माता मनसा देवी मंदिर ,पंचकुला
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
शिवालिक पर्वत माला की गोद में बसी माता मनसा देवी पर जाने का
मुझे कई बार सौभाग्य मिला है । यहाँ परिवार के साथ ,दोस्तों के साथ और अकेले भी कई
बार जा चूका हूँ । आज से 16 -17 वर्ष पहले मैं चंडीगढ़ में प्राइवेट जॉब करता था तो
जब भी काम से जल्दी फ्री हो जाते तो शाम को अम्बाला की ट्रेन पकड़ने से पहले कई बार
जल्दी से माता मनसा देवी के मंदिर में चले जाते थे । इस मंदिर की दूर दूर तक काफी
मान्यता है और रविवार के दिन तो यहाँ काफी भीड़ हो जाती है ।
माता मनसा देवी |
पिछले वर्ष जनवरी के महीने में एक बार फिर मुझे परिवार सहित
यहाँ जाने का अवसर मिला। प्रोग्राम कुछ इस तरह से बनाया कि पहले जाते हुए पंचकुला
स्थित नाडा साहेब गुरूद्वारे जायेंगे फिर वहाँ से सीधा मनसा देवी। कोहरे का मौसम
था इसलिये बच्चों के साथ घर से निकलने में ही 10:30 बज गए और नाडा साहेब
गुरूद्वारे पहुँचने में तो दोपहर के 12 बज चुके थे ।
नाडा साहिब पंचकूला का एक
धार्मिक स्थान है। यह गुरुद्वारा शहर से 15कि.मी. दूर घग्गर नदी के किनारे तथा
शिवालिक पहाडि़यों की तलहटी में स्थित है। इतिहास के अनुसार, गुरु गोबिंद सिंह अपने
साथी योद्धाओं के साथ भंगनी की लड़ाई में मुग़लों को हराने के बाद इस जगह
पर रुके थे। गुरु
गोबिंद सिंह के अनुयायियों में से एक नाडु शाह ने इस जगह विजयी योद्धाओं का स्वागत
किया और गुरु का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इसलिए इस गुरुद्वारे का नाम
उनके नाम पर रखा गया।
गुरूद्वारे में दर्शन के बाद लगभग एक बजे हम यहाँ से मनसा देवी
मंदिर की ओर चल दिए । मंदिर यहाँ से लगभग 10 किलोमीटर दूर है और फिर भी ट्रैफिक
ज्यादा होने के कारण गाड़ी में आधा घंटा लग ही गया । गाड़ी पार्किंग में लगा और
प्रशाद लेकर हम मंदिर भवन की ओर चल दिये ।आज छुट्टी का दिन होने के कारण यहाँ काफी
भीड़ थी और प्रवेश द्वार से पहले ही काफी लम्बी लाइन लगी थी और लगभग एक घंटे बाद ही
हम मंदिर में प्रवेश कर पाए । मंदिर श्राइन बोर्ड के अधीन है इसलिए यहाँ साफ़ सफाई
काफी बढ़िया है । मुख्य मंदिर में माथा टेक कर, यहाँ से 250 मीटर पीछे की ओर मौजूद
पटियाला मंदिर की तरफ चल दिए।
रास्ते के
दोनों तरफ़ शानदार बगीचा बना हुआ है। पटियाला मंदिर मुख्य मंदिर के मुकाबले काफी
बड़ा बना है और इसे पटियाले के महाराजा ने बनवाया था । यह मंदिर नगाड़ा शैली में बना
हुआ है । पटियाला मंदिर के पास में ही एक लंगर भवन बना हुआ है जहाँ यात्रियों को
दोपहर और शाम को नि:शुल्क भोजन मिलता है।
यहाँ बहुत ही खुला और शांत वातावरण है । हम काफी देर यहाँ बैठे
रहे और फिर चार बजे के करीब वापिस पार्किंग की और चल दिए । यहाँ से एक रास्ता सीधा
पार्किंग को चला जाता है । यहाँ बच्चों ने अपने लिये कुछ शोपिंग की ,फिर खाने पीने
का दौर चला और फिर हम अपनी गाड़ी में बैठ वापिस घर को चल दिए ।
