमा भी विराजमान है तथा मंदिर बायें तरफ
लाल भैरव नाथ की प्रतिमा विराजमान है। भैरव नाथ भगवान शिव का ही एक अवतार है।
मंदिर के प्रांगन में एक विशाल बरगद का वृक्ष भी है । बरगद के पेड़ को भगवान शिव का
रूप माना जाता है इसलिए जहाँ भी माता सती का मंदिर हो वहाँ बरगद के पेड़ अवश्य होते
हैं।
मंदिर में बिलकुल भी भीड़ नहीं थी ,हमारे अलावा दो चार लोग ही थे। वहीँ मंदिर
के पुजारी जी मिल गए ,उनसे बातचीत करने लगे । उन्होंने बताया कि हर साल बज्रेश्वरी
देवी मंदिर में मकर संक्रांति पर घृत पर्व मनाया जाता है। माँ की पिंडी पर चढ़ाए
जाने वाले मक्खन को बनाने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी जाती है । इस पर्व में
18 क्विंटल मक्खन से माँ का श्रृंगार किया जाता है और सारे मक्खन को मंदिर में ही
तैयार किया जाता है । मंदिर मे घृत पर्व में माता की पिंडी पर 18 क्विंटल मक्खन
चढ़ाया जाता है। स्थानीय और बाहरी लोगों द्वारा मदिर में दान स्वरूप देसी घी
पहुचाया जाता है। मंदिर प्रशासन घी को 101 बार ठंडे पानी से धोकर मक्खन बनाने के
लिए मंदिर के पुजारियों की कमेटी का गठन करता है और यही कमेटी मक्खन की पिन्निया
बनाती है। 14 जनवरी को देर सायं माता की पिंडी पर मक्खन चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू
होती है और यह सुबह तक जारी रहती है। माँ की पिंडी को मेवों, फूलों और फलों से सजाया जाता है। यह पर्व सात दिन चलता है। सातवें दिन पिंडी
के घृत को उतारने की प्रक्रिया शुरू होती है। इसके बाद घृत प्रसाद के रूप में
श्रद्धालुओ में बांटा जाता है,लेकिन इस प्रसाद को खाया नहीं जाता ।
पंडित जी ने बताया कि मां बज्रेश्वरी देवी का मंदिर अकेला ऐसा है जहा माघ माह
में होने वाले पर्व के बाद मिलने वाले मक्खनरूपी प्रसाद को आप खा नहीं सकते है।
मान्यता है कि चर्म रोगों और जोड़ो के दर्द में लेप लगाने के लिए यह प्रसाद रामबाण
सिद्ध होता है। यह परंपरा सदियो से चली आ रही है और शक्तिपीठ मां बज्रेश्र्वरी के
इतिहास से संबंधित है। कहते है कि जालंधर दैत्य को मारते समय मां के शरीर पर कई
चोटें लगी थी और घावो को भरने के लिए देवताओं ने मां के शरीर पर घृत मक्खन का लेप
किया था। इसी परंपरा के अनुसार देसी घी को 101 बार शीतल जल से धोकर इसका मक्खन
तैयार कर इसे माता की पिडी पर चढ़ाया जाता है। मकर संक्रांति पर घृत मडल पर्व को
लेकर यह श्रद्धालुओं की ही आस्था है कि हर बार मां की पिडी पर घृत की ऊंचाई बढ़ती
जा रही है।
पंडित जी ने बताया कि यह शक्तिपीठ अपने आप में अनूठा और विशेष है, क्योंकि यहां मात्र हिन्दू भक्त ही शीश नहीं
झुकाते, बल्कि मुस्लिम और सिक्ख
धर्म के श्रद्धालु भी इस धाम में आकर अपनी आस्था के फूल चढ़ाते हैं। कहते हैं कि
बृजेश्वरी देवी मंदिर के तीन गुंबद इन तीन धर्मों के प्रतीक हैं। पहला हिन्दू धर्म
का प्रतीक है, जिसकी आकृति
मंदिर जैसी है तो दूसरा मुस्लिम समाज का और तीसरा गुंबद सिक्ख संप्रदाय का प्रतीक
है। पंडित जी ने बताया कि यहाँ काफी श्रद्धालु मंदिर परिसर में ही बने एक विशेष
स्थान पर अपने बच्चों का मुंडन करवाते हैं। मान्यता है कि यहां बच्चों का मुंडन
करवाने से माँ बच्चों के जीवन की समस्त आपदाओं को हर लेती हैं। मंदिर परिसर में ही
भगवान भैरव का भी मंदिर है, लेकिन इस मंदिर में महिलाओं का जाना पूर्ण रूप
से वर्जित हैं। यहां विराजे भगवान भैरव की मूर्ति बड़ी ही ख़ास है। कहते हैं, जब भी कांगड़ा पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो इस मूर्ति की आंखों से आंसू
और शरीर से पसीना निकलने लगता है। तब मंदिर के पुरोहित विशाल हवन का आयोजन कर माँ
