ओंकारेश्वर- ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
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अगले दिन सुबह जल्दी उठकर हम संक्रांति
स्नान के लिए आश्रम के सामने वाले नरसिंह घाट पर चले गए।
इस बार राम
घाट पर नहीं गए क्योंकि राम घाट दूर भी था और वहां भीड़ भी ज्यादा मिलनी थी।
स्नान करने के बाद वापिस आश्रम आए और नाश्ता करने के बाद इंदौर जाने की तैयारी
करने लगे।
ओम्कारेश्वर मन्दिर |
इंदौर में मेरे एक जानकार डॉक्टर सुमित
शर्मा जी रहते हैं । जानकारी भी बस इतनी कि हम दोनों एक ही WhatsApp ग्रुप –“घुमक्कड़ी दिल से” में है लेकिन कभी व्यक्तिगत बातचीत नहीं हुई । ग्रुप
के माध्यम से ही उन्हें मालूम था की मैं उज्जैन के बाद इंदौर होते हुए ओम्कारेश्वर
जाने वाला हूँ ।मुझसे एक सप्ताह पहले ही ग्रुप के अन्य सदस्य, संजय कौशिक जी और सचिन
जांगड़ा उज्जैन कुंभ आए थे और सुमित जी उनको मिलने के लिए इंदौर से उज्जैन आए थे।
मुझे लग रहा था कि वह पहले भी एक दिन यहां आ चुके हैं और अब यदि मैं उनसे मिलने को
कहता हूँ और वो अगर मुझे मिलने आएंगे तो उनका समय काफी खराब होगा क्योंकि उन्हें
अपना क्लिनिक बंद करके आना पड़ेगा । इसी झिझक के मारे मैंने उन्हें फोन नहीं किया, न
ही कोई मैसेज दिया ।
लेकिन डॉक्टर सुमित शर्मा जी को मेरे प्रोग्राम
के बारे में पता था । उनका मेरे फ़ोन पर मैसेज आ गया उन्होंने मुझ से पूछा कि मेरे
साथ कितने लोग हैं और हमारा अगला प्रोग्राम क्या है ? मैंने उन्हें बताया कि मेरे
साथ मेरे दो मित्र हैं ,अब हम इंदौर जाएंगे और वहां से ओंकारेश्वर की बस लेकर
ओंकारेश्वर दर्शन के लिए जाएंगे । उनका फिर मैसेज आया कि जब आप इंदौर की बस में बैठ
जाओ तो मुझे बता देना । इंदौर से मैं आपके साथ अपनी कार में चलूँगा । मैंने भी जबाब
भेजा कि डाक्टर साहब आप क्यूँ तक्लुफ्फ़ करते हो , आप को बेवजह दिक्कत होगी, हमने
तो जाना ही है हम आराम से बस में चले जायेंगे । लेकिन सुमित जी नहीं माने, वो बोले
तक्लुफ्फ़ वाली कोई बात नहीं , मुझे भी वहां गए काफी दिन हो गए हैं और मैं काफी समय
से ओम्कारेश्वर जाने की सोच रहा हूँ आपके साथ मैं भी दर्शन कर आऊँगा । मैंने जबाब
दिया चलो ठीक है, फिर इंदौर मिलते हैं ।
नाश्ता
करने के बाद हम उज्जैन बस स्टैंड की तरफ चल दिए । उस दिन काफी भीड़ थी हमें आश्रम
से बस स्टैंड पहुंचने में लगभग 2 घंटे लग गए
उज्जैन बस स्टैंड पहुंच कर वहां से इंदौर की बस ले ली और इंदौर पहुंचकर, जहां
डॉक्टर साहब ने बोला था, वहां उतर गए। उनको फोन लगाया तो मालूम हुआ उनका क्लीनिक
सामने ही है। हम तीनों सुमित जी के क्लिनिक पर चले गए। डॉक्टर साहब हम सबसे बड़ी
गरम जोशी से मिले, लग ही नहीं रहा था कि हम सब पहली बार मिल रहे हैं। खानपान के दौर
के बाद डॉक्टर साहब ने थोड़े अपने मरीज निपटाए और फिर घर जाकर अपनी गाड़ी ले आए और
हम चारों ओंकारेश्वर की तरफ चल दिए ।
ओंकारेश्वर इंदौर से लगभग 70 किलोमीटर दूर है और हम लगभग दो घंटे में वहां पहुंच गए । कुंभ होने के कारण
यहां भी यात्रियों की बहुत भीड़ थी। पार्किंग भी लगभग 2 किलोमीटर दूर बनाई हुई थी; पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर हमने मंदिर जाने के
लिये एक ऑटो बुक कर लिया । ओंकारेश्वर बस स्टैंड पहुँच कर
हम सीधा मंदिर की तरफ चल दिए। बस स्टैंड से सीधा ओंकारेश्वर की और चलते हुए हम नए
पुल पर पहुँच गए। ओंकारेश्वर जाने के लिए नर्मदा
नदी पर दो पुल हैं। पुराने पुल से जाओ तो
मंदिर बाएं तरफ पड़ता है और नए पुल से जाओ तो मंदिर दायें तरफ पड़ता है। मन्दिर से पहले, रास्ते में बहुत से स्थानीय लोग फ़ूल व प्रशाद बेचने के
