नैना देवी मंदिर Temple
हिमाचल में पाँच देवियों की यात्रा , एक काफी प्रसिद्ध यात्रा सर्किट है । माँ
नैना देवी से शुरू होकर ,माँ चिंतपूर्णी ,माँ ज्वाला जी, कांगडे वाली माता (बृजेश्वरी
देवी) और माता चामुण्डा देवी । बहुत से टूर ओपेरटर भी इन देवियों के एक साथ दर्शन
के लिये बस द्वारा यात्रा आयोजित करते रहते हैं। अम्बाला से तीन दिन में इन सभी
स्थानों पर जाकर वापिस आया जा सकता है।
दिसम्बर 2015 में मैंने भी अपने तीन दोस्तों के साथ यहाँ जाने का फ़ैसला लिया ।इस
यात्रा से पहले मुझे केवल नैना देवी ही जा पाने का अवसर मिला था। मेरे साथ मेरे
दोस्त सुशील ,स्वर्ण और सुखविंदर थे । इनका परिचय मेरे पाठक जानते ही हैं क्योंकि
मेरी परिवार से इतर होने वाली घुमक्कड़ी
में ये अक्सर मेरे साथ ही होते हैं ।
तय दिन 11 दिसम्बर 2015 को हम लोग सुबह अम्बाला से निकल लिये। हम सब मेरी
आल्टो गाड़ी में जा रहे थे । यह मेरी पहाड़ो पर अपनी गाड़ी से पहली यात्रा थी तो एक
अलग सा रोमांच हो रहा था । मुझे ड्राइविंग का एक अलग अनुभव मिलने वाला था । मेरे
लिये होंसले की यह बात थी कि मेरे अलावा मेरे तीनों मित्र कार ड्राइविंग जानते थे ।अम्बाला
से ही गाड़ी में ढेर सारा खाने पीने का सामान भर लिया । अम्बाला के आस पास कीनू फल
के बहुत बड़े बड़े बगीचे है ,तो सर्दी के उन दिनों बहुत से लोग सड़क के किनारे कीनू
के बड़े –बड़े ढेर लगा कर बेचते हुए मिल जाते हैं । कीनू भी एकदम बढ़िया ,मीठे ,रस से
भरे और सिर्फ़ 20 से 25 रूपये किलो । ऐसे ही एक विक्रेता के पास हमने भी गाड़ी रोक
ली । पहले सबने कीनू का जूस पिया और फिर 5 किलो कीनू भी खरीद लिये । ढेर सारी
मूंगफली और गज़क पहले ही गाड़ी में आ चुकी थी, यानि तीन दिन बस खाना –पीना और घूमना ।
अम्बाला से बनूड़, खरड ,रोपड़ होते कीरतपुर साहिब पहुँच गए । यहाँ से दायें तरफ़
मनाली को सड़क कट जाती है और सीधी सड़क आनंदपुर साहिब होते हुए नंगल ,उना की तरफ़ चली
जाती है । आनंदपुर साहिब से थोड़ा आगे निकलते ही दायें तरफ़ एक सड़क माता नैना देवी
मंदिर की और चली जाती है । इस सड़क पर मुड़ते ही भाखड़ा नहर के किनारे एक चाय की
दुकान पर गाड़ी रोक ली । चाय पीने के साथ कुछ फ़ोटो सेशन भी कर लिया । यहाँ से थोड़ा
आगे चलने पर पहाड़ी इलाका शुरू हो जाता है । माता माता नैना देवी का मंदिर पहाड़ी की
चोटी पर है । जैसे जैसे ऊंचाई पर जाने लगे ,कोहरा मिलना शुरू हो गया और गाड़ी की
गति धीमे होने लगी । लगभग दोपहर ढेड़ बजे हम मंदिर की पार्किंग में पहुँच गए । पहले
गाड़ी मंदिर से दो किलोमीटर पहले तक ही जाती थी और वहां से पैदल ही जाना पड़ता था, फिर यहाँ रोपवे
शुरू किया गया जो अब भी चलता है लेकिन आजकल ऊपर तक गाड़ी चले जाने की सुविधा हो
जाने के कारण इस पर अब ज्यादा भीड़ नहीं रहती । एक पार्किंग में पचास रूपये की
पर्ची कटवा कर ,मंदिर में दर्शनों के लिये चले गए । मंदिर के पुरे रास्ते में और
गेट के आसपास प्रशाद बेचने वाली दुकानों की भरमार है । मंदिर में प्रवेश के लिये
भव्य गेट बना हुआ है । मंदिर में ज्यादा भीड़ नहीं थी ,15 -20 मिनट में हम लोग
दर्शन कर चुके थे ।
मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। मंदिर में पीपल का पेड़
मुख्य आकषर्ण का केन्द्र है जो कि अनेको शताब्दी पुराना है। श्री नयना देवी जी का मंदिर
