Tuesday, 26 September 2017

Mata Chamunda Devi

चामुंडा देवी मंदिर (Mata Chamunda Devi Temple)

बृजेश्वरी देवी, काँगड़ा में दर्शन के बाद हम चामुंडा देवी मंदिर की ओर चल दिए । काँगड़ा से चामुण्डा देवी का मंदिर लगभग 25 किलोमीटर दूर है । सड़क अच्छी बनी है ,ट्रैफिक भी कम था तो गाड़ी तेजी से भागी जा रही थी । काँगड़ा से आगे चलने पर धौलाधार पर्वत माला दिखनी शुरू हो गयी और इसकी बर्फ से ढकी ऊँची चोटियाँ काफी मनोरम दृश्य पैदा कर रही थी।, हरि भरी वादियाँ और कल कल बहते झरने हमें अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे । बीच में दो या तीन जगह पठानकोट –जोगिन्दर नगर रेल मार्ग की छोटी लाइन भी मिलती है । कुल मिला कर इस यात्रा मार्ग में अनेंक मनमोहक दृश्य हैं , पहाडी सौन्दर्य का लुफ्त उठाते हुए हमें समय का मालूम ही नहीं चला और हम चामुण्डा देवी पहुंच गए ।


चामुण्डा देवी मंदिर से थोड़ा सा पहले एक तिराहा है । इससे दायीं तरफ वाला मार्ग पालमपुर होते हुए बैजनाथ की तरफ चला जाता है , सीधा मार्ग नीचे की तरफ उतर कर मंदिर के सामने से होते हुए धर्मशाला को जाता है । तिराहा मंदिर के मुकाबले काफी ऊंचाई पर है और यहाँ ऊपर से आप पूरे मंदिर का अवलोकन कर सकते हैं । मंदिर के सामने ही पार्किंग है, हमने भी अपनी गाड़ी यहाँ लगा दी ,यहाँ पार्किंग फीस केवल बीस रूपये थी । अब तक शाम के साढ़े चार बज चुके थे । चूँकि हमें आज रात को बैजनाथ में जाकर रुकना था इसीलिये हम बिना समय गवाएं सीधा मंदिर की और चल दिए । यहाँ भी बृजेश्वरी देवी मंदिर की तरह , बहुत कम लोग नज़र आ रहे थे ।

मंदिर का प्रागंण काफी बड़ा है । मंदिर के मुख्य द्वार के पास ही में हनुमान और भैरो नाथ की प्रतिमा है। हनुमान को माता का रक्षक माना जाता है। इसलिए माता के मंदिर के बाहर या पास में अक्सर हनुमान जी की मूर्ति मिल ही जाती है । प्रागंण से आगे जाकर, बायीं तरफ से सीडियाँ से नीचे उतर कर मुख्य मंदिर में पहुँच गये । माँ के दर्शन करने के बाद पुजारी से प्रसाद ले मंदिर के पीछे की ओर चले गए ।यहाँ मंदिर के आस पास बन्दर बहुत हैं इसलिए पुजारी जी ने हमें सावधान किया कि हम अपना प्रसाद संभाल कर रखें ।  इस मंदिर का वातावरण बड़ा ही शांत है, जिस कारण यहां आने पर  असीम शांति की अनुभूती होती है। यहां मंदिर परिसर में ही एक छोटा-सा तालाब है , जिसके पानी को बहुत ही शुद्ध माना जाता है। इस तालाब से थोड़ा आगे ही बानेर नदी का तट है जिसमे श्रद्धालु स्नान भी करते हैं । मंदिर परिसर में ही एक खोखली जगह है, जो देखने पर शिवलिंग जैसी प्रतीत होती है। यहां आने वाले आगंतुक मंदिर परिसर में ही कई देवी-देवताओं के चित्रों को भी देख सकते हैं।