लिये मौजूद थे। इनमे भी ज्यादतर औरतें ही थी। ऐसी ही एक दुकान से हमने भी फ़ूल व
प्रशाद ले लिये।
ओंकारेश्वर में भी दर्शन की अच्छी व्यवस्था थी । लाइन लगातार चल
रही थी और किसी को भी बिना रुके दर्शन कराए जा रहे थे। लगभग 1 घंटे बाद हम दर्शन करके मंदिर से बाहर आ गए और दूसरे पुल से होते हुए नीचे घाट
पर आ गए। नर्मदा स्नान के लिए नर्मदा के तट पर पुल के दोनों तरफ
घाट बने हुए हैं। यहाँ
आकर हम सब ने नर्मदा नदी में स्नान किया और स्नान करने के बाद हम ममलेश्वर मंदिर की
ओर चल दिए ।
ममलेश्वर मंदिर ममलेश्वर मंदिर एक बहुत पुराना मंदिर है, यह
ओंकारेश्वर मंदिर से नर्मदा
नदी के दूसरे तट पर मौजूद है । ओंकारेश्वर एक प्रसिद्ध मंदिर
है, लेकिन माना जाता है कि ममलेश्वर ही वास्तविक ज्योतिर्लिंग है
इसका सही नाम अमरेश्वर मंदिर है। ममलेश्वर मंदिर नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर
10 वीं सदी में बनाया गया था। यह मंदिरों
का एक छोटा सा समूह है
अपने सुनहरे दिनों में इसमें दो
मुख्य मंदिर थे लेकिन केवल एक बड़े मंदिर
को ही भक्तों के लिए खोला
जाता है। मंदिरों का यह समूह एक संरक्षित प्राचीन स्मारक है।
ममलेश्वर मंदिर ज्यादा बड़ा मंदिर नहीं
है। भगवान शिव, शिवलिंग
रूप में पवित्र स्थान के केंद्र में मौजूद है। पार्वती माता
की मूर्ति दीवार
पर मौजूद है ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग में आप खुद के द्वारा शिवलिंग
को अभिषेकं कर सकते हैं और छू सकते हैं । ममलेश्वर के मुख्य
मंदिर के चारों ओर भगवान शिव के कई
छोटे मंदिर हैं।
ममलेश्वर मंदिर में आने वाले श्रदालुओं की
संख्या ओंकारेश्वर की तुलना में दसंवा हिस्सा भी नहीं थी। जहाँ एक और ओंकारेश्वर में काफी भीड़
थी और दर्शनों के लिए धक्का मुक्की हो रही थी ,यहाँ भीड़ काफ़ी
कम थी। लोग आराम से दर्शन कर रहे थे । भगवान से फुर्सत से मिलना सचमुच में काफी
सकून दायक होता है। मंदिर
की दीवारों पर काफी अच्छी मूर्तिकारी की हुई है। इसी मूर्तिकारी के कारण ही इस मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित
किया हुआ है। मंदिर के गर्भ गृह के सामने नंदी जी की विशाल मूर्ति है। एक अन्य मंदिर
भी वहां पर था जिसके बाहर अब ताला लगा हुआ था।
ममलेश्वर मंदिर में दर्शन के बाद हम वापिस
पार्किंग की ओर चल दिए । शाम के 7:00 बज
चुके थे और अंधेरा शुरू हो चुका था। हमने गाड़ी ली और वापसी शुरु कर दी। आज की रात
हमारा इंदौर में ही रुकने का प्रोग्राम था जहां मैंने अपनी कंपनी के गेस्ट हाउस ने
पहले ही बुकिंग करवा ली थी। वापसी में एक जगह रुक कर चाय पी और इंदौर पहुंचकर सुमित
जी ने हमें गेस्टहाउस उतार दिया और हम गेस्ट हाउस चले गए। गेस्टहाउस में केयर टेकर
को खाने के लिए फोन पर पहले ही बोल दिया था जब हम पहुंचे तो खाना तैयार था ।गर्मी
काफी होने के कारण यहाँ पहुंचकर सबसे पहले सब नहाये और फिर खाना खाने गए । खाना काफ़ी
स्वादिष्ट बना था ,खाना खाकर हम सो गए ।
सुबह आराम से उठे । हमारी गाड़ी दोपहर 12:30 पर थी इसलिए हमें
कोई जल्दी नहीं थी । आराम से नहा धोकर तैयार हुए और आलू के परांठो का नाश्ता किया ।और
लगभग 11 बजे रेलवे स्टेशन के लिये निकल गए । गाड़ी समय से इंदौर से रवाना हो गयी और
अगले दिन सुबह 9 बजे हम वापिस अम्बाला पहुँच गए ।
ओंकारेश्वर मंदिर का इतिहास
व मान्यता
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का भी अपना
स्वयं का इतिहास और कहानियाँ है,
इनमें से एक प्रमुख हैं। एक समय ब्रह्मांडीय यात्रा के दौरान जाते हुए नारद ने विंध्य पर्वत