संगमरमर से निर्मित है और देखने
में बहुत शानदार लगता है। मंदिर का पहला द्वार चांदी से बना है जिस पर देवताओं की सुन्दर आकृतियाँ नक्काशित की गयी हैं। मंदिर का मुख्य दरवाजा भी चांदी से मढ़ा है और उस पर
भगवान सूर्य और अन्य देवताओं की तस्वीरें है। मुख्य मंदिर में तीन पिंडियाँ हैं। जिनमे से एक मुख्य पिंडी माँ श्री नयना भगवती की और दो सुन्दर आंखे हैं। दाएं तरफ दूसरी पिंडी भी माँ की ऑंखें हैं और एसा माना जाता है कि इसकी स्थापना द्वापर युग में पांडवों के द्वारा की गयी थी। बाईं ओर भगवान गणेश की एक मूर्ती है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर शेर की दो
मूर्तियाँ हैं। मंदिर के मुख्य द्वार के दाई ओर भगवान गणेश और हनुमान कि मूर्ति
है। मुख्य द्वार को पार करने के पश्चात आपको दो शेर की प्रतिमाएं दिखाई देती हैं ।
शेर माता का वाहन माना जाता है। पास ही में पवित्र जल का तालाब है जो मंदिर से कुछ
ही दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप ही में एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम
से जाना जाता है।
इस मंदिर के साथ जट जीऊना मौड की लोक कथा भी जुडी हुई है ।पंजाब के लोक गीतों
में इसे अब भी काफी गया जाता है और जट जीऊना मौड पर इसी नाम से पंजाबी में फ़िल्म
भी बन चुकी है । जट समुदाय का जीऊना मौड बहुत धार्मिक प्रवृति का था और अपने बड़े
भाई और भाभी के साथ रहता था । वो माता नैना देवी का अनन्य भक्त था । उसके बड़े भाई
को अंग्रेजों के खिलाफ़ काम करने के कारण काला पानी की सजा हुई थी और उसकी भाभी को
पुलिस ने प्रताड़ित कर मार डाला था । इनसे बदला लेने के लिये जट जीऊना मौड डाकुओं
से जा मिला और जल्दी ही उनका सरदार बन गया । उसने उन सभी पुलिस वालों की एक-एक कर
हत्या कर दी जो उसकी भाभी की मौत के जिम्मेदार थे । वो अंग्रेजो के साथ देने वाले
अमीर लोगों को लुट कर उनका धन गरीब जनता में बाँट देता था । उसे पंजाब का रॉबिनहुड
भी कहा जाता था । वो गरीब लोगों में काफी लोकप्रिय था इसलिए उसकी मुखबरी नहीं हो पाती
थी । ऐसा कहा जाता है कि अपनी हर लूट से में से एक निश्चित हिस्सा वो हमेशा माता
नैना देवी में मंदिर में चढाया करता था। इसका पता अंग्रेजो को भी लग गया । एक बार
जब एक बड़े सेठ को लूट कर जट जीऊना मौड माता नैना देवी में मंदिर में आया तो उसे
पुलिस ने घेर लिया । पुलिस की खबर जीऊना मौड को भी पता चल गयी । उसने माँ के सामने
बैठकर प्रार्थना की और आत्मसमर्पण करने की बजाय पहाड़ी से छलांग लगा दी । आज भी
उसकी समाधी वहीँ बनी हुई है ।
श्री नैना देवी जी हिमाचल प्रदेश में सबसे उल्लेखनीय पूजा के स्थानों में से
एक है। यह जिला बिलासपुर में स्थित है, यह 52 शक्ति पीठों में से एक है,जहां सती के अंग
पृथ्वी पर गिरे थे। इस पवित्र स्थान
पर तीर्थयात्रियों और भक्तों की भारी भीड़ विशेष रूप से श्रावण अष्टमी, चैत्र और अश्विन के नवरात्र के दौरान होती है। अति प्राचीन काल के बाद से, सभी क्षेत्रों से लोग माँ नैना देवी (देवी माँ)
के दर्शन के लिए आते हैं। नैना देवी
हिंदूओं के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। मंदिर तक जाने के लिए उड़्डनखटोले, पालकी आदि की भी व्यवस्था है। यह समुद्र तल से 1177 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पहले मंदिर तक