अब मंदिर के बारे में कुछ
इतिहासिक जानकारी ।
माता मनसा देवी मंदिर ,पंचकुला
भारत की सभ्यता एवं संस्कृति आदिकाल से ही विश्व की
पथ-प्रदर्शक रही है और इसकी चप्पा-चप्पा धरा को ऋषि-मुनियों ने अपने तपोबल से पावन
किया है। हरियाणा की पावन धरा भी इस पुरातन गौरवमय भारतीय संस्कृति, धरोहर तथा देश के
इतिहास एवं सभ्यता का उदगम स्थल रही है। यह वह कर्म भूमि है, जहां धर्म की रक्षा
के लिए दुनिया का सबसे बड़ा संग्राम महाभारत लड़ा गया था और गीता का पावन संदेश
गूंजित हुआ था। शिवालिक की पहाडिय़ों से कुरुक्षेत्र तक के 48 कोस के सिंधुवन में
ऋषि-मुनियों द्वारा पुराणों की रचना की गई और यह समस्त भू-भाग देवधरा के नाम से
जाना गया। जिला पंचकूला में ऐतिहासिक नगर मनीमाजरा के निकट शिवालिक पर्वत माला की
गोद में सिंधुवन के अतिंम छोर पर प्राकृतिक छंटाओं से आच्छादित एकदम मनोरम एवं
शांति वातावरण में स्थित है-सतयुगी सिद्ध माता मनसा देवी का मंदिर। मान्यता है कि
यदि कोई भक्त सच्चे मन से 40
दिन तक निरंतर मनसा देवी मंदिर में पूजा-अर्चना करता है तो माता उसकी सभी
मनोकामनाएं पूर्ण करती है। माता मनसा देवी मंदिर में चैत्र व आश्विन मास
मेंनवरात्रों के दिनों में भारी मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लाखों श्रद्धालुओं
माता के दर्शन के लिए आते हैं।
एक दंत कथा के अनुसार मनसा देवी का नाम महंत मंशा नाथ के नाम
पर पड़ा बताया जाता है। मुगलकालीन बादशाह सम्राट अकबर के समय लगभग सवा चार सौ वर्ष
पूर्व बिलासपुर गांव में देवी भक्त महंत मन्शा नाथ रहते थे। उस समय यहां देवी की
पूजा अर्चना करने दूर-दूर से लोग आते थे। दिल्ली सूबे की ओर से यहां मेले पर आने
वाले प्रत्येक यात्री से एक रुपया कर के रूप में वसूल किया जाता था। इसका मंहत
मनसा नाथ ने विरोध किया। हकूमत के दंड के डर से राजपूतों ने मन्शा नाथ के मदिंर
में प्रवेश पर रोक लगा दी। माता का अनन्य भक्त होने के नाते उसने वर्तमान मदिंर से
कुछ दूर नीचे पहाडों पर अपना डेरा जमा लिया और वहीं से माता की पूजा करने लगा।
महंत मंशा नाथ का धूना आज भी मनसा देवी की सीढियों के शुरू में बाई ओर देखा जा
सकता है।
आईने अकबरी में यह उल्लेख मिलता है कि जब सम्राट अकबर 1567 ई. में कुरूक्षेत्र
में एक सूफी संत को मिलने आए थे तो लाखों की संख्या में लोग वहां सूर्य ग्रहण पर
इकटठे हुये थे। महंत मंशा नाथ भी संगत के साथ कुरूक्षेत्र में स्नान के लिये गये
थे। कहते हैं कि जब नागरिकों एवं कुछ संतों ने अकबर से सरकार द्वारा यात्रियों से
कर वसूली करने की शिकायत की तो उन्होंने हिंदुओं के प्रति उदारता दिखाते हुए सभी
तीर्थ स्थानों पर यात्रियों से कर वसूली पर तुरंत रोक लगाने का हुकम दे दिया, जिसके फलस्वरूप
कुरूक्षेत्र एवं मनसा देवी के दर्शनों के लिए कर वसूली समाप्त कर दी गई।
श्री माता मनसा देवी के सिद्घ शक्तिपीठ पर बने मदिंर का
निर्माण मनीमाजरा के राजा गोपाल सिंह ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर लगभग दो सौ