से आने वाली आपदा को टालने का निवेदन करते हैं।
पंडित जी से कुछ और जानकारी ले हमने दोबारा माँ के दर्शन किये और मंदिर से
वापिस आ गए और फिर गाड़ी पर पहुँचकर अपने अगले पड़ाव माता चामुण्डा देवी की तरफ निकल
गए ।
मंदिर का पौराणिक इतिहास एवं जानकारी
बृजेश्वरी देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा ज़िले में स्थित है। माना जाता
है कि इसी स्थान पर माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था और माता यहाँ शक्तिपीठ रूप
में स्थापित हो गईं। यह मंदिर काँगड़ा क्षेत्र के लोकप्रिय मंदिरों में से एक है।माता
बृजेश्वरी देवी मंदिर को नगर कोट की देवी व कांगड़ा देवी के नाम से भी जाना जाता है
और इसलिए इस मंदिर को नगर कोट धाम भी कहा जाता है। इस स्थान का वर्णन माता दुर्गो
स्तुति में भी किया गया हैः-
सोहे अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला।।
नगर कोट में तुम्हीं बिराजत। तिहूँ लोक में डंका बाजत।।
ऐसा माना जाता है माँ बृजेश्वरी देवी व कांगड़ा देवी जी का मंदिर 51 सिद्व पीठों में से एक है। माँ वजेश्वरी देवी
के दर्शनों के लिए भक्त पूरे भारत से आते है। नवरात्रि के त्यौहार के दौरान बड़ी
संख्या में लोग दर्शनों के लिए मंदिर में आते है।
ऐसा माना जाता है कि वजेश्वरी मंदिर 10वीं शाताब्दी तक बहुत ही समृद्ध था। इस मंदिर को विदेशी आक्रमणकारियों ने कई
बार लुटा था सन 1009 में मौम्मद गजनी
ने इस मंदिर को पूरी तरह तबाह कर दिया था, इस मंदिर के चाँदी से बने दरवाजें तक उखाड कर ले गया था। ऐसा भी माना जाता है कि मौम्मद गजनी ने इस
मंदिर को पांच बार लुटा था। उसके बाद 1337 में मौम्मद बीन तुकलक और पांचवी शाताब्दी में सिंकदर लोदी ने लुटा तथा नष्ट कर
किया, यह मंदिर कई बार लुटा व
टूटाता रहा और बार बार इसका पुनः निर्माण होता रहा। ऐसा भी कहा जाता है कि सम्राट
अकबर यहां आयें और इस मंदिर के पुनः निर्माण में सहयोग भी दिया था। 1905 में आये बहुत बडे़ भुकम ने इस मंदिर को पूरी
तरह नष्ट कर दिया था। वर्तमान मंदिर का पुनः निर्माण 1920 में किया गया था।
तीन गुंबद वाले और तीन संप्रदायों की आस्था का केंद्र कहे जाने वाले माता
बृजेश्वरी के इस धाम में माँ की पिण्डियां भी तीन ही हैं। मंदिर के गर्भगृह में
प्रतिष्ठित पहली और मुख्य पिण्डी माँ बृजेश्वरी की है। दूसरी माँ भद्रकाली और
तीसरी और सबसे छोटी पिण्डी माँ एकादशी की है। कहते हैं जो भी भक्त मन में सच्ची
श्रद्धा लेकर माँ के इस दरबार में पहुंचता है, उसकी कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती। फिर चाहे मनचाहे
जीवन साथी की कामना हो या फिर संतान प्राप्ति की लालसा। माँ अपने हर भक्त की मुराद
पूरी करती हैं।
आरती मां के इस दरबार
में पांच बार आरती का विधान है,
जिसका गवाह बनने की इच्छा
हर भक्त के मन में होती है। माँ बृजेश्वरी देवी के इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन माँ
की पांच बार आरती होती है। सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले माँ की शैय्या
को उठाया जाता है। उसके बाद रात्रि के श्रृंगार में ही माँ की मंगला आरती की जाती
है। मंगला आरती के बाद माँ का रात्रि श्रृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है।
उसके बाद पीले चंदन से माँ का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण
पहनाएं जाते हैं। प्रात: काल की आरती चना, पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर संपन्न होती है।
दोपहर की आरती और भोग चढ़ाने की रस्म को यहाँ गुप्त रखा जाता है। दोपहर की