पहुंचने के लिए 1.5 कि॰मी॰ की पैदल यात्रा की जाती थी परन्तु अब मंदिर प्रशासन द्वारा मंदिर
तक पहुंचने के लिए उड़्डलखटोले का प्रबंध किया गया है। कई पौराणिक कहानियां मंदिर
की स्थापना के साथ जुडी हुई हैं ।
मंदिर से संबंधित एक कहानी नैना नाम के गुज्जर लड़के की है। एक बार वह अपने मवेशियों को चराने गया और देखा
कि एक सफेद गाय अपने थनों से एक पत्थर पर दूध बरसा रही है। उसने अगले कई दिनों तक इसी बात को देखा। एक रात जब वह सो रहा था, उसने देवी माँ को सपने मे यह कहते हुए देखा कि
वह पत्थर उनकी पिंडी है। नैना ने पूरी
स्थिति और उसके सपने के बारे में राजा बीर चंद को बताया। जब राजा ने देखा कि
यह वास्तव में हो रहा है, उसने उसी स्थान
पर श्री नयना देवी नाम के मंदिर का निर्माण करवाया।
श्री नैना देवी मंदिर महिशपीठ नाम से भी प्रसिद्ध है क्योंकि यहाँ पर माँ श्री
नयना देवी जी ने महिषासुर का वध किया था। किंवदंतियों के
अनुसार, महिषासुर एक शक्तिशाली राक्षस था जिसे श्री
ब्रह्मा द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त था, लेकिन उस पर शर्त
यह थी कि वह एक अविवाहित महिला द्वारा ही परास्त हो सकता था।इस वरदान के कारण, महिषासुर ने पृथ्वी और देवताओं पर आतंक मचाना
शुरू कर दिया । राक्षस के साथ
सामना करने के लिए सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों को संयुक्त किया और एक देवी को
बनाया जो उसे हरा सके। देवी को सभी
देवताओं द्वारा अलग अलग प्रकार के हथियारों की भेंट प्राप्त हुई। महिषासुर देवी की असीम सुंदरता से मंत्रमुग्ध
हो गया और उसने शादी का प्रस्ताव देवी के समक्ष रखा। देवी ने उसे कहा कि अगर वह उसे हरा देगा तो वह उससे शादी कर
लेगी।लड़ाई के दौरान, देवी ने दानव को परास्त
किया और उसकी दोनों ऑंखें निकाल दीं।
एक और कहानी सिख गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ जुडी हुई है।जब उन्होंने मुगलों
के खिलाफ अपनी सैन्य अभियान 1756 में छेड़ दिया, वह श्री नैना देवी गये और देवी का आशीर्वाद
लेने के लिए एक महायज्ञ किया। आशीर्वाद मिलने
के बाद, उन्होंने सफलतापूर्वक मुगलों को हरा दिया।
मंगल आरती - माता की पहली
आरती मंगल आरती कहलाती है । प्रात: ब्रह्ममुहूर्त
में लगभग ४।०० बजे पुजारी मंदिर
खोलता है और घंटा बजा कर माता को जगाया जाता है । तदनंतर माता की शेय्या समेट कर रात को गडवी में रखे जल से माता के चक्षु और मुख धोये जाते
है । उसी समय माता को काजू, बादाम, खुमानी, गरी, छुआरा, मिश्री, किशमिश, आदि में से पांच मेवों का भोग लगाया जाता है । जिसे 'मोहन भोग ' कहते है ।
मंगल आरती में दुर्गा सप्तशती में वर्णित महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, के ध्यान के मंत्र बोले जाते है । माता के मूल
बीज मंत्र और माता श्रीनयनादेवी के ध्यान के विशिष्ट मंत्रो से भी
माता का सत्वन होता है । ये विशिष्ट मन्त्र
गोपनीय है । इन्हें केवल दीक्षित
पुजारी को ही बतलाया जा सकता है ।
श्रृंगार आरती - श्रृंगार आरती के
लिए मंदिर के पृष्ठ भाग की ढलान की और निचे लगभग 2 किलोमीटर की दुरी पर स्थित 'झीडा' नामक बाऊडी से एक व्यक्ति जिसे 'गागरिया' कहते है , नंगे पांव माता
के स्नान एवं पूजा के लिए पानी की गागर लाता है । श्रृंगार आरती लगभग 6 बजे शुरू होती है जिसमे षोडशोपचार विधि