वर्ष पूर्व चार वर्षो में अपनी देखरेख में सन 1811 से 1815 ईसवी में पूर्ण करवाया था। मुख्य मदिंर
में माता की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति के आगे तीन पिंडीयां हैं, जिन्हें मां का रूप
ही माना जाता है। ये तीनों पीडिंया महालक्ष्मी, मनसा देवी तथा सरस्वती देवी के नाम से
जानी जाती हैं। मंदिर की परिक्रमा पर गणेश, हनुमान, द्वारपाल, वैष्णवी देवी, भैरव की मूर्तियां
एवं शिव लिंग स्थापित है। इसके अतिरिक्त श्री मनसा देवी मंदिर के प्रवेश द्वार पर
माता मनसा देवी की विधि विधान से अखंड ज्योत प्रज्जवलित कर दी गई है। इस समय मनसा
देवी के तीन मंदिर हैं, जिनका
निर्माण पटियाला के महाराज द्वारा करवाया गया था। प्राचीन मदिंर के पीछे निचली
पहाडी के दामन में एक ऊंचे गोल गुम्बदनुमा भवन में बना माता मनसा देवी का तीसरा
मदिंर है।
मदिंर के एतिहासिक महत्व तथा मेलों के उपर प्रति वर्ष आने वाले
लाखों
तीर्थयात्रियों
को और अधिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए हरियाणा सरकार ने मनसा देवी परिसर को 9 सितम्बर 1991 को माता मनसा देवी
पूजा स्थल बोर्ड का गठन
करके इसे अपने हाथ मे ले लिया था जोकि मंदिर का बडे़ ही सुचारू ढंग से रख-रखाव कर रहा
है।यात्रियों के ठहरने के लिये बोर्ड ने मंदिर के साथ ही लक्ष्मी भवन नाम से एक
धर्मशाला बनवाई है जिसमे 45 कमरे हैं, बोर्ड की एक अन्य धर्मशाला भी है जिसमे 15
कमरे हैं। साथ ही में बने हरियाणा पर्यटन विभाग की एक डोरमैट्री भी है ।
इस मंदिर में नवरात्रि पर्व पूरे उत्साह और उल्लास के साथ
मनाया जाता है। यह नौ दिनों तक चलता है जब भक्त अपनी प्रार्थना करने के लिए यहाँ
आते हैं। हरियाणा पर्यटन द्वारा जटायू नामक यात्रिका की व्यवस्था की गई है।
नवरात्रि मेला आश्वन और चैत्र महीनों में लगता है। नवरात्रि के दौरान मंदिर के
ट्रस्ट के द्वारा आवास और दर्शन की उचित व्यवस्था की
जाती है। भक्तों के आने-जाने की व्यवस्था के लिए सख़्त कदम उठाए जाते हैं।
इसके पुरातात्विक और पौराणिक महत्व के कारण तथा अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए आने
वाले भक्तों के लिए हरियाणा सरकार ने
इस
मंदिर के बुनियादी ढांचे, प्रबंधन और प्रशासन
में सुधार के लिए प्रयास किए हैं। आसपास की
भूमि और इमारतों की देखरेख भी की जाती है। यह जगह विरासत स्थल के रूप में संरक्षित है।मंदिर की दीवारों को भित्तिचित्रों से सजाया गया है। मेहराब और छत फूलों के चित्रों से सजी
हुई हैं जो विभिन्न विषयों को दर्शाती हैं। मुख्य मंदिर की वास्तुकला गुंबदों और मीनारों के साथ
मुग़ल वास्तुकला का प्रतिनिधित्व करती
है।
यह मंदिर चंडीगढ़ से 10कि.मी. और पंचकूला से
4कि.मी. दूर है। स्थानीय बसें और आटो रिक्शा परिवहन के साधन के
रूप में आसानी से उपलब्ध होती हैं।
नवरात्रि
के दौरान विशेष बसें चलाई जाती हैं। हवाईमार्ग तथा रेलमार्ग से आने पर चंडीगढ़ गंतव्य स्थान है।