चामुंडा देवी मंदिर के पीछे की ओर ही आयुर्वेदिक चिकित्सालय, पुस्तकालय और संस्कृत कॉलेज है। चिकित्सालय के कर्मचारियों द्वारा आये हुए श्रद्धालुओं को चिकित्सा संबंधि सामग्री मुहैया कराई जाती है। यहां स्थित पुस्तकालय में पौराणिक पुस्तकों के अतिरिक्त ज्योतिषाचार्य, वेद, पुराण, संस्कृति से संबंधित पुस्तकें विक्रय हेतु उपलब्ध हैं। यह पुस्‍तकें उचित मूल्य पर क्रय की जा सकती हैं। यहां पर स्थित सांस्कृतिक कॉलेज को मंदिर की संस्था द्वारा चलाया जाता है। यहां वेद, पुराणो कि मुफ़्त कक्षा चलाई जाती है।

मंदिर का इतिहास एवं पौराणिक कथा   
“ हिमाचल प्रदेश को देव भूमि भी कहा जाता है। इसे देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है। पूरे हिमाचल प्रदेश में 2000 से भी ज्यादा मंदिर है और इनमें से ज्यादातर प्रमुख आकर्षक का केन्द्र बने हुए हैं। इन मंदिरो में से एक प्रमुख मंदिर चामुण्डा देवी का मंदिर है जो कि जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है।चामुंडा देवी मंदिर कांगड़ा ज़िला, हिमाचल प्रदेश के शानदार हिल स्टेशन पालमपुर में स्थित है। इस मंदिर को देवी के शक्तिपीठों में गिना जाता है। बानेर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महाकाली को समर्पित है। यहाँ पर आकर श्रद्धालु अपनी भावना के पुष्प मां चामुण्डा देवी के चरणों मे अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। देश के कोने-कोने से भक्त यहाँ आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते है।`
चामुंडा देवी मंदिर धर्मशाला से 15 कि.मी.,काँगड़ा से 25 कि.मी.और पालमपुर से 20 कि.मी की दूरी पर स्थित है। माँ चामुंडा का यह मंदिर लगभग 700 वर्ष पुराना है, जो घने जंगलों और बानेर नदी के तट पर  स्थित है। इस विशाल मंदिर का विशेष धार्मिक महत्त्व है। ये मंदिर हिन्दू देवी चामुंडा, जिनका दूसरा नाम देवी दुर्गा भी है, को समर्पित है।

माता का नाम चामुण्ड़ा पडने के पीछे एक कथा प्रचलित है। 'दुर्गा सप्तशती' के सप्तम अध्याय में माता के नाम की उत्पत्ति कथा वर्णित है। हजारों वर्ष पूर्व धरती पर शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्यो का राज था। उनके द्वारा धरती व स्वर्ग पर काफी अत्याचार किया गया। जिसके फलस्वरूप देवताओं व मनुष्यो ने देवी दूर्गा कि आराधना की और देवी दूर्गा ने उन सभी को वरदान दिया कि वह अवश्य ही इन दोनों दैत्यो से उनकी रक्षा करेंगी। इसके पश्चात देवी दूर्गा ने कोशिकी नाम से अवतार ग्रहण किया। माता कोशिकी को शुम्भ और निशुम्भ के दूतो ने देख लिया और उन दोनो से कहा महाराज आप तीनों लोको के राजा है। आपके यहां पर सभी अमूल्य रत्‍न सुशोभित है। इन्द्र का एरावत हाथी भी आप ही के पास है। इस कारण आपके पास ऐसी दिव्य और आकर्षक नारी भी होनी चाहिए जो कि तीनों लोकों में सर्वसुन्दर है। यह वचन सुन कर शुम्भ और निशुम्भ ने अपना एक दूत देवी कोशिकी के पास भेजा और उस दूत से कहा कि तुम उस सुन्दरी से जाकर कहना कि शुम्भ और निशुम्भ तीनो लोके के राजा है और वो दोनो तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते हैं। यह सुन दूत माता कोशिकी के पास गया और दोनो दैत्यो द्वारा कहे गये वचन माता को सुना दिये। माता ने कहा मैं मानती हूं कि शुम्भ और निशुम्भ दोनों ही महान बलशली है। परन्तु मैं एक प्रण ले चूंकि हूं कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करूंगी। यह सारी बाते दूत ने शुम्भ और निशुम्भ को बताई। तो वह दोनो कोशिकी के वचन सुन कर उस पर क्रोधित हो गये और कहा उस नारी का यह दूस्‍साहस कि वह हमें युद्ध के लिए ललकारे। तभी उन्होंने चण्ड और मुण्ड नामक दो असुरो को भेजा और कहा कि उसके केश पकड़कर हमारे पास ले आओ। चण्ड और मुण्ड देवी कोशिकी के पास गये और उसे अपने साथ चलने के लिए कहा। देवी के मना करने पर उन्होंने देवी पर प्रहार किया। तब देवी ने अपना काली रूप धारण कर लिया और असुरो को यमलोक पहुंचा दिया। माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड-मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में 'चामुंडा' के नाम से विख्यात हो जाओगी। मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरूप को चामुंडा रूप में पूजते हैं।