से माता का स्नान तथा हार श्रृंगार किया जाता है । इस समय सप्तशलोकी दुर्गा
और रात्रिसूक्त के श्लोको से माता की स्तुति
की जाती है । माता को हलवा और बर्फी का
भोग लगता है जिसे 'बाल भोग' कहते है । श्रृंगार आरती उपरांत
दशमेश गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा स्थापित
यज्ञशाला स्थल पर हवन यज्ञ किया
जाता है । जिसमे स्वसित वाचन, गणपतिपुजन, संकल्प, स्त्रोत, ध्यान, मन्त्र जाप, आहुति आदि सभी परिक्राएं पूर्ण की जाती है ।
मध्यान्ह आरती - इस अवसर पर माता
को राज भोग लगता है । राज भोग में चावल, माश की दाल, मुंगी साबुत या चने की दाल, खट्टा, मधरा और खीर आदि भोज्य व्यंजन तथा ताम्बूल अर्पित किया जाता है । मध्यान्ह आरती का समय दोपहर 12:00 बजे है । इस आरती के समय सप्तशलोकी दुर्गा के श्लोको का वाचन होता है ।
सायं आरती - सायं आरती के लिए भी झीडा बाऊडी से माता के स्नान के लिए गागरिया पानी लाता है । लगभग 6:30 बजे माता का
सायंकालीन स्नान एवं श्रृंगार होता है । इस समय माता को चने और पूरी का भोग लगता है । ताम्बूल भी अर्पित किया जाता है । इस समय के भोग को 'श्याम भोग' कहते है ।
शयन आरती - रात्रि 9:30 बजे माता को शयन करवाया जात है । इस समय माता की शेय्या सजती है । दुध् और बर्फ़ी का भोग लगता है । जिसे 'दुग्ध् भोग' के नाम से जाना जाता है । शयन आरती के समय भी श्रीमदशकराचार्य विरचित सोन्दर्य लहरी के निम्नलिखित श्लोको के सस्वर गायन के साथ् माता का सत्वन होता है ।
कैसे पहुंचे :यह स्थान नैशनल हाईवे न. 21 से जुड़ा हुआ है।
इस स्थान तक पर्यटक अपने निजी वाहनो से भी जा सकते है। यह मंदिर दिल्ली से 350 किमी और चंडीगढ़ से 100 किमी की दुरी पर है , अम्बाला से 150 कि॰मी॰ दूर और
चिन्तपूर्णी मंदिर 110 कि॰मी॰ दूर है । सबसे
पास का हवाईअद्दा चंडीगढ़ है । सबसे नजदिकी रेलवे
स्टेशन आनंदपुर साहिब है जहा से मंदिर 30 किमी की दुरी पर
है । आनंदपुर साहिब से आसानी
से टैक्सी बस मंदिर जाने के लिए मिल जाती है ।
तीर्थयात्रियों को सुविधाएं
न्यास द्वारा श्रधालुओं कि
सुविधा हेतु मंदिर के समीप पटियाला धर्मशाला,लंगर एवं लंगर के समीप धर्मशाला का निर्माण करवाया गया है,जिसमे लगभग 1000
यात्रियों के नि:शुल्क ठहरने की व्यवस्था है ।
न्यास द्वारा श्रधालुओं कि
सुविधा हेतु मात्री आंचल,मात्री छाया या
एवं लंगर के समीप मात्री शरण का निर्माण करवाया गया है,जिसके 45 कमरों मे उचित दाम में ठहरने की व्यवस्था है ।
श्री नैना देवी जी के बस अड्डे के समीप एक सरकारी विश्राम घर भी है। जिसका प्रबंधन हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा किया
जाता।
मेरे नैन तरसदे
रहंदे ने ,नैना देवी दे दीदार नूं ।
दिल तरसदा रहंदा
मेरा ,भोली माँ दे प्यार नू ।।
।। जय माता दी ।।
कीनू फल |
भाखड़ा नहर |
भाखड़ा नहर |
भाखड़ा नहर |
यात्रा में मेरे साथी (सुखविंदर ,सुशील और स्वर्ण ) |
मंदिर के पास कोहरा |
माँ नयना देवी ,पिंडी रूप में |
अपुन को नौ देवियों में इस देवी ने सबसे आखिरी में दर्शन दिये थे वो भी तब, जब हम मणिमहेश, खजियार की ओर जा रहे थे तो सबसे पहले यहाँ जय माता दी बोल आगे बढे थे।
ReplyDeleteधन्यवाद संदीप भाई . आज अपने ब्लाग पर आपका कमेन्ट पाकर अच्छा लगा .संवाद बनाये रखिये . जय माता दी .