आरती के लिए मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, दोपहर के बाद मंदिर के
कपाट दोबारा भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं और भक्त माँ का आशीर्वाद लेने पहुंच
जाते हैं। कहते हैं एकादशी के दिन चावल का प्रयोग नहीं किया जाता है, लेकिन इस शक्तिपीठ में माँ एकादशी स्वयं मौजूद
हैं, इसलिए यहां भोग में चावल
ही चढ़ाया जाता है। सूर्यास्त के बाद इन पिण्डियों को स्नान कराकर पंचामृत से इनका
दोबारा अभिषेक किया जाता है। लाल चंदन, फूल व नए वस्त्र पहनाकर माँ का श्रृंगार किया जाता है और इसके साथ ही सांय काल
आरती संपन्न होती है। शाम की आरती का भोग भक्तों में प्रसाद रूप में बांटा जाता
है। रात को माँ की शयन आरती की जाती है, जब मंदिर के पुजारी माँ की शैय्या तैयार कर माँ की पूजा-अर्चना करते हैं।
या देवी सर्व
भूतेषु,शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै ,नमस्तस्यै
नमो नमः।।
।। जय माता दी ।।
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मंदिर का बाह्य प्रवेश द्वार |
मंदिर का आंतरिक प्रवेश द्वार |
मंदिर का प्रागंण |
मंदिर का प्रागंण |
मंदिर का प्रागंण |
वट वृक्ष |
माँ बृजेश्वरी देवी (चित्र नेट से ) |
वाह सहगल जी आनंद आ गया ,नवरात्र के शुभ अवसर पर माँ के दर्शन करवा दिए .जय माता दी .
ReplyDeleteधन्यवाद राज जी । जय माता दी ।
Deleteवाह शानदार �� पहली बार सुना मा ब्रिजेश्वरी माता मंदिर के बारे में। अहोभाग्य!! खूबसूरत तस्वीरें
ReplyDelete×
शशि नेगी
धन्यवाद शशि जी । जय माता दी ।
Deleteजय माता दी। ब्रजेश्वरी देवी हमारी कुलदेवी हैं...हमारे ब्रज क्षेत्र के ध्यानू भगत यहां की पदयात्रा करते थे। उन्होने यहां अपना शीश भी चढाया था। हमारे यहां से लोग पीले वस्त्र पहन कर दरबार मे जात लगाने आते हैं मुझे भी यह सौभाग्य 2016 मे मिला।
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल जी । जय माता दी । वहाँ ध्यानू भक्त की मूर्ति भी थी ।
Deleteजय माता दी ,
ReplyDeleteधन्यवाद किशन जी । जय माता दी ।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteJai Mata Di 🙏
ReplyDeleteजय माता दी ।
Deleteजय माता दी नरेश भाई बहुत अच्छी यात्रा चल रही बहुत बढ़िया
ReplyDeleteजय माता दी नरेश भाई बहुत अच्छी यात्रा चल रही बहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद विनोद भाई । जय माता दी ।
DeleteBahut achi post likhi hai naresh ji....Jai mata di.
ReplyDeletePratima
धन्यवाद प्रतिमा जी । जय माता दी ।
Deleteबहुत सुंदर दर्शन करा दिए आपने नगर कोट मैया के ! हमें भी 2015 नवंबर में दर्शन का लाभ और सौभाग्य मिला ! अच्छी जगह है
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी .जय माता की
Deleteघृत पर्व के बारे में जानकर अच्छा लगा..जय माता दी
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक जी ।जय माता दी ।
DeleteJai Maa Kangra Devi.
ReplyDeleteजय माता दी .
Deleteजय मां जगदम्बे ।
ReplyDeleteWow!!! It seems a very beautiful place.... Thanks for sharing this article...Very nice information for traveler ..thanks a lot for sharing this information.Thanks a lot for giving proper tourist knowledge and share the different type of culture related to different places. Bharat Taxi is one of the leading taxi and Cab Services provider in all over India.
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ReplyDeletedog does.
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