का दौरा किया और नारद ने मेरु पर्वत की महानता के बारे में विंध्य पर्वत को बताया। इस कारण मेरु से विंध्य जलने लगा और उसने मेरु से भी बड़ा होने का
फैसला किया। विंध्य ने मेरु से बड़ा बनने के लिए भगवान शिव की पूजा शुरू कर दी। विंध्य पर्वत ने लगभग छह महीने के
लिए भगवान ओंकारेश्वर की पार्थिवलिंग के रुप में गंभीर तपस्या के साथ पूजा की। भगवान शिव प्रसन्न हुए और उसे इच्छित वरदान के साथ आशीर्वाद
दिया। सभी देवताओं और ऋषियों के एक अनुरोध पर भगवान शिव ने लिगं के दो भाग किये। एक आधा
ओंकारेश्वर और दूसरा हिस्सा मम्लेश्वर या अमरेशवर के रुप में जाना जाता है।
नर्मदा क्षेत्र में ओंकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है
।ओंकारेश्वर लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा या बनाया हुआ नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है। प्राय: किसी मन्दिर में लिंग की स्थापना गर्भ गृह के मध्य में की जाती है और उसके ठीक ऊपर शिखर होता है, किन्तु यह ओंकारेश्वर लिंग मन्दिर के गुम्बद के नीचे नहीं है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि मन्दिर के ऊपरी शिखर पर भगवान महाकालेश्वर की मूर्ति लगी है। कुछ लोगों की मान्यता है कि यह पर्वत ही ओंकाररूप है। परिक्रमा के अन्तर्गत बहुत से मन्दिरों के विद्यमान होने के कारण भी यह पर्वत ओंकार के स्वरूप में दिखाई पड़ता है। ॐकार में बने हुए चन्द्रबिन्दु का जो स्थान है, वही स्थान ओंकार
पर्वत पर बने ओंकारेश्वर मन्दिर का है। ”
ओंकारेश्वर की ओर ,नर्मदा पुल पर
|
ओंकारेश्वर के पास काफी धर्मशाला भी हैं |
माँ नर्मदा |
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (wiki commons) |
पिछली यात्रा में लिया गया नर्मदा का चित्र |
ममलेश्वर |
नंदी महाराज |
ममलेश्वर मन्दिर की दीवारों पर कलाकृतियाँ |
ममलेश्वर मन्दिर की दीवारों पर कलाकृतियाँ |
ममलेश्वर मन्दिर की दीवारों पर कलाकृतियाँ |
ममलेश्वर |
मेरे साथ डाक्टर सुमित |
मेरे साथी स्वर्ण और सुशील |
बहुत बढ़िया यात्रा वृतांत सहगल जी
ReplyDeleteधन्यवाद गौरव भाई .
DeleteAs usual nice post. Jai Gauri Shankar
ReplyDeleteThanks dear.
Deleteबहुत ही बढ़िया वृतांत जी,मैं भी अभी अगस्त में ही ओम्कारेश्वर से होकर आया हूँ, और डॉक्टर सुमित शर्मा जी हम भी मिले, और रात्रि विश्राम उनके घर पर ही किये थे, बहुत बढ़िया लिखा आपने , साधुवाद आपको
ReplyDeleteThanks Abhyanand Sinha ji.
DeleteBeautiful pictures, excellent narration . Keep writing and keep sharing.
ReplyDeleteThanks Mr. Ajay. Keep coming to blog.
Deleteअपने को भी दर्शन हो गए आपके बहाने
ReplyDeleteThanks Harshita ji.
Deleteबहुत ही अच्छी यात्रा लगी, आपकी फोटोग्राफी के माध्यम से हमने भी वहाँ के साक्षात दर्शन कर लिए. आप सभी को एक साथ देखकर अच्छा लगा.
ReplyDeleteधन्यवाद संदीप जी ।।💐
Deleteमेरे घर के नजदीक होने के बाद भी में ममलेश्वर नहीं जा पाया हा ओम्कारेश्वर मंदिर गया हु...वहा की यात्रा करवाने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई ।💐
Deleteबहुत ही सुन्दर जगह के दर्शन करा दिए आपने नरेश जी ! ममलेश्वर और ओम्कारेश्वर मंदिर अति प्राचीन लग रहे हैं ! एक ओम्कारेश्वर मंदिर , उखीमठ में भी तो है जहां बाबा केदार की पूजा होती है सर्दियों में !!
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई. सही कहा ये मंदिर काफी प्राचीन हैं .
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