चामुण्डा देवी में वर्ष में आने वाली दोनो नवरात्रि बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। नवरात्रि में यहां पर विशेष तौर पर माता की पूजा की जाती है। मंदिर के अंदर अखण्ड पाठ किये जाते हैं। सुबह के समय में सप्तचण्डी का पाठ किया जाता है। नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है और  प्रत्येक रात्रि को माँ का जागरण किया जाता है। नवरात्रि में यहां पर विशेष हवन और पूजा की जाती है। माता के भक्त माता की एक झलक पाने के लिए घण्टों कतार में खडें रहते हैं ।”

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि,विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते !
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि,भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते !!

।। जय माता दी ।।


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मुख्य मंदिर 








पता नहीं फ़ोन में क्या दिख गया ?

चारों एक साथ 

धौलादार 

धौलादार 

धौलादार 



माँ चामुण्डा देवी 

22 comments:

  1. जय माता दी,, नरेश जी,, चामुंडा माता का मन्दिर दर्शन कराने के लिए बहुत आभार,,, 🙏

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    1. जय माता दी ,सचिन भाई .

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  2. bahut sunder varnan .apne ek bar phir meri chamunda maa ki yaatra yaad karwa di ....dhanywad naresh ji ..
    jai mata di.......pratima sharan

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    1. धन्यवाद प्रतिमा जी .जय माता दी .

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  3. जय माता दी .सुन्दर वर्णन .

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    1. धन्यवाद जी .जय माता की .

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  4. जय देवी चामुंडा। आनंद आ गया भगवन। भगवती कल्याण करे।

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    1. धन्यवाद शर्मा जी .जय चामुंडा माता की .

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  5. अद्भुत दर्शन ! माता चामुंडा के दर्शन कर लिए हमने भी ! हम नगरकोट से ज्वाला जी , फिर चिंतपूर्णी की तरफ मुड़ गए थे ! चामुंडा जी की तरफ नहीं जा पाए ! आपने धर्मशाला और पालमपुर से जो दूरी लिखी है वो बड़े काम की लगी !! जय माता दी

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    1. धन्यवाद योगी जी .जय चामुंडा माता की .

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  6. जय माता दी..धौलाधार के नज़ारे मस्त है

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  7. धन्यवाद प्रतीक जी ।जय माता दी ।

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  8. "Om Aim Hreem Kleem Chamundaye Vichche"
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  9. इसके बारे में सुनी हूँ पर देखने का सौभाग्य नहीं मिला । बहुत सुंदर है ।

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    1. धन्यवाद राज कुमारी जी .

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  10. बहुत़ ही उम्दा लेखन भाई जी। जय माता दी

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    1. धन्यवाद सुनील मित्तल जी .

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