Deleteबढिया व सजीव वर्णन .जय माता दी.
ReplyDeleteधन्यवाद अजय भाई .जय माता दी .
Deleteसजीव वर्णन।नवरात्रि के पावन दिनों में ये एक भेट स्वरूप है।धन्यवाद नरेश 👏
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ जी .जय माता दी .
Deleteलगता है माँ वैष्णो देवी की तरह बाकि सब देवियों के दर्शनों के लिए भी सहगल साहब माता के साथ साथ आपके पास भी अर्जी लगानी पड़ेगी. सजीव वर्णन और ढेर सारे फोटो लगा कर तो आपने बिल्कुल साक्षात् दर्शन करवा ही दिए. जय माता दी
ReplyDeleteधन्यवाद कौशिक जी .जय माता दी . माँ ने फिर बुलाया तो आपके साथ चल पड़ेंगे .
Deleteजय माता दी।
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल भाई .जय माता दी .
Deleteअति सुन्दर ! कहानियां जो भी हैं , प्रासंगिक और सटीक लगती हैं मंदिर के साथ जुडी हुई ! मैं अपनी हिमाचल यात्रा में यहां नहीं जा पाया था , आपने दर्शन करा दिए !! धन्यवाद सहगल जी
ReplyDeleteधन्यवाद योगी ही .कुछ न कुछ तो कहानी होती ही है इसिलिये अब तक चली आ रही हैं .जय माता दी .
Deleteशानदार पोस्ट। यूं तो पहले भी सभी देवियों के दर्शनों का सौभागय प्राप्त है, आपकी बदोलत यादें फिर से ताजा हो गई। शुक्रिया जी। जय माता दी ।🙏
ReplyDeleteधन्यवाद ।जय माता दी ।
ReplyDeleteजय माता दी...कीनू के बारे में नया जानने को मिला पता ही नहीं था यह फल
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई . जय माता दी।कीनू इस तरफ बहुत होता है .
Deleteगजब की लेखनी है आपकी नरेश भाई,
ReplyDeleteहर एक छोटी से छोटी बात को आपने लेख में शामिल किया है
सजीव लेख
धन्यवाद डॉ साहेब । जय माता दी ।
Deleteसुन्दर तस्वीरें और छोटी से छोटी बात की विस्तृत जानकारी .जय माता दी .
ReplyDeleteधन्यवाद राज जी । जय माता दी ।
Deleteनैना देवी जाने का अवसर अभी तक मुझे नही मिला। धन्यवाद आपका जो इतनी अच्छी पोस्ट शेयर की । जय माता दी। (प्रतिमा शरण)
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिमा जी .
Deleteहिमांचल में माँ की बहुत बड़ी कृपा है जो इस जगह पाँच देवियों ने अपना निवास बनाया श्रधालु एक के बाद एक सुन्दर स्थानों का अवलोकन करते हुए माँ का आर्शीवाद भी प्राप्त करते हैं मुझे भी २०१६ में माँ का आशीष प्राप्त हुआ।
ReplyDeleteधन्यवाद कृष्णा शर्मा जी .
DeleteJai Mata di
ReplyDelete