दिन गए ने नरातयाँ दे आ ,सानु वि चिठ्ठी
पायीं दातिये ।
दिन बुझदे ने लम्बे लम्बे साल ,तारीख
छोटी पायीं दातिये ।।
।। जय माता दी ।।
माता मनसा देवी |
प्रवेश द्वार के पास |
प्रवेश द्वार |
प्रवेश द्वार |
प्रवेश द्वार के बाहर लगी लाइन |
मन्सा नाथ की समाधी |
मंदिर में गर्भ गृह जाने के लिये लाइन |
मुख्य मंदिर |
मेरी बेटियाँ |
छुटकी |
पटियाला मंदिर |
नाडा साहेब गुरूद्वारा |
नाडा साहेब गुरूद्वारा |
नाडा साहेब गुरूद्वारा |
जय माता दी सहगल साहब
ReplyDeleteशानदार, चित्रों और पोस्ट के साथ बड़ा ही उपयुक्त समय छांटा आपने पोस्ट का ।
जय माता दी
धन्यवाद कौशिक जी .जय माता दी .
Deleteसहगल साहब नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं और जिस तरह से आपने इस पावन पर्व में मनसा देवी के दर्शन कराएं उसके लिए बहुत-बहुत आभार और मनसा देवी सबकी मनोकामनाएं पूरी करती रहे उनका वैभव बना रहे जय माता दी
ReplyDeleteधन्यवाद पाण्डेय जी .जय माता दी .नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं.
Deleteआपने पहले नवरात्र के उपलक्ष्य पर मां दुर्गा जी की असीम अनुकम्पा से माता मनसा जी की पोस्ट बहुत आनंददायक पेश की है। शानदार ऐतिहासिक वर्णन। जय माता दी।💐💐🙏
ReplyDeleteधन्यवाद जी .जय माता दी .
Deleteजय माता दी।
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल जी .जय माता दी .
Deleteजय माता की नरेश भाई
ReplyDeleteबढिया वर्णन सजीव चित्रण👍🌹
धन्यवाद अजय भाई .
Deleteजय माता दी
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई . जय माता दी।
Deleteबढिया व सजीव वर्णन .जय माता दी.
ReplyDeleteधन्यवाद अजय जी . जय माता दी।
Deleteनवरात्रि का आरंभ सजीव वर्णन के साथ. शुभ नवरात्रि.
ReplyDeleteधन्यवाद जयश्री मैडम . जय माता दी।
Deleteबहुत बढ़िया ! जय माता की ! मनसा मंदिर बहुत विख्यात है लेकिन मुझे इसकी बनावट हिन्दू मंदिरों जैसी नहीं लगती !! कहीं न कहीं मुग़ल स्थापत्य का प्रभाव झलकता है !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी जी . जय माता दी। मुझे भी ऐसा ही लगा .
Deleteशानदार, चित्रों के साथ बढ़िया पोस्ट. जय माता दी .
ReplyDeleteधन्यवाद राज भाई । जय माता दी ।
ReplyDeleteमाता मनसा जी की का ऐतिहासिक वर्णन
ReplyDeletedhanyvad Sanjay Bhaskar ji.
DeleteNice article.
ReplyDeleteManimahesh Kailash Peak is known to be the home of Lord Shiva.
THANKS
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।ऐसे ही अच्छे जगहों का दर्शन करवाते रहें
ReplyDeleteधन्यवाद राजकुमारी जी ।जय माता दी ।।
Deleteबहुत़ ही उम्दा लेखन भाई जी। जय माता दी
ReplyDeleteधन्यवाद सुनील मित्तल जी .
ReplyDeleteWow! really nice and great blog. I really like this post. Its an awesome, appropriate, customized information one seeks for.
ReplyDeleteThanks Ankita
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